सोमवार, 31 जुलाई 2017

काफिर कलाम ?



जी हां, जन्नतनशीन Dr. A.P.J. Abdul Kalam के लिए चन्द सिरफिरे लोगों ने आज (जुलाई 31) कहा कि वे मुसलमान नही थे। तो फिर यह नमाजी सुन्नी क्या काफिर कहलायेगा ? रामेश्वरम में डा. कलाम के स्मारक में उनकी प्रतिमा के साथ उनकी प्रिय पुस्तक गीता और रूद्र वीणा रखी गई है। बस कुछ कठमुल्ले भड़क उठे। इसपर भारतीय मिसाइल के निर्माता इस फकीर का 2004 में राष्ट्रपति पद के चुनाव अभियान पर हुये उनके जबरदस्त विरोध की मुझे याद आ गई। 
हालांकि अब यह मुद्दा केवल अकादमिक रह गया है। मगर राजनीति के शास्त्रियों को विश्लेषण करना चाहिए कि पूर्व राष्ट्रपति के चुनाव में इतना तीव्र विरोध दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी क्यों किया था ? मुसलमानों के जबरदस्त खैरख्वाह, यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना के प्रति उदार रहे, इन कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने विरोध में द्वन्द्वात्मक तर्क दिए जो बेमाने थे। देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002) के निर्वाचन में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ने आपसी वैमनस्य को दरकिनार कर सुदूर दक्षिण के गैर-राजनैतिक विज्ञानशास्त्री डा० अबुल पाकिर जैनुलआबिदीन अब्दुल कलाम को प्रत्याशी बनाया था। अटल बिहारी वाजपेयी तथा मुलायम सिंह यादव उनके प्रस्तावक थे गणतंत्रीय भारत के वे तीसरे मुसलमान राष्ट्रपति थे। यूं तो वामपंथी हमेशा क्रांति के हरावल दस्ते में रहने का दम भरते हैं। मगर तब वे आत्मघातियों के रास्ते पर चल दिए। यदि वे डा० ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का विरोध करने में दृढ़ होते, तो ज्यादा बेहतर तर्क दे सकते थे। मात्र कह देना कि यह वैज्ञानिक संविधान से अनजाना है, साझा राजनीति की शैली से अनभिज्ञ है, कूटनीति से अपरचित है, कतई कोई भी मायने नहीं रखता। उनकी विडंबना भी रही कि पटना में ये ही वामपंथी लोग एक निरक्षर गृहिणी (लालूपत्नी) को मुख्यमंत्री पद पर समर्थन देते समय ऐसे ही तर्कों पर गौर नहीं कर पाए थे। अपने अभियान में यदि कलाम की युक्तिसंगत मुखालफत करनी थी तो मुल्लाओं को ये माक्र्सवादी उकसा सकते थे कि  77-वर्षीय अब्दुल कलाम मुसलमान नहीं हैं, क्योंकि उन्हें उर्दू नहीं आती। हालांकि बहुतेरे तमिल मुसलमानों ने कभी उर्दू सीखी ही नहीं। वे प्रचार कर सकते थे कि अब्दुल कलाम दही-चावल और अचार ही खाते हें। मुस्लमान की भांति मांसाहारी कदापि नहीं।
रक्षा मंत्रालय में अपनी पहली नौकरी संभालने के पूर्व कलाम ने ऋषिकेश में स्वामी शिवानंद से आशीर्वाद लिया था। अपने पिता जैनुल आबिदीन के परम सखा और रामेश्वरम शिव मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री से धर्म की गूढ़ता जानने में तरुण अब्दुल ने रुचि ली थी। वे संत कवि त्यागराज के रामभक्ति के सूत्र गुनगुनाते थे। नमाज के बाद वे रुद्र वीणा भी बजाते हैं। एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के भजन को चाव से सुनते रहे, जबकि उनके मजहब में संगीत वर्जित होता है। उत्तर भारत के मुसलमानों को ये कठमुल्ले भड़का सकते थे यह कह कर अब्दुल कलाम के पुरखों ने इस्लाम स्वीकार किया शांतिवादी प्रचारकों से जो अरब व्यापारियों के साथ दक्षिण सागर तट पर आए थे। अतः वह उत्तर भारतीय अकीदतमन्द मुसलमानों के पूर्वजों से जुदा है जिनसे गाजी मोहम्मद बिन कासिम की सेना ने बदलौते-शमशीर सनातन धर्म छुड़वाया था। कलमा पढ़वाया था। यह मिलती-जुलती बात हो जाती जो किसान नेता मौलाना अब्दुल हमीद खान भाशानी ने ढाका में कही थी कि “ये पश्चिम पाकिस्तानी मुसलमान हम पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देशी) मुसलमानों को इस्लामी मानते ही नहीं। तो क्या मुसलमान होने का सबूत देने के लिए हमें लुंगी उठानी पड़ेगी?”
अब्दुल कलाम के विरोधी इसी तरह कट्टर हिंदुओं को भी बहका चुके थे कि अब्दुल कलाम की मां ने शैशवास्था से सिखाया था कि दिन में पांच बार नमाज अदा करो। मगरीब में मक्का की ओर सिर करो। अर्थात पूर्व में अपने देश की ओर मत देखो। उनके पिता जैनुल आबिदीन ने उन्हें सिखाया कि हर कार्य के बिस्मिल्ला पर अल्लाह की प्रार्थना करो। केवटपुत्र और अखबारी हाकर रह चुके अब्दुल कलाम को राष्ट्र का प्रथम नागरिक बनने की राह में अमीर तथा नवधनाढ्यजन नापसंदगी पैदा कर चुके थे कि एक युवक को जिसने पहली सरकारी नौकरी 250 सौ रुपए माहवार से शुरू की थी, आज उसे 50,000 रुपए माहवार करमुक्त वेतन की राष्ट्रपति वाली नौकरी क्यों मिले ? अंग्रेजीदां लोग इस भारत रत्न विजेता का तिरस्कार चुके सकते थे इसलिए क्योंकि अब्दुल कलाम ने कहा था कि विज्ञान को छात्र की मातृभाषा में पढ़ाना चाहिए। हालांकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस शुरुआती हिचक के बाद मुख्य धारा में लौट आई और उसने अब्दुल कलाम का समर्थन किया। फिलहाल अब्दुल कलाम के संदर्भ में इतना आश्वस्त तो राष्ट्र रहा था कि भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर होने पर वे भौगोलिक सीमाओं को पूरी तरह अक्षुण्ण रख पाएंगे। सिद्ध हो गया कि इस्लामी पाकिस्तान के प्रक्षेपास्त्र (महमूद) गज़नवी, (मुहम्मद) गोरी और (अहमदशाह) अब्दाली का मुकाबला करने में भारतीय प्रक्षेपास्त्रों (अग्नि, त्रिशूल, नाग) से भी कहीं अधिक यह मुसलमान मिसाइलमैन अब्दुल कलाम ज्यादा कारगर रहा। भारत के रक्षक कलाम में हिन्दुओं से कहीं अधिक देशभक्ति थी।

K Vikram Rao
Mob: 9415000909
k.vikramrao@gmail.com

धन्यवाद योगी जी

मा0 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी और उनकी आईजीआरएस की पूरी टीम को धन्यवाद कि उन्होंने केजीएमयू के भ्रष्ट और लापरवाह प्रो0 एचएस पाहवा के खिलाफ मेरी शिकायत पर ठोस कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है। आपको अवगत कराना चाहता हूं कि जांच कमेटी में शामिल सभी अधिकारी डॉ0 पाहवा के दोस्त हैं। अतः निवेदन हैं कि कमेटी में kgmu से बाहर के लोगों को शामिल किया जाय। क्योंकि उन लोगों की बातों से लगता है कि वो मुझ पर दबाव बनाकर पाहवा को बचाने की फिराक में हैं।

रविवार, 30 जुलाई 2017

योग्य और अनुभवी नेताओं की कमी से जूझती यूपी भाजपा


एक समय था जब हम सुई से लेकर जहाज़ तक सब कुछ विदेशों से आयात करते थे। क्योंकि हमारे नए आज़ाद मुल्क के पास कुछ नही था, अंग्रेजों की गुलामी नें हमारा सबकुछ लूट लिया था। कभी कभी सोंचता हूँ कि क्या यूपी में भाजपा के पास भी अपने नेता नही है क्या? जो वह दूसरी पार्टियों से आज भी लगातार आयात कर रही है। चुनाव के समय आयात तो समझ में आता है, लेकिन लग रहा है उसके पास आज भी नेताओं की कमी है, जो वो बुक्कल जैसे 420 नेताओं को आयात करके ला रही है। ताज़्ज़ुब की बात तो ये कि भाजपा में पहले से मौजूद नेताओं को फिर भी अपना नकारापन समझ नही आ रहा है।

शनिवार, 29 जुलाई 2017

पर खुश कि चलो समर्पित हैं


कुछ रहे समर्पित सदा सदा
लगते अब दल से जुदा जुदा
यहाँ गधे पंजीरी पेल रहे
वो आज भी दुर्दिन झेल रहे
सन्नाटे में आवाज़ बने
जीरो से आगाज़ बने
खुब कष्ट सहे
कुछ भी न कहे
अब उन पर कोई निगाह नही
लानत भी नही कोई वाह नही
तुम जियो मरो या कट जाओ
बस 5 साल को हट जाओ
तुम आना भीड़ जब छट जावे
सत्ता के चिन्ह जब मिट जावें
तब तेरी याद उठेगी ही
जब सत्ता ठाठ लूटेगी ही
झंडा, बिल्ला, पोस्टर , बस्ता
मांगेंगे एक लेबर सस्ता
तब तुम्हें छोंड़ होगा ही कौन
पार्टी को समर्पित रहा जौन
फिर खून पसीना बहा देना
पार्टी का कमल खिला देना
विपक्षी दल को हिला देना
मैं फिर सत्ता में आऊँगा
नए मतलबी खोज के लाऊँगा
तुम फिर से नया विश्राम करो
हमसे बोलो खूब काम करो
"राजन" हम मूरख तर्पित है
पर खुश कि चलो समर्पित हैं।






शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

अमर उजाला की लापरवाह रिपोर्टिंग


जांच शुरू.... तो ठीक है, लेकिन किसकी जांच शुरू कृपया यह तो बताएं। शिकायतकर्ता कौन है ये पाठक कैसे जानेगा? हालांकि फेसबुक और सोशल मीडिया के मेरे सभी मित्र जानते हैं कि वो डाक्टर एच एस पाहवा है और शिकायतकर्ता आपका भाई सुशील अवस्थी राजन है। इस खबर में यह कहा गया है शिकायत वीसी केजीएमयू से की गई है, जो कि पूर्णतया गलत है। शिकायत मुख्यमंत्री से की गई है। 
शुरुआत से ही केजीएमयू प्रशासन का रवैया इस मामले में अपने डॉक्टर को बचाने वाला रहा है। मैं इस जांच कमेटी को डॉ पाहवा के दोस्तों का याराना क्लब समझ रहा हूँ। फिर भी मैं जांच कमेटी के सामने उपस्थित हो रहा हूँ। जल्द ही मैं सीएम ऑफिस से आग्रह कर किसी बाहरी जांच एजेंसी से जांच करवाने की मांग करूँगा। कोई कितने भी जतन कर ले परंतु में इस डाक्टर को सिर्फ निलंबित नही बल्कि बर्खास्त करवा कर मानूँगा।

भारत का मुसलमान देशभक्त है

लो कल्लो बात। अबू आज़मी जो कि महाराष्ट्र में सपा के मुख्य कर्ता-धर्ता हैं, कह रहे हैं कि वो किसी भी कीमत पर वंदे मातरम नही गाएंगे। अमां न गाओ भाई। इनके गाने या न गाने से वंदे मातरम की महानता या महत्व थोड़े कम हो जाएगा? लेकिन कुछ जिद्दी और जाहिल लोग आज़मी साहब से भी ज्यादा वहशियाना हो चुके हैं, वो उन्हीं के मुंह से वंदे मातरम सुनना चाहते हैं। अरे भाई जिसे वंदे मातरम अच्छा लगता वो दिन रात गाये न..... दूसरे से गवाने से क्या फायदा। मुझे राम नाम प्यारा लगता है तो मैं तो दिन रात रटता हूँ, लेकिन दूसरा कोई अगर न रटे तो क्या मैं अपना राम राम जपना छोंड़कर दूसरे को बाध्य करूँ क्या? आजकल सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजता है तो हर कोई अपनी सीट से खड़ा होकर उसका आदर करता है। लेकिन अगर कोई चिल्लाने लगे कि जो नही खड़ा होगा ठीक नहीं होगा, तो मैं दावे से कहता हूं कि कुछ लोग अपनी सीट से नही खड़े होंगे। दोष उनका ज्यादा है, जो कह रहे है कि हिंदुस्तान में रहना है......कहना है। सिर्फ वंदे मातरम गाने या न गाने से किसी की देशभक्ति का मूल्यांकन करना ठीक बात नही है।
मुझे तो हिंदुस्तान के मुसलमान की देशभक्ति पर कभी शक नही रहा, लेकिन कुछ लोग उसकी देशभक्ति पर कीचड़ उछालकर ही खुद को देशभक्त साबित करते है, जो गलत है। इस देश के मुसलमान का रहनुमा कभी कोई मुसलमान नही रहा है, उसने हमेशा किसी न किसी हिन्दू को ही अपनी रहनुमाई दी है। वह कभी जवाहर, कभी इंदिरा, तो कभी मुलायम के पीछे खड़ा रहा है। क्या कभी इस देश के हिन्दू नें ऐसी दरियादिली दिखाई क्या? ओवेशी, नसीमुद्दीन, आज़मी और आज़म इस देश के मुसलमानों के रहनुमा नही है। बस यही तो इनकी पीड़ा है। ये आपनी ओछी बातों और हरकतों से इस देश के मुसलमानों के रहनुमा बनना चाहते हैं। लेकिन इस देश का मुसलमान उन्हें ये ओहदा कभी देगा, मुझे तो नहीं लगता।
यूपी के सीएम पद पर यदि कोई जालीदार टोपी वाला मुफ़्ती, मौलाना या काज़ी अगर काबिज़ होता तो मैं खुद उसे न स्वीकारता, लेकिन वो हमारे भगवाधारी योगी को स्वीकार रहे हैं। कितने सबूत चाहिए हमें अपने देश के मुसलमान से उसकी देशभक्ति के? तुम जिस वतन की मिट्टी को दिन में एक बार भी अपने हाँथ से नही स्पर्श करते हो सुशील, उसपर वह बार बार और कई बार अपना मस्तक झुकाता और चूमता है। उसके तो अपने खुदा की इबादत से ही देशभक्ति हो जाती है।

सोमवार, 24 जुलाई 2017

आखिर आडवाणी का दोष क्या है?


लाल कृष्ण आडवाणी का एकांत भारत की राजनीति का एकांत है। हिन्दू वर्ण व्यवस्था के पितृपुरुषों का एकांत ऐसा ही होता है। जिस मकान को जीवन भर बनाता है, बन जाने के बाद ख़ुद मकान से बाहर हो जाता है। वो आंगन में नहीं रहता है। घर की देहरी पर रहता है। सारा दिन और कई साल उस इंतज़ार में काट देता है कि भीतर से कोई पुकारेगा। बेटा नहीं तो पतोहू पुकारेगी, पतोहू नहीं तो पोता पुकारेगा। जब कोई नहीं पुकारता है तो ख़ुद ही पुकारने लगता है। गला खखारने लगता है। घर के अंदर जाता भी है, लेकिन किसी को नहीं पाकर उसी देहरी पर लौट आता है। बीच बीच में सन्यास लेने और हरिद्वार चले जाने की धमकी भी देता है मगर फिर वही डेरा जमाए रहता है।

पिछले तीन साल के दौरान जब भी आडवाणी को देखा है, एक गुनाहगार की तरह नज़र आए हैं। बोलना चाहते हैं मगर किसी अनजान डर से चुप हो जाते हैं। जब भी चैनलों के कैमरों के सामने आए, बोलने से नज़रें चुराने लगे। आप आडवाणी के तमाम वीडियो निकाल कर देखिये। ऐसा लगता है उनकी आवाज़ चली गई है। जैसे किसी ने उन्हें शीशे के बक्से में बंद कर दिया है। उसमें धीरे धीरे पानी भर रहा है और बचाने की अपील भी नहीं कर पा रहे हैं। उनकी चीख बाहर नहीं आ पा रही है। उनके सामने से कैमरा गुज़र जाता है। आडवाणी होकर भी नहीं होते हैं।

आडवाणी का एकांत उस पुरानी कमीज़ की तरह है जो बहुत दिनों से रस्सी पर सूख रही है,मगर कोई उतारने वाला भी नहीं है। बारिश में कभी भीगती है तो धूप में सिकुड़ जाती है। धीरे धीरे कमीज़ मैली होने लगती है। फिर रस्सी से उतर कर नीचे कहीं गिरी मिलती है। जहां थोड़ी सी धूल जमी होती है, थोड़ा पानी होता है। कमीज़ को पता है कि धोने वाले के पास और भी कमीज़ है। नई कमीज़ है।

क्या आडवाणी एकांत में रोते होंगे? सिसकते होंगे या कमरे में बैठे बैठे कभी चीखने लगते होंगे, किसी को पुकारने लगते होंगे? बीच बीच में उठकर अपने कमरे में चलने लगते होंगे, या किसी डर की आहट सुन कर वापस कुर्सी पर लौट आते होंगे? बेटी के अलावा दादा को कौन पुकारता होगा? क्या कोई मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री या साधारण नेता उनसे मिलने आता होगा? आज हर मंत्री नहाने से लेकर खाने तक की तस्वीर ट्वीट कर देता है। दूसरे दल के नेताओं की जयंती की तस्वीर भी ट्वीट कर देता है। उन नेताओं की टाइमलाइन पर सब होंगे मगर आडवाणी नज़र नहीं आएंगे। सबको पता है। अब आडवाणी से मिलने का मतलब आडवाणी हो जाना है।

रोज़ सुबह उठकर वे एकांत में किसकी छवि देखते होंगे, वर्तमान की या इतिहास की। क्या वे दिन भर अख़बार पढ़ते होंगे या न्यूज़ चैनल देखते होंगे। फोन की घंटियों का इंतज़ार करते होंगे? उनसे मिलने कौन आता होगा? न तो वे मोदी मोदी करते हैं न ही कोई आडवाणी आडवाणी आडवाणी करता है। आखिर वे मोदी मोदी क्यों नहीं करते हैं, अगर यही करना प्रासंगिक होना है तो इसे करने में क्या दिक्कत है? क्या उनका कोई निजी विरोध है, है तो वे इसे दर्ज क्यों नहीं करते हैं?

लोकसभा चुनाव से पहले आडवाणी ने एक ब्लाग भी बनाया था। दुनिया में कितना कुछ हो रहा है। उस पर तो वे लिख ही सकते हैं। इतने लोग जहां तहां जाकर लेक्चर दे रहे हैं, वहां आडवाणी भी जा सकते हैं। नेतृत्व और संगठन पर कितना कुछ बोल सकते हैं। कुछ नहीं तो उनके सरकारी आवास में फूल होंगे, पौधे होंगे, पेड़ होंगे, उनसे ही उनका नाता बन गया होगा, उन पर ही लिख सकते थे। फिल्म की समीक्षा लिख सकते हैं। वे आडवाणी के अलावा भी आडवाणी हो सकते थे। वे होकर भी क्यों नहीं हैं!

आडवाणी ने अपने निवास में प्रेस कांफ्रेंस के लिए बकायदा एक हॉल बनवाया था। तब अपनी प्रासंगिकता को लेकर कितने आश्वस्त रहे होंगे। उस हॉल में कितने कार्यक्रम हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वे दिन में एक बार उस हॉल में लौटते होंगे। कैमरे और सवालों के शोर को सुनते होंगे। सुना है कुछ आवाज़ें दीवारों पर अपना घर बना लेती हैं। जहां वे सदियों तक गूंजती रहती हैं। क्या वो हॉल अब भी होगा वहां?

आडवाणी अपने एकांत के वर्तमान में ऐसे बैठे नज़र आते हैं जैसे उनका कोई इतिहास न हो। भाजपा आज अपने वर्तमान में शायद एक नया इतिहास देख रही है। आडवाणी उस इतिहास के वर्तमान में नहीं हैं। जैसे वो इतिहास में भी नहीं थे। वे दिल्ली में नहीं, अंडमान में लगते हैं। जहां समंदर की लहरों की निर्ममता सेलुलर की दीवारों से टकराती रहती है। दूर दूर तक कोई किनारा नज़र नहीं आता है। कहीं वे कोई डायरी तो नहीं लिख रहे हैं? दिल्ली के अंडमान की डायरी!

सत्ता से वजूद मिटा कांग्रेस का लेकिन नाम मिट गया आडवाणी का। सोनिया गांधी से अब भी लोग गाहे बगाहे मिलने चले जाते हैं। राष्ट्रपति के उम्मीदवार का नाम तय हो जाता है तो प्रधानमंत्री सोनिया गांधी को फोन करते हैं, जिनकी पार्टी से वो भारत को मुक्त कराना चाहते हैं। क्या उन्होंने आडवाणी जी को भी फोन किया होगा? आज की भाजपा आडवाणी मुक्त भाजपा है। उस भाजपा में आज कांग्रेस है, सपा है, बसपा है सब है। संस्थापक आडवाणी नहीं हैं। क्या किसी ने ऐसा भी कोई ट्वीट देखा है कि प्रधानमंत्री ने आडवाणी को भी राष्ट्रपति के उम्मीदवार के बारे में बताया है? क्या रामनाथ कोविंद मार्गदर्शक मंडल से भी मिलने जायेंगे? मार्गदर्शक मंडल। जिसका न कोई दर्शक है न कोई मार्ग।

भारतीय जनता पार्टी का यह संस्थापक विस्थापन की ज़िंदगी जी रहा है। वो न अब संस्कृति में है न ही राष्ट्रवाद के आख्यान में है। मुझे आडवाणी पर दया करने वाले पसंद नहीं हैं, न ही उनका मज़ाक उड़ाने वाले। आडवाणी हम सबकी नियति हैं। हम सबको एक दिन अपने जीवन में आडवाणी ही होना है। सत्ता से, संस्थान से और समाज से। मैं उनकी चुप्पी को अपने भीतर भी पढ़ना चाहता हूं। भारत की राजनीति में सन्यासी होने का दावा करने वाला प्रासंगिक हो रहे हैं और सन्यास से बचने वाले आडवाणी अप्रासंगिक हो रहे है। आडवाणी एक घटना की तरह घट रहे हैं। जिसे दुर्घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

जिन लोगों ने यह कहा है कि विपक्ष आडवाणी को अपना उम्मीदवार बना दे, वो आडवाणी के अनुशासित जीवन का अपमान कर रहे हैं। उन्हें यह पता नहीं है कि विपक्ष की हालत भी आडवाणी जैसी है। आडवाणी के साथ क्रूरता उनके साथ सहानुभूति रखने वाले भी कर रहे हैं और जो उनके साथ हैं वो तो कर ही रहे हैं। आडवाणी का एक दोष है। उन्होंने ज़िंदा होने की एक बुनियादी शर्त का पालन नहीं किया है। वो शर्त है बोलना। अगर राजनीति में रहते हुए बोल नहीं रहे हैं तो वे भी राजनीति के साथ धोखा कर रहे हैं तब जब राजनीति उनके साथ धोखा कर रही है। उन्हें ज़ोर से चीखना चाहिए। रोना चाहिए ताकि आवाज़ बाहर तक आए। अगर बग़ावत नहीं है तो वो भी कहना चाहिए। कहना चाहिए कि मैं खुश हूं। मैं डरता नहीं हूं। ये चुप्पी मेरा चुनाव है। न कि किसी के डर के कारण है।

आडवाणी की चुप्पी हमारे समय की सबसे शानदार पटकथा है। इस पटकथा को क्लाइमेक्स का इंतज़ार है। कुहासे से घिरी दिल्ली के राजपथ पर एक सीधा तना हुआ बूढ़ा चला आ रहा है। लाठी की ठक-ठक सुनाई देने लगी है। वो क़रीब आता जा रहा है। उसके बगल से टैंकों का काफ़िला तेज़ी से गुज़र रहा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर उनके दिए गए पुराने भाषण गूंज रहे हैं। टैंकों ने राष्ट्रवाद को संभाल लिया है और संस्कृति ने गाय। पितृपुरुष आडवाणी टैंकों के काफिले के बीच ठिठके से खड़े हैं। धीरे धीरे बोलने लगते हैं। ज़ोर ज़ोर से बोलने लगते हैं। रोने लगते हैं। मगर उनकी आवाज़ टैंकों के शोर में खो जा रही है। काफिला इतना लंबा है कि फिर चुप हो जाते हैं।

फिल्म का कैमरा टैंक से हटकर अब उस बूढ़े को साफ साफ देखने लगता है। क्लोज़ अप में आडवाणी दिखते हैं। बीजेपी के संस्थापक आडवाणी। गुरुदत्त की शॉल ओढ़े हुए राजपथ पर क्या कर रहे हैं! ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है…..ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…बाहें फैलाये हुए रायसीना हिल्स की तरफ देख रहे हैं। राष्ट्रपति का काफिला संसद की तरफ जा रहा है। लाल रंग की वर्दी में सिपाही घोड़ों पर बैठे हैं।

धीरे धीरे फ्रेम में एक शख़्स प्रवेश करता है। दीपक चोपड़ा। आडवाणी के रथ का सारथी। आडवाणी के एकांत का बेमिसाल साथी। दीपक चोपड़ा आडवाणी की तरफ देख रहे हैं। उनके पास डायरी है। उस डायरी में आडवाणी से मिलने के लिए समय मांगने वालों के नाम हैं। अब वही नाम इन दिनों किसी और से मिल रहे हैं। रायसीना हिल्स से एक रिपोर्टर भागता हुआ करीब आता है। दीपक जी….आप आडवाणी जी के साथ क्यों हैं? आप उन सबके साथ क्यों नहीं हैं जो इस वक्त संसद में हैं।

कैमरा दीपक चोपड़ा के चहरे पर है। उनके होंठ आधे खुले रह जाते हैं। आंखों में एक अंतहीन गहराई है। जिसकी खाई में सत्ता की एक कुर्सी टूटी पड़ी है। कुछ पुराने फ्रेम हैं जिसमें आडवाणी जी बड़े बड़े नेताओं से मिल रहे हैं। हाथ जोड़े हुए हैं, आंखें बंद हैं और मुस्कुरा रहे हैं। हर फ्रेम में दीपक चोपड़ा हैं।

रिपोर्टर को जवाब मिल जाता है। वो अब दूसरा सवाल करता है…क्या आडवाणी जी अब भी बोलेंगे….क्या वे अकेले हैं…क्या वे रोते हैं..क्या वे दिन भर चुप रहे हैं..क्या उनसे कोई मिलने आता है….संस्थापक विस्थापन क्यों झेल रहा है…क्या ये सब कांग्रेस की साज़िश है….दीपक चोपड़ा चुप हैं।

इसी सीन पर डायरेक्टर कट कहता है मगर पैक-अप नहीं कहता। अपनी टीम से कहता है…इंतज़ार करो। देखो, यह बूढ़ा राजपथ से किस तरफ मुड़ता है, मुड़ता भी है या यहीं अनंत काल तक खड़ा रहता है। असिस्टेंट डायरेक्टर कहता है…सर, हम साइलेंस शूट करेंगे या साउंड….डायरेक्टर कहता है…साउंड शूट करना होता तो मैं संसद में होता जहां नए राष्ट्रपति का स्वागत हो रहा है, जहां नए नए नारे लग रहे हैं….मैं साइलेंस शूट करने आया हूं। उस डर को कैप्चर करने जो इस वक्त आडवाणी जी के चेहरे पर है। वो डर ही उनकी चुप्पी है।

रविवार, 23 जुलाई 2017

जीतता भारत और हारता चीन

दोक्लम् मुद्दे पर भारत-चीन के बीच पनपी तनातनी पर विश्व के तमाम देशों की निगाहें हैं। भूमाफिया चीन का करीब-करीब अपने सभी पड़ोसियों से छत्तीस का आंकड़ा है। दोक्लम् विवाद से दुनिया के देशों में भारत के शक्तिशाली होने का सन्देश गया है। चीन को लेकर हमारी जो विदेश नीति और कूटनीति हमेशा रक्षात्मक रही है, वो अब आक्रामक हुई है। चीन को भारत की आक्रामक कूटनीति नें घुटनों के बल ला दिया है। जापान, ताइवान, वियतनाम, इंडोनेशिया, म्यांमार, फिलीपीन्स, भूटान आदि देश जो कि कहीं न कहीं चीन की दादागीरी से पीड़ित रहे हैं, वे आज भारत के वर्चश्व की छतरी की नीचे लामबंद होकर खड़े हो रहे हैं। निःसंदेह इसका श्रेय नरेंद्र मोदी की सरकार को ही जाता है। 
हिन्द महासागर में मालाबार युद्धाभ्यास जो कि भारत-अमेरिका-जापान की नौसेनाओं के मध्य हुआ है, उसने चीन की नींद उड़ाकर रख दी है। दक्षिणी चीन सागर विवाद में चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अदालत की अवमानना से दुनिया में उसकी साख घटी है, जबकि मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार की वजह से दुनिया में भारत का महत्त्व बढ़ा है। पाकिस्तानी आतंकवादियों को चीन का खुला समर्थन दुनिया में खुद चीन की साख को बट्टा लगाने के लिए काफी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आज की स्थिति में भारत को चीन से कोई खतरा नहीं है बल्कि खुद चीन भारत से डरा हुआ है। अपने आका चीन को इस स्थिति में फंसा देख पाकिस्तान जरूर दंग, हताश और परेशान है।

शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

भारत-इस्रायल संबंधों पर वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव का नजरिया

आज नाथूला के पास आशांकित चीनी आक्रमण पर इसराइल से शस्त्रों की सहायता मिलने का भाजपा सरकार को पूरा भरोसा है। नए दौर वाले रिश्तों का यही लाभ है। यह वक्त-2 की बात है। भाजपा और भारतीय जनसंघ भी कैसे बदले हैं ? इसराइल पर उनकी दृष्टि कैसे सम्यक हुई है ?
तब 1977 मोरारजी देसाई वाली जनता पार्टी की सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे। इसराइल के विदेष मंत्री मोशे दयान दिल्ली आये थे। अगस्त माह में लुकते छिपते, छद्म वेष में। उनकी मषहूर कानी आंख जो सदा ढकी रहती थी, और निजी पहचान बन गई थी। पट्टी से आवृत्त थी, मतलब यही कि कोई उन्हें पहचान तक नही सकता था। निषा के अंधेरे में मोषे दयान की अटल बिहारी वाजपेयी से गुप्त स्थान पर भेंट हुई। मोरारजी देसाई से भी मोषे दयान अनजानी जगह वार्ता हेतु मिले। पर जनता पार्टी के इस प्रधानमंत्री के कड़े निर्देष थे कि मोषे दयान से भेंट की बात पूरी तरह से रहस्य रहे। वर्ना इसराइली विदेष मंत्री से मुलाकात की चर्चा से ”मेरी सरकार ही गिर सकती है।“ संपादक एमजे अकबर ने इस गोपनीय घटना को खूब प्रचारित किया (आज वे विदेष राज्य मंत्री हैं।) 
तो ऐसी दषा, बल्कि दुर्दषा थी भारत-इसराइल के संबंधों की। यहूदी सरकार से इतना आतंक ? वह भी (उस समय के) कट्टर हिन्दूवादी अटल बिहारी वाजपेयी की हिचकिचाहट, जो विगत कई वर्षों से संसद में विपक्षके सदस्य के नाते इसराइल के प्रतिबद्ध पक्षधर रहे थे।
गौर कीजिए इतना जबरदस्त दबाव था अरब शेखों का, भारत के मुस्लिम वोटरों का, और सेक्युलर ढोंगियों का। हालांकि 1962 में जवाहरलाल नेहरू को चीन के आक्रमण पर, 1965 में लाल बहादुर शास्त्री को मार्षल मोहम्मद अयूब खां द्वारा हमले पर और 1971 में इंदिरा गांधी को बांग्लादेष मुक्ति संघर्ष पर इसराइली सैन्य उपकरण भारतीय सेना को दिये गये थे। फिर भी इसराइल को बल्लियों दूर रखना कांग्रेसी प्रधान प्रधानमंत्रियों की कृतघ्नता थी। हिन्दूवादी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनकर उसी लीक पर चले। मगर उनके पहले थोडा बदलाव लाये थे पी.वी. नरसिह्म राव (1992 में), जब इसराइली दूत को मुम्बई में कार्यालय के लिए ठौर किराये पर दिया था।
इसी परिवेष में जरा परखें छप्पन इंच सीनेवाले, कभी चाय बेचनेवाले, बहुमत की सरकार चला रहे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे, हिन्दुओं के दिलों के राजा, गौरक्षक, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को। मोदी खुल्लमखुल्ला, डंका बजाकर, पांचजन्य फूंक कर इसराईल गये। बाकी जो कुछ कहा, लिखा और लिया-दिया हो, मगर मोदी ने येरूषलभ के होटल के झरोखे से अल कुद्दस तीर्थकेन्द्र देख ही लिया। यह मुसलमानों के लिए पवित्र कैलाष सरीखा, यहूदिया के लिए अमरनाथ सरीखा, इसाईयों के लिए केदारनाथ सरीखा है, लेकिन है यह विवादित धर्मस्थल जैसे काषी, अयोध्या और मथुरा इत्यादि।
नरसिह्म राव के अलावा मोदी ही भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इस शामी नस्लवाले यहूदी राष्ट्र से आत्मीयता दर्षायी। दुनिया में अलग थलग पड़े इस रेतीली, पथरीले इलाके को चमन बनानेवालों में भारत से गये अस्सी हजार यहूदी हैं जो केरल, गुजराल, महाराष्ट्र के थे। अब एषिया के दो गणराज्यों के इन प्रधानमंत्रियों की काया-भाषा (बाडी लेंगुयेज) का अर्थ निकालें, संकेतों की व्याख्या देखें। दोनों के कुषल क्षेम जानने और आदाबअर्ज की शैली से स्पष्ट है कि विष्व के किसी भी राष्ट्रध्याक्षाओं ने आज तक चालीस मिनट में तीन बार परिरंभण नही किया होगा। दो दिनों के प्रवास में जब भी मिले तो मोदी उनसे होली वाला आलिंगन करते रहे। नरेंद्र मोदी और नेतनयाहू ने बेनगुरियन विमान स्थल पर स्नेह की ऐसी ही प्रगाढता पेष की। समूची काबीना मंत्रालय छोड़कर एयर इंडिया के विमान की बाट जोहे ? अद्भुत है। राष्ट्रपति रेवेलिन से किसी ने पूछा कि सारे नियमों को तोड़कर पूरी काबीना विमानपत्तनम पर मोदी के स्वागत में खड़ी है तो उन्होंने कहा ”षिष्टता महज़ एक औपचारिक रीति है। दोस्तों से औपचारिकता कैसी ? मोदी मित्र हैं। मोदी का ”ष्लोम“ का उच्चारण करना, जिसके हीब्रयु भाष्य में अर्थ है ”षुभम“ और भारत में सलाम। श्लेषालंकार का मोदी ने नमूना पेष किया यह कहकर कि ”ई“ माने इण्डिया और ”ई“ माने इसराइल। नेतनयाहू ने कह भी दिया कि भारत तथा इसराइल के ये दोनों व्यक्ति विष्व का जुगराफिया बदल सकते है। यह गठजोड़ जन्नत में रचा गया है। हीब्रयू में नेतनयाहू के अर्थ है जबरदस्त जीत। और संस्कृत में पुरूषों में श्रेष्ठ को नरेंद्र कहा जाता है। आगे क्या होगा, यह संकेत बतायेंगे।
एक बड़ी गूढ उक्ति थी नेतनयाहू की। वे बोले कि वर्षां पूर्व शादी तय करने अपनी प्रेयसी को लेकर एक भारतीय (कष्मीरी) रेस्त्रां में गये थे। परिणाम स्वरूप उनकी दो सुंदर संताने हुईं। मोदी का स्वागत करने के लिए फिर उसी भारतीय भोजनालय से इसराइली प्रधानमंत्री ने खाना मंगवाकर खाया और मोदी को खिलाया था। इस बार क्या जन्मेगा ? देखना बाकी है। मोदी की यहूदी देष की गर्मजोषीवाली यात्रा अरब देषों में सनसनी पैदा कर चुकी है। मगर मोदी भी जानते हैं कि कष्मीर को ये अरब देष पाकिस्तान का हिस्सा मानते है। जब भारत का ब्रिटिष विभाजन कर रहे थे तो इन मुस्लिम राष्ट्रों ने जिन्ना की पाकिस्तान वाली मांग का पुरजोर समर्थन किया था। मगर उन्ही ब्रिटिष ने जब फिलीस्तीन का बंटवारा कर इसराइल बनाया तो ये अरब विद्रोह कर बैठे और उसे इस्लाम पर हमला करार दिया। इन देषों का एक संगठन है आर्गेनिजेषन ऑफ इस्लामी कंट्रीज जिसमे हमेषा पाकिस्तान को भाई माना और ”हिन्दू भारत“ से दूरी रखी। इसका सम्मेलन एक बार मोरक्को की राजधानी रब्बात में हुआ था। भारत आमंत्रित नहीं था। फिर भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फखुद्दीन अली अहमद को भेजा। वहां निहायत बेअदबी से इस भारतीय मुसलमान से ये सब अरब  पेष आये। जब अहमद ने सुबह गरम पानी मांगा कि दाढी बना सके, तो जवाब मिला, ”सच्चा मुसलमान दाढी रखता है। मूढता नही है।“ गरम पानी नही दिया गया। 
ये सारे मुस्लिम देष इसराइल के शत्रु है। कुछ चीन के भी। अतः मोदी की यात्रा से एक लाभ तो मिला कि हमारे शत्रु (पाकिस्तान और चीन) के शत्रु हमारे मित्र होंगे।) इसराइल से रिष्तों का इसलिए भी महत्व है। मोदी ने एक कलाकारी और की। इसराइल का राष्ट्रध्वज सफेद पर नीली धारियों वाला है। इसे स्टार आफ डेविड कहते है। दो त्रिकोण है। ये सनातन धर्म में षटकोण हैं। यषोदानन्द कृष्ण का प्रतीक है। ब्रहम संहिता में इसका उल्लेख है। इसके अर्थ में प्रत्येक कोण एक सूचक है। पहला है विचार, फिर शब्द, क्रिया, स्वभाव, चरित्र और नियति। सूत्र है ”लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु।“ इसमें विष्व कल्याण की भावना निहित है। पांच हजार वर्ष पुराने इस नीले स्टार ऑफ डेविड पताका ने चान्द सितारे वाले हरे परचम से सदियों से टक्क्र ली है। आज भी भिड़ा पड़ा है। मोदी ने इसमे तड़का छौंका जब अपने घवल सूट की जेब से नीला रुमाल झलकाया। ”हम एक है“ वाली भावना। आखिर इन दोनों प्राचीन राष्ट्रों की संस्कृति भी पांच हजार वर्षों पुरानी है। 
अब विदेष नीति की बाबत। राष्ट्रभक्ति ही उसका आधार होता है। मजहब या कबीला नही। जो मुसलमान मोदी की यहूदियों से यारी के आलोचक हैं उन्हे स्मरण कराना पड़ेगा। इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और विष्वनाथ प्रताप सिंह ने इसराइली और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों से संयुक्त कार्यवाही और सहयोग को प्रोत्साहित किया था। भारतीय संस्था ”रा“ से कही अधिक दुरूह तथा दुर्दान्त इसराइल का मोसाद है। यह सर्वविदित हैं कि इसके प्रमुख नाहुम एडमोनी की 1970 से नई दिल्ली में इन्दिरा गांधी के उच्चतम गुप्तचर मुखिया आर.एन. काओ से करीबी थी। मोसाद के अन्य प्रमुख शब्ताई शामित और एप्रहेम हालेबी की राजीव गांधी तथा विष्वनाथ प्रताप सिंह से कई गोपनीय मुलाकातें होती थी। ये दोंनों प्रधानमंत्री लोग भारतीय मुसलमानों के अत्यंत चहेते रहनुमा थे। इस्लामी जम्हुरियाये पाकिस्तान के विदेष मंत्री मियां खुर्षीद कसूरी ने (6 सितंबर 2005) को ऐलानिया तौर पर बताया था कि पाकिस्तान और इसराइल के ”गुप्त ताल्लुकात“ गत एक  दषक से चल रहे हैं।“ अब क्या और प्रमाण चाहिए कि मुस्लिम राष्ट्र भी यहूदी इसराइल से सौदेबाजी करते रहे।

K Vikram Rao
Mob: 9415000909

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है

वित्तविहीन शिक्षकों पर लाठीचार्ज.....मतलब मेरे को मारना है। देख लीजियेगा इन 2 लाख लाचार और मज़बूर शिक्षकों की हाय और संघर्ष यूपी की इस संवेदनहीन सरकार के पतन की पटकथा लिखेगी। संभवतः योगी सरकार के माध्यमिक शिक्षा मंत्री नें अपनी प्राथमिक शिक्षा में यह पंक्ति नहीं पढ़ी है कि "मुई खाल की स्वांस सो सार भष्म होइ जाय" आशय ये कि जब मरी खाल की धौकनी लोहा भष्म कर सकती है, तो फिर किसी सरकार की क्या बिशात?
  माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा के अध्यक्ष और वर्तमान में एमएलसी उमेश द्विवेदी की संघर्ष जिजीविषा को नौसिखिया और अनुभवहीन मंत्रीमंडली के सीएम योगीनाथ शयद अभी नहीं भांप पाये हैं। पिछली सपा सरकार नें भी वित्तविहीन शिक्षकों को मानदेय कोई खैरात में नहीं दिया था, बल्कि उमेशजी के नेतृत्व में वित्तविहीन शिक्षकों के संगठित संघर्ष का नतीजा था। बाबा भी देंगे, लेकिन झेलने और झिलाने के बाद। मेरी जब भी इन शिक्षकों और उनके नेताओं से बात हुई तो उनके हावभाव और वाणी नें मुझे सिर्फ और सिर्फ यही एहसास कराया मानों वो कह रहे हो कि "देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है"

सिर्फ बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ या फिर उसके हौसले भी बढ़ाओ?


"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" एक अच्छा नारा है
मैं तो कहूंगा कि बेटियों के हौसले भी बढ़ाओ
एक तेज़ तर्रार पुलिस अधिकारी को 
ट्रांसफर की सजा
सिर्फ इसलिए कि उसने
सत्ताधारियों का प्रेसर
अपने सर पर नहीं धारण किया
काटे चालान
तोडा अहंकार
हेंकड़ सत्ताधारियो का
इस बेटी को मिलना चाहिये था इनाम
मिली सजा
क्या ये कथनी करनी का भेद नहीं?
इंदिरा के काफिले की गाड़ी का भी
कटा था चालान
काटा था एक बेटी नें
बढ़ाया गया था हौसला
दिया गया था सम्मान
उस बेटी को मिली थी पहचान
किरण बेदी के रूप में
कथनी और करनी को एक करना ही
"योग" है
अगर आप हैं योगी
तो इस योग को दीजिये महिमा
आप तो पीटी को योग मान बैठे है "राजन"

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

माया को देखा तो ऐसा लगा, जैसे.....

आज माया को देखा
सदन में चीखते चिल्लाते
झल्लाते हुए कागज़ और पैर पटकते।
सोंचा हूँ सारा दिन
आखिर ऐसा क्यों?
ये भाजपाई मुरटटों की
टोकी टाकी का असर है
या उनकी खुद पर झुंझलाहट?
माया दलितों की नेता नहीं देवी थी
इन दलितों को उन पर विश्वास नहीं आस्था थी
लोग कार्यकर्त्ता नहीं उनके भक्त होते थे
वो फूलों की नहीं नोटों की माला पहनती थी
वो लोगों की नहीं,लोग उनकी सुनते थे
वो भाषण देती नहीं पढ़ती थी
वो टिकट बाँटती नहीं बेंचती थी
वो लख़नऊ में रहती नहीं, बल्कि सत्ता चलाने आती थी
उन्हें विपक्ष धर्म नहीं, बल्कि सत्ता धर्म बखूबी भाता था
नौकरशाह उनकी इज़्ज़त नहीं, बल्कि डरते थे
सबको उनसे और उन्हें सबसे खतरा था
लोग उन्हें जानते गए
ठीक से पहचानते गए
पर अफ़सोस 
वो लोगों को न तो जान पायी
और न पहचान
जमाना और लोग धीरे धीरे 
बदल रहे थे
पर वो न बदली
क्योंकि उन्हें मुगालता था कि 
वो लोगों और ज़माने
दोनों को बदलने में सक्षम हैं
आज की ये घटना "राजन"
उनके मुगालते के
नेस्तनाबूत होने की बानगी है
चलो माया तो अपने नक्शेकदम बदल दीं
पर उनका क्या
जो आज
कल वाली माया के 
नक्शेकदम पर चल रहे हैं।


रविवार, 16 जुलाई 2017

मोदी जी ! राजीव गांधी के प्रभाव के आगे ढक्कन है आपका काला जादू


पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के इस चित्र को हर भारतीय को गौर से और गर्व से देखना चाहिए। गौर से इसलिए क्योंकि इस चित्र में खुद अमेरिकी राष्ट्रपति राजीव गांधी के ऊपर छतरी ताने खड़े है, और गर्व से इसलिये क्योंकि ये चित्र तबका है, जब भारत गुट निरपेक्ष होते हुए भी सोवियत संघ यानि रूस के करीब हुआ करता था। 1985 में पीएम बनने के बाद स्व0 राजीव जी अमेरिकी दौरे पर गए थे। तब राष्ट्रपति रीगन खुद अपने हाँथ में छाता थामकर उन्हें उनकी कार तक छोंड़ने आये थे। 
आप जरा कल्पना करिये कि अगर आज की विदेश नीति के नए पुरोधा पीएम नरेंद्र मोदी जी के सर पर इस्रायल के पीएम नेतन्याहू या फिर ट्रम्प नें इस तरह छतरी तान दी होती तो उनके प्रसंशक और मीडिया विदेश नीति के इस नए चाणक्य के लिए न जानें कौन कौन से मुहावरे ग़ढ रहे होते। कहने का आशय यह है कि विदेश नीति की सफलता या असफलता का पैमाना दृश्य नहीं तथ्य होते हैं, और तथ्यों के आधार पर मोदी जी की विदेशनीति को मैं फेल मानता हूँ, जबकि दृश्य आधार पर वह पास है।

शनिवार, 15 जुलाई 2017

ये शिक्षक है, सब जानता है

प्रिय शिक्षक साथियों !
वित्तविहीन शिक्षकों के मानदेय पर सरकार चुप है, लिख कर दे रही है कि मानदेय देने की हमारी कोई नीति नहीं है। इस पर मैं स्वयं उप मुख्य मंत्री जी व मुख्यमंत्री जी से कई बार मिला। वो कह रहे हैं कि किसानो की क़र्ज़ माफ़ी में सारा बजट काट कर देना पड़ गया, अतः आप लोग थोड़ा रुकिए, मतलब चुनावी वर्ष का इंतज़ार करिए। इससे आक्रोशित लाखों शिक्षक 18 जुलाई 17 को विधान सभा घेरने आ रहे है। इस पर सरकार का कोई सकारात्मक बयान नही आ रहा है। 
    दुर्भाग्य की बात यह है कि कल तक शिक्षकों के मशीहा कहलाने वाले कुछ तथाकथित शिक्षक नेता ही सरकारी घोषणा व अनाप - सनाप ओछी बयानबाज़ी कर  शिक्षकों को गुमराह कर रहे हैं। उनका ये कृत्य निंदनीय है। अरे बूढ़े हो गए, लड़ने की सामर्थ्य खो चुके हो तो कम से कम लड़ने वालों को तो हतोत्साहित न करो।
   बाक़ी "ये शिक्षक है सब जानता है"

आपका अपना- उमेश द्विवेदी, शिक्षक एमएलसी, यूपी,
                               

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

सत्ता तू क्यों निर्मम है?

सत्ता तू क्यों निर्मम है?
झूंठ, कपट, छल तुझमें बसते
सब पर तू, सब तुझपर हँसते
ईश्वर को तू दोषी करती
दोषी तेरे सर्वम् हैं।
  सत्ता तू क्यों निर्मम है?
           राम-सिया तू विलग कराती
           लछिमन सा भाई छुंडवाती
           संकट के साथी बिछड़ाती
           स्वार्थी तेरे प्रियतम हैं।
           सत्ता तू क्यों निर्मम है?
धर्म से तेरा कैसा वास्ता
तेरा उसका अलग रास्ता
धर्म का भी तू शोषण करती
लगती गुत्था-गुत्थम है।
सत्ता तू क्यों निर्मम है?
          "राजन" तेरा नहीं भरोसा
          किसने नहीं है तुझको कोसा?
          योगी को तू भोगी करती
          भोगी तुझे योगी सम है।
          सत्ता तू क्यों निर्मम है?

सोमवार, 10 जुलाई 2017

मोदी जी क्या सैनिकों और पत्थरबाजों दोनों को मुआवजा देकर मिटायेंगे आतंकवाद?

कश्मीर के दुर्दांत आतंकवादियों से मुज़फ्फर नगर के अदने से अपराधी संदीप कुमार शर्मा का गठजोड़। कश्मीर में ही जीप के बोनट पर बांधे गए पत्थरबाज को 10 लाख के मुआवज़े का एलान। फिर अमरनाथ यात्रियों पर आतंकवादियों का कायराना हमला। जिसमें 7 गुजराती यात्रियों की मौत की खबर। अब जब पत्थरबाज भी मुआवज़ा पाएंगे, तो जाहिर सी बात है कि ऐसी आतंकी घटनाओं को ही प्रोत्साहन मिलेगा। इन सब नकारात्मक बातों के बीच एक बड़ी सकारात्मक बात यह है कि आतंकियों के पास फंड यानि धन की कमी हो गयी है। तभी ये हरामजादे संदीप शर्मा जैसे लुच्चे अपराधियो की मदद लेकर एटीएम लूट रहे हैं। मतलब साफ है कि नोटबंदी नें इन सूअरों की कमर तोड़ने का काम किया है।
इजरायल से लगातार 3 दिन तक आतंक के खिलाफ मज़बूत लड़ाई की सीख लेकर वापस आये हमारे प्रधानमंत्री का स्वागत देश के अंदर मौजूद पाकिस्तानी कुत्तों नें अमरनाथ यात्रियों पर हमला करके किया है। इजरायल से सिर्फ हथियार और टेक्नोलॉजी लेकर इन पाकिस्तानी और उसके समर्थक कुछ सुअरजादों का इलाज़ नहीं हो सकता। हमें इज़रायली इक्षाशक्ति भी इजरायल से आयात करनी होगी। आखिर सैनिकों और पत्थरबाजों दोनों को मुआवज़ा देकर हम आतंकवाद को कैसे मिटा सकते हैं? ये बात केंद्र और जम्मू कश्मीर सरकार को देश की जनता को बताना होगा।

रविवार, 9 जुलाई 2017

वित्तविहीन शिक्षक महासभा प्रगति की ओर अग्रसर: उमेश

 आज स्वo विजय त्रिपाठी प्रदेश अध्यक्ष के असामयिक निधन से ख़ाली चल रहे अध्यक्ष पद पर आदरणीय संजीव बाजपेयी को सर्व सम्मति से अध्यक्ष मनोनीत किया गया, जो कि पहले से ही कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष थे। बाजपेयी जी इलाहाबाद स्थित दिव्याभा गर्ल्स इoकाo व डिग्री काo के प्रबंधक हैं, साथ ही महासभा में निर्विवाद एवं संघर्षशील छवि के व्यक्ति हैं। हम सभी उम्मीद करते हैं कि उनके कुशल नेतृत्व में प्रबंधक महासभा उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर चल कर अपने लक्ष्य में सफल होगी । मेरे व शिक्षक महासभा की ओर से आदरणीय बाजपेयी जी को हार्दिक बधाई व शुभकामना। 
         आज ही इलाहाबाद में एडेड गुट ( माध्यमिक शिक्षक संघ ) के आदरणीय रामसेवक त्रिपाठी भी कई वरिष्ठ पदाधिकारी व सदस्यों के साथ वित्तविहीन शिक्षक महासभा के कुशल नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त करते हुए महासभा में सम्मिलित हुए। उन्हें प्रदेश महासचिव का दायित्व देकर पूरे प्रदेश में एडेड शिक्षकों को संगठन से जोड़ने का कार्य सौंपा गया व हार्दिक बधाई दी गयी।
आपका अपना- उमेश द्विवेदी, शिक्षक एमएलसी, यूपी

ऐसा सीएम कब आएगा?


मैं अगर यूपी का सीएम होता तो अपने आवास और आफिस में बैठकर चाटुकार अफसरों से "राज्य के क्या समाचार है" बिलकुल भी न पूंछता, और न ही मीडिया चैनलों और अख़बारों की बातों पर पूरा भरोसा करता। बल्कि वेश बदलकर गुपचुप तरीके से अपने राज्य में भ्रमण करता, और जानता कि राज्य और सरकार के क्या समाचार हैं? हफ़्तों पहले जब अधिकारियों और कर्मचारियों को पहले से ही पता हो कि अमुक दिन हमारा मुखिया हमारा काम देखने आएगा, तब तक ऐसा कौन सा मुर्ख अधिकारी और कर्मचारी होगा जोकि अपनी कमियों को न ढक लेगा। ऐसे आकस्मिक दौरों को मैं सिर्फ जनता के ही साथ धोखा मानता हूँ।
आखिर क्यों कोई सीएम आकस्मात और वेश बदलकर अपनी सरकार और राज्य के हालचाल जानने जनता के बीच नहीं जाता, जबकि पूर्व के अनेंक राजा इस तरह की ट्रिकों का इस्तेमाल राज्य के समाचार जानने के लिए किया करते थे।

शनिवार, 8 जुलाई 2017

मंत्रिमंडल से खिसकती योगी कमान



(विजय शंकर पंकज)
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की कमान संभालते ही युवा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर मंत्रिमंडल एवं राज्य प्रशासन पर एकाधिकार करने की कोशिश की। सरकार के तीन माह बीतने पर मुख्यमंत्री ने जो उपलब्धिया गिनायी, वह तो जनता पर असरदार नही साबित हुई परन्तु इस बीच मंत्रिमंडल सहयोगियों से उनकी कमान धीरे-धीरे कमजोर होने लगी है तो प्रशासनिक मशीनरी पर योगी हनक निष्प्रभावी हुई है। राजनीतिक हलकों में इसकी समीक्षा योगी की कमजोर राजनीति और प्रशासनिक अनुभवहीनता बतायी जा रही है। जुलाई माह में बजट पारित होने के बाद योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री के रूप में इन दोनों ही मोर्चो पर कसौटी शुरू होगी।
भारी बहुमत और नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह जैसे नेताओं के आर्शिवाद से मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी आदित्यनाथ इतने कम समय में राजनीतिक तथा प्रशासनिक मोर्चे पर कमजोर साबित होगे, इसका शायद किसी को एहसास नही था। वैसे तो सरकार बनने और विभाग बंटवारे के बाद ही विधायकों एवं मंत्रियों की नाराजगी की बाते उभरने लगी थी परन्तु उस समय कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नही था। प्रदेश में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा इस प्रकार है कि कैबिनेट और राज्यमंत्री तक नही समझ पा रहे है कि उन्हें क्या और किस प्रकार का काम करना है। इस मुद्दे को लेकर योगी सरकार के डेढï दर्जन मंत्री असंतोष के स्वर उभारने लगे है। सबसे बडïा मुद्दा तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का है जो योगी से पहले ही मुख्यमंत्री की रेस में थे। सरकार बनने के बाद मौर्या की दो-तीन घटनाओं ने योगी तथा मौर्या के बीच की खाई को बढाया है। इसमें एनेक्सी सचिवालय में केशव मौर्या का मुख्यमंत्री कार्यालय पर जबरन कब्जा करना, दिल्ली के यूपी सदन में मुख्यमंत्री के सूट को रात में दबाव में खुलवाने की कोशिश से लेकर मुख्यमंत्री की तर्ज पर कई मंत्रियों के विभागों में हस्तक्षेप की घटनाओं ने सरकार की भद्द करायी। इसी प्रकार वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना को भी उपमुख्यमंत्री न होने का गम साल रहा है जबकि वह भी मुख्यमंत्री के समक्ष मानकर चल रहे है। ईमानदार और सादगी के प्रतीक सुरेश खन्ना की अब कार्यकर्ताओं से मुलाकात नही होती। योगी सरकार का सबसे पहला भ्रष्टाचार का मामला गोमती रिवर फ्रंट की जांच को आगे बढïाने का दायित्व सुरेश खन्ना पर ही था परन्तु अज्ञात प्रभाव में आकर वह पूरी इसके आरोपियों को बचाने में ही जुट गये। इस मुद्दे को लेकर नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना एवं सिंचाई मंत्री धर्मपाल के बीच तकरार होने पर अन्त में मुख्यमंत्री योगी को दखल देने पडïा और भारी दबाव के बीच खन्ना ने बेमन से रिवर फ्रंट की जांच का मसला सौंपा।
योगी मंत्रिमंडल के ज्यादातर सहयोगी दल के मंत्री अपने विभागों को लेकर नाराज है। सहयोगी दलों के वरिष्ठ मंत्रियों को भी ऐसे विभाग दिये गये है जैसे वे अब भी भाजपा से बाहरी तत्व दिखायी दे रहे है। स्वामी प्रसाद मौर्या, एस.पी.सिंह बघेल, ओम प्रकाश राजभर, बृजेश पाठक, चौधरी लक्ष्मी नारायण अपने विभागों को लेकर खुश नही है। ओम प्रकाश राजभर ने एक लेखपाल के खेत की पैमाइश न करने की बात को लेकर गाजीपुर से लेकर लखनऊ तक ऐसा बावेला खडïा किया कि मुख्यमंत्री को गाजीपुर के जिलाधिकारी से यह कहना पडïा कि जरा मंत्री जी की बातों का ख्याल रखे। ओम प्रकाश राजभर का दर्द है कि वह भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष है और उन्ही की बगल की सीट से जीते दारा सिंह चौहान को बन जैसा बडïा विभाग मिला जबकि उन्हें कैबिनेट मंत्री होते हुए भी पिछडïा वर्ग कल्याण मिला। यही नही ओम प्रकाश ने योगी की सहानुभूति लेने के लिए गाजीपुर के मसले में केन्द्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा को भी घसीटने की कोशिश की। इसी प्रकार अन्य सहयोगी दलों के मंत्री भी विभागों को लेकर सरकार के साथ असहयोग अभियान चला रहे है। इन सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं तथा भाजपा कार्यकर्ताओं में क्षेत्रों में टकराव की स्थिति बनी हुई है।
योगी सरकार के भाजपा के भी कई मंत्री अपने विभागों को लेकर नाराज चल रहे है। इनमें से कुछ को यह आश्वासन मिला है कि अगले विस्तार के बाद उनके विभागों में फेरबदल किया जाएगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह को कैबिनेट के रूप में ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा (आर.इ.एस.)की जिम्मेदारी दी गयी है जबकि यह कोई विभाग नही बल्कि एक कार्यदायी संस्था है। मंत्रिमंडल की नाराजगी तथा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मामला मोती सिंह ने पिछले दिनों प्रतापगढï जिले की एक जनसभा में उठाया। मोती सिंह ने कहा कि कार्यकर्ताओं का काम न हो तो भाजपा एवं सहयोगी दलों के विधायकों एवं सांसद के मुंह पर कालिख दे। भाजपा नेताओं में सबसे ज्यादा नाराजगी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं में दिल्ली उत्पादित श्रीकांत शर्मा एवं सिद्धार्थ नाथ सिंह को लेकर है। आरोप है कि ये दोनों मंत्री भाजपा के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को पहचानते ही नही है और नही उनकी सुनवाई होती है। यह दोनों ही पहली बार विधायक बने है और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी है। भाजपा मंत्रियों में सतीश महाना, सत्यदेव पचौरी, रमापति शास्त्री इस बात को लेकर असंतुष्ट है कि पार्टी में उनके कद को देखते हुए समुचित विभाग नही दिये गये जबकि उनसे जुनियर को ज्यादा महत्व दिया गया। इनके अलावा कई राज्यमंत्री भी अपने विभागों को लेकर संतुष्ट नही है। तेज तर्रार युवा नेता महेन्द्र सिंह अपने समर्थकों के बीच इस बीच को नाराज है कि उनके पास ग्राम विकास जैसा विभाग है जिसके पास गांवों के विकास काम करने की कोई धनराशि नही है। ग्राम विकास की धनराशि पंचायती राज के पास है जो भूपेन्द्र सिंह चौधरी के पास है। महेन्द्र सिंह के पास राज्यमंत्री के रूप में स्वास्थ्य विभाग भी है परन्तु कैबिनेट सिद्धार्थ नाथ सिंह के समक्ष उनकी नही चलती है। इसी प्रकार युवा तुर्क स्वतंत्रदेव सिंह परिवहन विभाग की कार्यशैली से खुश नही है और राज्यमंत्री के रुप में ऊर्जा विभाग में श्रीकांत शर्मा के समक्ष उनकी चलती नही है। इसी प्रकार धर्म सिंह सैनी, उपेन्द्र तिवारी तथा अनिल राजभर भी विभागीय बंटवारे तथा कार्य प्रभार को लेकर असंतुष्ट चल रहे है। मंत्रिमंडल के विभागीय बंटवारे में सबसे ज्यादा विवादास्पद विभाग दो महिलाओं अनुपमा जायसवाल तथा अर्चना पाण्डेय को दिया गया है। इन विभागों की कार्यशैली को भी लेकर योगी सरकार पर सवाल उठने लगे है।
प्रशासनिक मशीनरी पर कमान्ड को लेकर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर पार्टी में ही सवाल उठने लगे है। मुख्यमंत्री को अपने स्टाफ  की नियुक्ति करने में ही लगभग दो माह का समय लग गया तो नये मुख्यसचिव की नियुक्ति तीन माह बाद हो सकी। सरकार बनने के बाद योगी ने चीनी मिल बिक्री घोटाले को बडïा मुद बनाया, उसका विभागीय प्रमुख सचिव रहते राहुल भटनागर की भूमिका संदिज्ध थी जो तीन माह तक योगी के मुख्यसचिव रहे। यही कारण है कि चीनी मिलों की बिक्री घोटाले का मामला अब ठंढïे बस्ते में चला गया है। तबादले के बाद भी राहुल भटनागर को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी है। हालात यह है कि अधिकारियों के तबादले में योगी मंत्रियों की दखलन्दाजी से ज्यादा भाजपा संगठन के एक पदाधिकारी की भूमिका ज्यादा बढïती जा रही है। कई कैबिनेट मंत्री अपनी पसन्द के अधिकारी को प्रमुख सचिव बनाने को लेकर योगी पर दबाव बना रहे है। मंत्रियों से ज्यादा लंबी सूची अधिकारियों के तबादले की भाजपा प्रदेश कार्यालय से पहुंच रहा है। यह मामला सरकार और संगठन में तकरार का मुद्दा बन गया है। भाजपा के इस प्रभावी पदाधिकारी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाराजगी भी जता चुके है। यह मसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह के दरबार तक पहुंच चुका है परन्तु अभी तक सरकार पर संगठन का दबाव बना हुआ है। संगठन के दबाव के चलते है जिला न्यायालयों में हजारों सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति का मामला अधर में लटका हुआ है। कई मंत्री भी भाजपा पदाधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं का काम टरकाने के लिए संगठन से पत्र लिखवाकर लाने की बात कह रहे है। सरकार की इस कार्यशैली को लेकर योगी के घटते राजनैतिक प्रभाव के रूप में देखा जाना लगा है। भाजपा कार्यकर्ता भी तीन माह में ही अपनी सरकार से खुलकर नाराजगी जाहिर करने लगा है। इसका प्रभाव भाजपा के सांगठनिक क्रिया कलापों पर भी परिलक्षित होने लगा है। भाजपा के सांगठनिक कार्यक्रमों से कार्यकर्ता उदासीन होने लगा है।
                        

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

खेलो भारत में योगी के सामने दिनेश शर्मा और केपी मौर्या खेले कुर्सी दौड़


अरसे बाद ऐतिहासिक बहुमत से सूबे में बीजेपी की सरकार बनी तो झगड़ा सरकार में नंबर दो का है। दोनों उपमुख्यंत्री इसलिए परेशान हैं कि सीएम के बगल वाली कुर्सी किसकी। यानी जिसकी कुर्सी सीएम के बगल में, वो नंबर दो। रसूख वाली इस कुर्सी के लिए गुरुवार शाम को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में झपटते दिखे, सूबे के दो ऐसे जिम्मेदारी नेता, जिनपर दारोमदार है प्रदेश को आगे ले जाने का।
माजरा कन्वेंशन सेंटर में हुए कार्यक्रम का है। सीएम के आने के पहले ही दोनों उपमुख्यमंत्री कन्वेंशन सेंटर पहुंच गए। कुछ पहले दिनेश शर्मा और उनके बाद केशव। अब चूके तो गए वाले अंदाज में दिनेश शर्मा सीएम के बगल वाली कुर्सी पर काबिज हुए तो केशव को ठीक अपने बगल वाली कुर्सी की तरफ इशारा कर दिया। मन मसोसकर केशव बैठे जरूर लेकिन जैसे ही बोलने को शर्माजी उठे, केशवजी ने न केवल सीएम के बगल वाली कुर्सी पर अपना आसन जमा लिया, बल्कि मेज पर लगी तख्तियां भी बदल दीं। अब जब ऐसा केशव कर सकते हैं तो शर्माजी को क्या दिक्कत। पुराने खिलाड़ी हैं। केशव मौर्या बोलने को क्या उठे, शर्माजी बैठ गए सीएम के बगल में। इधर कुछ फ्लैश चमके तो शर्माजी को होश आया कि बात केवल कुर्सी तक ही नहीं रह गई। तख्ती भी बदल चुकी है... तो उन्होंने अपने पांव खींच लिए पीछे। वापस उठकर बदली हुई कुर्सी पर चले गए।
सौजन्य- वरिष्ठ छायाकार, श्री संदीप रस्तोगी

वित्तविहीन शिक्षकों का लखनऊ में प्रदर्शन

आज वित्तविहीन शिक्षक महासभा द्वारा लखनऊ के जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में ताला जड़कर प्रदर्शन किया गया। जिससे कार्यालय का कामकाज पूरी तरह प्रभावित रहा। बाद में शिक्षक विधायक उमेश द्विवेदी नें मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन जिला विद्यालय निरीक्षक को सौपा। इस अवसर पर उपस्थित वित्तविहीन शिक्षकों को संबोधित करते हुए शिक्षक विधायक उमेश द्विवेदी नें कहा कि अगर यूपी सरकार नें हमारी मांगे न मानी तो हम सड़कों पर उतरकर चक्का जाम कर उग्र प्रदर्शन करने को मज़बूर होंगे।
आपको बताते चलें कि माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा इन दिनों पूरे उत्तर प्रदेश में इस तरह का तालाबंदी आंदोलन चला रही है। प्रदेश की योगी सरकार नें पूर्व की अखिलेश सरकार द्वारा वित्तविहीन शिक्षकों को दिया जा रहा मानदेय रोकने की तयारी शुरू कर दी है, जिस वजह से इन शिक्षकों में खासा रोष व्याप्त है, और ये शिक्षक चरणबद्ध तरीके से पूरे प्रदेश के जिला विद्यालय निरीक्षकों के कार्यालयों में तालाबंदी कर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।

सोमवार, 3 जुलाई 2017

योगी सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे, वित्तविहीन शिक्षक

ये हैं यूपी के शिक्षक विधायक (एमएलसी) श्री उमेश द्विवेदी जी। आज इन्होंने रायबरेली के जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में ताला जड़ दिया है। जिसके फलस्वरूप सारे प्रदेश के जिला विद्यालय निरीक्षकों के कार्यालयों में ताला जड़नें का एक आंदोलन प्रारम्भ हो गया। आज मिली सूचना के अनुसार प्रदेश के तमाम जिलों में वित्तविहीन शिक्षकों नें अपने नेता श्रीमान उमेश द्विवेदी का अनुसरण करते हुए अपने अपने जिलों के जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालयों को तालों की गिरफ्त में ला दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में योगी सरकार को इस तालाबंदी आंदोलन की जलन से झुलसना पड़ सकता है। 
आपको बताते चलें कि पूर्व की अखिलेश यादव सरकार भी उमेश जी के नेतृत्व में वित्तविहीन शिक्षकों के आंदोलन की तपिश का सामना कर चुकी है। जब प्रदेश के कोने कोने से राजधानी आये वित्तविहीन शिक्षकों नें राजधानी की सारी व्यवस्था को पंगु बना डाला था। अगर बाबा योगी नें वित्तविहीन शिक्षकों की ताकत को नज़रअंदाज़ या कम करके आंकने की गलती की तो इस सरकार को आने वाले दिनों में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वित्तविहीन शिक्षक अपने मानदेय को लेकर जो लड़ाई लड़ रहे वह उनके लिए जरुरी और मज़बूरी दोनों है। उनके मानदेय को लेकर योगी सरकार का रवैया शर्मनाक है। इसकी जितनी निंदा की जाय कम है। मैं सुशील अवस्थी "राजन" पत्रकार उमेश जी व वित्तविहीन शिक्षकों के इस आंदोलन का समर्थन करता हूँ, और तब तक करता रहूँगा, जब तक कि इन जरूरतमंदों को उनका हक़ नहीं हासिल हो जाता।

रविवार, 2 जुलाई 2017

सबसे सटीक राशिफल

राशिफल: 3 जुलाई 2017

मेष (Aries): कार्य की अधिक व्यस्तता के कारण परिवार के लिए कम घ्यान दे पाएँगे। फिर भी सरकारी कार्यो में सफलता मिलेगी। पेट के दर्द से परेशानी हो सकती है।

वृषभ (Taurus): पितृपक्ष की ओर से आपको लाभ हो सकता है। विद्याभ्यास में विद्यार्थियों को रुचि रहेगी। सरकारी कार्यो में आर्थिक रूप से सफलता मिल सकती है। संतानो के लिए पूंजी-निवेश करेंगे।

मिथुन (Gemini): सरकारी लाभ तथा उच्चाधिकारियों से कार्य का उचित फल भी मिल सकता है। भाई-बंधु तथा अड़ोस-पड़ोस के लोगों से हुआ मनमुटाव दूर हो सकता है। वैचारिक रुप से परिवर्तन की संभावनाएं अधिक हैं। आर्थिक विषयों में सावधानी बरतनी आवश्यक है।

कर्क (Cancer): निराशा और असंतोष की भावना मन में आज बनी रहेगी। सगे-संबंधियों के साथ भ्रांति न हो इसका विशेष घ्यान रखिएगा। विद्यार्थियों को अभ्यास का अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेगा। अनैतिक प्रवृत्तियों से दूर रहिएगा।

सिंह (Leo): पिता तथा बडों की ओर से लाभ होगा। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। वाणी और वर्तन में उग्रता दूर करने की सलाह गणेशजी देते हैं। क्रोध की मात्रा अधिक रह सकती है। आरोग्य बिगड़ सकता है।

कन्या (Virgo):स्वभाव में आवेश और क्रोध की मात्रा अधिक रहेगी। धार्मिक कार्यों के पीछे धन का खर्च हो सकता है। स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा। आकस्मिक धन का खर्च हो सकता है। झगडे़-विवद से दूर रहिएगा।

तुला (Libra): धनप्राप्ति के योग हैं। आय में वृद्धि हो सकती है। व्यापारी वर्ग को अच्छा लाभ मिल सकता है। स्त्री मित्रों से लाभ होगा। उत्तम वैवाहिक सुख की प्राप्ति होगी।

वृश्चिक (Scorpio): उच्च पदाधिकारियों एवं बड़े-बुजुर्गों की कृपा दृष्टि रहेगी। आरोग्य अच्छा रहेगा। धनलाभ का योग है। व्यापारियों को व्यापार के हेतु बाहर जाने के योग है। मित्रों और सम्बंधियों से लाभ होगा। संतानो की संतोषकारक प्रगति होगी।

धनु (Sagittarius): नौकरी-व्यवसाय में तकलीफ और अवरोध निर्मित होंगे। आफिस में उच्च पदाधिकारियों के साथ वाद-विवाद में पड़ने से हानि होने की संभावना है। प्रतिस्पर्धियों के साथ सावधान होकर चलने की गणेशजी की सलाह है।

मकर (Capricorn): खान-पान एवं घूमने-फिरने में ध्यान रखिएगा। आकस्मिक खर्च के योग हैं। भागीदारों के साथ आंतरिक मतभेद बढेगा। घुटनो में दर्द हो सकता है। क्रोध और निषेधात्मक विचार से अपने आपको दूर रखें। नए कार्य का प्रारंभ आज न करें।

कुंभ (Aquarius): आज का हर कार्य आप दृढ़ मनोबल और आत्मविश्वासपूर्वक करेंगे। प्रवास-पर्यटन की संभावनाएं है। अच्छा भोजन और नए वस्त्र परिधान करने के प्रसंग उपस्थित होंगे। भागीदारी से लाभ होगा। वाहनसुख मिलेगा।

मीन (Pisces): आज आप का दिन शुभफलदायी है, ऐसा गणेशजी कहते हैं। आज आपमें दृढ मनोबल एवं आत्मविश्वास का संचार होगा। आरोग्य खूब अच्छा रहेगा। घर में शांति और आनंद का वातावरण बना रहेगा। दैनिक कार्य अच्छी तरह से कर पाएंगे

दोस्त हो तो इज़राइल जैसा

4 जुलाई को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 दिवसीय दौरे पर इज़राइल जा रहे हैं। आइये जानते हैं कि क्यों और कितनी महत्वपूर्ण है हमारे पीएम की यह इज़राइल यात्रा। बहुत कम भारतीय जानते होंगे कि 1965, 1971 और 1999 की कारगिल जंग में जब जब हम पाकिस्तान से जीते उसके पीछे इसराइल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1965 और 1971 की पाकिस्तान के खिलाफ जंगों में इसराइल नें हमें ख़ुफ़िया जानकारियां मुहैया करायी थी। 1999 की कारगिल जंग में भी अगर हम पहाड़ों की ऊँची चोटियों पर छिपे पाकिस्तानी सूअरों को मौत की नींद सुला पाये तो उसमें भी इज़राइल की महती भूमिका रही है। उसके द्वारा आपातकालीन परिस्थिति में दिए गए एरियल ड्रोन और लेज़र गाइडेड बमों नें पाकिस्तानियों की कब्र खोदने में हमारी बड़ी मदद की थी।
ऐसे मुश्किल घड़ी के दोस्त इज़राइल के साथ हमारा रवैया हमेशा कपटपूर्ण रहा है। 1948 में जन्में इस यहूदी मुल्क की 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता के अवसर पर हमने उसका साथ न देकर विरोध की राह अख्तियार की थी। हमने 1992 में उसे राजनयिक मान्यता दी, जब दिल्ली और तेल अबीब में दोनों देशों के दूतावास खोले गए। 2003 में तत्कालीन इज़राइली पीएम एरियल शेरोन की दिल्ली यात्रा के बाद आज तक कभी भी कोई भारतीय पीएम इज़राइल जाने की हिम्मत न जुटा सका। इसके पीछे सिर्फ एक कारण रहा है, और वह है हमारी घरेलु राजनीती की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति। जिन अरब देशों की नाराज़गी की वजह से हमने इज़राइल जैसे शुभचिंतक देश से दूरियां बनाये रखी, पाकिस्तान हमेशा उन्हीं अरब देशों का दुलारा बना रहा।

हर जोर जुल्म के टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है

6 जुलाई को Dios कार्यालय में ताला बन्दी के साथ जेल जाना हुआ आसान, शिक्षकों के धरने को असफल करने के लिए योगी सरकार की तानाशाही "हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है"
शिक्षक साथियों योगी सरकार द्वारा वित्तविहीन शिक्षकों के मानदेय को हटाने से आक्रोशित शिक्षक कतिपय जिलो को छोड़कर पूरे प्रदेश के Dios कार्यालयों पर पर 3 जुलाई को ताला बन्दी करके जेल भरो आन्दोलन छेड़ेगा कुछ कारणो से प्रतापगढ़ व अन्य जिलो में ताला बन्दी 4 जुलाई को जबकि लखनऊ में 6 जुलाई को ताला बन्दी की जाएगी

शनिवार, 1 जुलाई 2017

सीएम योगी को यूपी के आम आदमी का खुला पत्र


आदरणीय,
        मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी सादर नमस्कार!

आप जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे थे तब हम सब आशान्वित थे कि अब प्रदेश में परिवर्तन दिखेगा, लेकिन अफ़सोस कि आपकी सरकार के 100 दिन गुजर जाने के बाद भी हमें कहीं कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा है। मानसून की पहली बारिश के बाद जिस तरह राजधानी लखनऊ डूब उतरा रही है वह आपकी सरकार के लिये डूब मरने की बात है। दरोगा आज भी घूस ले रहा है, ग्रामीण क्षेत्रों के डग्गामार वाहन आज भी सवारियों को भेंड़ बकरियों की तरह ठूंस ठूंस कर भर रहे हैं, बिजली की आवाजाही आज भी बदस्तूर जारी है, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर आज भी अस्पताल में काम करने के बजाय प्राइवेट में ज्यादा रूचि ले रहे हैं। मेरे गांव की सड़क आज भी बदहाल है। आपकी igrs प्रणाली पर शिकायत के बावजूद भी अधिकारी मस्त हैं, और जनता त्रस्त है। किसी सरकारी अधिकारी कर्मचारी को सजा न पहले मिलती थी और न अब, आपने कहाँ और कैसा परिवर्तन किया है हम आम लोगों को उसके कहीं दर्शन नहीं हो पा रहे है।
 
योगीजी मैं ठीक से जानता हूँ कि आप जहाँ हैं, वहां से आपको प्रदेश में परिवर्तन ही परिवर्तन दिख रहा होगा, क्योंकि लुटेरे,बेईमान और कामचोर नौकरशाह आपको यही दिखा रहे हैं, और आप यही देख भी पा रहे हैं। मान्यवर मुझे और आम लोगों को परिवर्तन सिर्फ सीएम आवास और भाजपा मुख्यालय तक ही पहुँच पाया दिख रहा है। जिस सीएम आवास और कार्यालय पर पहले अखिलेश यादव की नाम पट्टिका दिखती थी, वहां अब योगी आदित्यनाथ की दिखती है। पहले जो भीड़ सपा कार्यालय पर हुआ करती थी, वो अब भाजपा मुख्यालय की ओर शिफ्ट हो चुकी है, महोदय हम सिर्फ इतना ही परिवर्तन देख पा रहे हैं।
महोदय एक उदहारण आप भी देखें जिससे शायद आपको अपनी सरकार की कार्यप्रणाली के जमीनी दर्शन हो सकें। लखनऊ के kgmu में तैनात यूरोलॉजी विभाग के प्रो0 एचएस पाहवा के खिलाफ मैंने 4 अप्रैल को आपके कार्यालय के जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज़ करायी कि वो प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त हैं। जिसके समर्थन में मैंने खुद के द्वारा किया गया स्टिंग वीडियो भी kgmu के रजिस्ट्रार को सौपा, क्योंकि आपके कार्यालय से ये जाँच इन्हीं महोदय को प्रेषित की गयी है, परंतु जांचकर्ता डॉक्टर्स प्रो पाहवा को आज भी बचाने में लगे हैं। मुझे इस केस की पैरवी न करने की मुफ़्त सलाहें दे रहे है। यही नहीं इस धनलोलुप और जनविरोधी प्रो0 को आपकी सरकार के तंत्र नें चकगंजरिया स्थित कैंसर इंस्टिट्यूटयूट का सीएमएस भी बना डाला। महोदय प्रतिदिन इस तरह का संघर्ष झेल रही आम जनता आप द्वारा अख़बारों और टीवी चैनलों पर दिए गए प्रवचनों में किसी तरह का परिवर्तन देख पायेगी, या प्रत्येक प्रवचन के बाद और नाराज़ होती जायेगी?

आपका शुभचिंतक - सुशील अवस्थी "राजन" लखनऊ,
                            मोबाइल- 9454699011 

सबसे सटीक राशिफल

राशिफल: 2 जुलाई 2017

मेष (Aries): गणेशजी कहते हैं कि आज आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं रहेगी। सर्दी, कफ, बुखार हो सकता है। किसी का भला करने पर आप पर ही विपत्ति आ सकती है। किसी से पैसों का लेन-देन न करें। 

वृषभ (Taurus): आपका दिन शुभ फलदायी रहेगा ऐसा गणेशजी कहते हैं। धन-वृद्धि तथा पदोन्नति होने के योग हैं। व्यापार में किए गए सौदे में सफलता मिल सकती है। परिवारजनों तथा मित्रों के साथ सुखद क्षणों का आनंद प्राप्त कर सकेंगे।

मिथुन (Gemini): गणेशजी कहते हैं कि आज का दिन शुभ तथा अनुकूल होगा। कार्यालय में सहकर्मचारी तथा ऊपरी अधिकारियों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। सामाजिक दृष्टि से आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। पदोन्नति का योग है। 

कर्क (Cancer): आज आप धार्मिक कार्य, पूजा- पाठ आदि में व्यस्त रहेंगे। परिवारजनों के साथ आनंदपूर्वक समय बीतेगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। मन भी चिंता रहित होगा। आकस्मिक धनलाभ हो सकता है। आज आपके भाग्य में अच्छा परिवर्तन योग है। 

सिंह (Leo): गणेशजी आज आपको संभलकर चलने की सलाह देते हैं। आज आप को विपरित संयोग का प्रतिकार करना पड़ेगा। स्वास्थ्य के प्रति ध्यान दें। स्वास्थ्य बिगड़ने से आकस्मिक खर्च का प्रसंग आ सकता है।

कन्या (Virgo): सामाजिक तथा अन्य क्षेत्रों में ख्याति या सम्मान प्राप्त होगा। सुंदर वस्त्राभूषण की खरीदी भी हो सकती है। वाहनसुख प्राप्त होगा। भागीदारों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। पति-पत्नी के बीच की तकरार दूर होगी तथा घनिष्ठता भी बढे़गी।

तुला (Libra): आज घर में सुख-शांति का वातावरण बने रहने से आपकी प्रसन्नता में वृद्धि होगी। कार्यालय में सहकर्मियों के साथ सहकारपूर्वक कार्य कर सकेंगे। कार्य में यश की प्राप्ति होगी। माता-पिता की ओर से कोई अच्छा समाचार मिलेगा। 

वृश्चिक (Scorpio): आपका दिन मध्यम फलदायी होगा। विद्यार्थियों को अभ्यास में सफलता मिल सकती है। नए कार्यों का प्रारंभ आज न करें। आर्थिक आयोजन के लिए अनुकूल दिन होने से आपका परिश्रम फलदायी सिद्ध होगा। 

धनु (Sagittarius): गणेशजी कहते हैं कि आज के दिन मन में उदासीनता छाई रहेगी। शरीर में स्फूर्ति तथा मन में प्रफुल्लता का अभाव रहेगा। आपका स्वभिमान भंग न हो इसका ध्यान रखें। धनहानि का योग है। 

मकर (Capricorn): आज का दिन नए कार्यो का प्रारंभ करने के लिए शुभ है। नौकरी, व्यापार तथा दैनिक हर कार्य में अनुकूल परिस्थिति रहने से मन मे प्रसन्नता बनी रहेगी। भाई-बंधुओं से लाभ तथा सहकार मिलेगा। 

कुंभ (Aquarius): आज आपका मन प्रफुल्लित रहेगा ऐसा गणेशजी कहते हैं। गहन चिंतनशक्ति और आध्यात्मिकता दोनों में आप का मन डूबा रहेगा। नकारात्मक विचारों को मन से निकाल देने की गणेशजी सलाह देते हैं। वाणी पर संयम रखें।

मीन (Pisces): आप का दिन शुभ फलदायी है। उत्साह तथा स्वस्थता बनी रहेगी। नए कार्य के प्रारंभ के लिए दिन अच्छा है। परिवार के सदस्यों तथा मित्रों के साथ भोजन का अवसर प्राप्त होगा। धनलाभ होगा।

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...