कांग्रेस के पुरोधा और यूपीए सरकार के संकटमोचक प्रणब मुखर्जी
राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे निकलते दिख रहे हैं। प्रणब की सोमवार
रात संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद इस बात के संकेत मिले
हैं कि सोनिया कुछ घंटों के अंदर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम घोषित
कर सकती हैं। राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अधिसूचना दो दिन के भीतर जारी
हो सकती है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह जल्द ही अधिसूचना जारी करेगा।
सब कुछ हो चुका है सैट :
प्रणब का सोनिया से मिलना और उनका 14 जून से होने वाला काबुल का दौरा
रद किया जाना इस बात का संकेत है कि सोनिया संभवत: प्रणब के ही नाम की
घोषणा करने वाली हैं। कांग्रेस को प्रणब के नाम पर समर्थन भी मिलने का
भरोसा हो चला है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और तृणमूल चीफ
ममता बनर्जी ने पत्ते अभी नहीं खोले हैं, लेकिन इशारों-इशारों में कह दिया
है कि उन्हें प्रणब पर आपत्ति नहीं है। इधर, भाजपा की अगुआई में एनडीए ने
कहा है कि सर्वसम्मति से फैसला होना चाहिए। भाजपा के पास करने को ज्यादा
कुछ है भी नहीं क्योंकि उनका हाथ आंकड़ों के मामले में तंग है। ऐसे में
राष्ट्रपति वही बनेगा, जिसके नाम की घोषणा आने वाले कुछ घंटों में सोनिया
गांधी करने वाली हैं।
प्रणब ही क्यों-
यानी प्रणब को लाइफटाइम अचीवमेंट के रूप में एक बेहतरीन रिटायरमेंट ऑफर
किया जा रहा है? या फिर आगामी लोकसभा चुनाव में त्रिशंकु हालात का अंदेशा
होने की स्थिति में राष्ट्रपति पद पर ऐसा व्यक्ति भेजा जा रहा है, जो
त्रिशंकु हालात होने पर कांग्रेस का हितैषी हो सके? सर्वविदित है कि वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी को सरकार में नंबर दो पोजीशन पर माना जाता है। इसमें
कोई दोराय नहीं कि प्रणव ही सरकार के सूत्रधार रहे हैं। वह सही मायने में
सरकार के और कांग्रेस के संकटमोचक रहे हैं। नीतियों से लेकर रणनीतियों तक,
सबकुछ प्रणब की सूझबूझ और रजामंदी से ही तय होता आया है। मनमोहन सिंह जैसे
अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री होने के बावजूद आर्थिक फ्रंट पर प्रणब की
भूमिका अहम होती आई है। इस वक्त कुछ मुद्दे सरकार के गले की फांस बन चुके
हैं। काबू से बाहर जाती महंगाई, घटती विकास दर, आर्थिक मंदी का माहौल और
सरकार की आर्थिक नीतियों के प्रति जनता में पनपता रोष 2014 के लोकसभा चुनाव
के लिहाज से कांग्रेस के लिए ठीक संकेत नहीं हैं। अन्ना-रामदेव से भी
भ्रष्टाचार-कालेधन मामले में चुनौती मिल रही है। ऐसे में प्रणब का
संगठन-सरकार से कूच कर जाना कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब होगा। लेकिन
खुद कांग्रेस आलाकमान ने यदि प्रणब को राष्ट्रपति बनाने का फैसला लिया है,
तो यह फैसला किसी पुख्ता रणनीति के बाद ही लिया गया है, यह मानना होगा।
प्रणब के संगठन से बाहर जाने पर राहुल गांधी की भूमिका भी अपने खांचे में
फिट हो सकती है। चर्चा है कि प्रणब के बाद आर्थिक मामलों के पुराने जानकार
सी. रंगराजन को वित्त विभाग की जिम्मेदारी सौंपी जानी है।
जरूरी नहीं कि प्रणब ही जीतें..-
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा है कि
उनकी पार्टी सत्तारूढ़ यूपीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम
घोषित किए जाने के बाद ही इस मुद्दे पर अपनी नीति स्पष्ट करेगी। हुसैन ने
कहा कि इस बार राष्ट्रपति पद का चुनाव 'दिलचस्प' होगा और ऐसा जरूरी नहीं कि
सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार ही जीते। प्रणब को समर्थन देने के सवाल पर
उन्होंने कहा, 'पहले काग्रेस पार्टी को इस पर के उम्मीदवार का नाम घोषित
करने दीजिए, तभी हमारी पार्टी अपनी नीति स्पष्ट करेगी।' काग्रेस की सहयोगी
तृणमूल काग्रेस स्पेशल पैकेज की माग कर मुखर्जी को समर्थन देने के एवज में
दबाव बनाने में जुटी हुई है तो समाजवादी पार्टी ने कहा है कि वह किसी
राजनीतिक व्यक्ति की उम्मीदवारी का ही समर्थन करेगी। हालाकि दोनों दलों का
यही कहना है कि काग्रेस अपने उम्मीदवार का नाम घोषित करेगी तभी वह अपना रुख
स्पष्ट करेंगे।
किस-किसका नाम रहा चर्चा में-
राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब के अलावा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल
कलाम, मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा,
उद्योगपति रतन टाटा, अन्ना हजारे और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम की
जमकर चर्चा रही है। इससे पहले ममता बनर्जी ने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार,
अब्दुल कलाम और प. बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गाधी की उम्मीदवारी
का समर्थन किया था।
ऐसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव-
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के एकल
संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होत है। राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों
और राज्य विधायिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पांच वर्ष की अवधि के लिए
चुना जाता है। पदधारकों को पुन: चुनाव में खड़े होने की अनुमति दी गई है।
वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की
जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा वोट डालने की संख्या
के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सासदों
के बीच एक समानुपात बना रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं
होता है तो एक स्थापित प्रणाली है, जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को
प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले वोट अन्य उम्मीदवारों को
तबतक हस्तातरित होता है, जबतक किसी एक को बहुमत नहीं मिलती। उपराष्ट्रपति
को लोक सभा और राज्य सभा के सभी सदस्यों द्वारा एक सीधे मतदान द्वारा चुना
जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम दो कार्यकाल तक हीं पद पर रह सकते हैं। अब तक
केवल पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो कार्यकाल पूरे
किए हैं।
अपेक्षित योग्यता-
भारत का कोई नागरिक जिसकी उम्र 35 साल या अधिक हो वो उम्मीदवार हो सकता
है। उम्मीदवार को लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता होना चाहिए और सरकार के
अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करना चाहिए।
एक नजर भारत के राष्ट्रपति पर-
भारतीय सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख सेनापति राष्ट्रपति के पास सिद्धांत:
पर्याप्त शक्ति होती है, लेकिन अधिकाश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की
अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। भारत के
राष्ट्रपति दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन (रायसीना हिल)में रहते हैं।
प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभीत करने वाली पहली महिला
राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 25 जुलाई, 2007 को पद व गोपनीयता की शपथ ली थी।
अब तक भारत के राष्ट्रपति
1.डॉ. राजेंद्र प्रसाद (जनवरी 1950-मई 1962)
2.डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (मई 1962-मई 1967)
3.डॉ. जाकिर हुसैन (मई 1967-मई 1969)
4.वराहगिरि वेंकटगिरि (कार्यवाहक) (मई 1969-जुलाई 1969)
5.न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायतुल्लाह (कार्यवाहक) (जुलाई 1969-अगस्त 1969)
6.वराहगिरि वेंकटगिरि (अगस्त 1969-अगस्त 1974)
7.फखरुद्दीन अली अहमद (अगस्त 1974-फरवरी 1977)
8.बी.डी. जंट्टी (कार्यवाहक) (फरवरी 1977-जुलाई 1977)
9.नीलम संजीव रेड्डी (जुलाई 1977-जुलाई 1982)
10.ज्ञानी जैल सिंह (जुलाई 1982-जुलाई 1987)
11.आर. वेंकटरमण (जुलाई 1987-जुलाई 1992)
12.डॉ. शकर दयाल शर्मा (जुलाई 1992-जुलाई 1997)
13.केआर नारायणन (जुलाई 1997-जुलाई 2002)
14.डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (जुलाई 2002-जुलाई 2007)
15.श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (जुलाई 2007 से)
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