रविवार, 2 जुलाई 2017

दोस्त हो तो इज़राइल जैसा

4 जुलाई को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 दिवसीय दौरे पर इज़राइल जा रहे हैं। आइये जानते हैं कि क्यों और कितनी महत्वपूर्ण है हमारे पीएम की यह इज़राइल यात्रा। बहुत कम भारतीय जानते होंगे कि 1965, 1971 और 1999 की कारगिल जंग में जब जब हम पाकिस्तान से जीते उसके पीछे इसराइल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1965 और 1971 की पाकिस्तान के खिलाफ जंगों में इसराइल नें हमें ख़ुफ़िया जानकारियां मुहैया करायी थी। 1999 की कारगिल जंग में भी अगर हम पहाड़ों की ऊँची चोटियों पर छिपे पाकिस्तानी सूअरों को मौत की नींद सुला पाये तो उसमें भी इज़राइल की महती भूमिका रही है। उसके द्वारा आपातकालीन परिस्थिति में दिए गए एरियल ड्रोन और लेज़र गाइडेड बमों नें पाकिस्तानियों की कब्र खोदने में हमारी बड़ी मदद की थी।
ऐसे मुश्किल घड़ी के दोस्त इज़राइल के साथ हमारा रवैया हमेशा कपटपूर्ण रहा है। 1948 में जन्में इस यहूदी मुल्क की 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता के अवसर पर हमने उसका साथ न देकर विरोध की राह अख्तियार की थी। हमने 1992 में उसे राजनयिक मान्यता दी, जब दिल्ली और तेल अबीब में दोनों देशों के दूतावास खोले गए। 2003 में तत्कालीन इज़राइली पीएम एरियल शेरोन की दिल्ली यात्रा के बाद आज तक कभी भी कोई भारतीय पीएम इज़राइल जाने की हिम्मत न जुटा सका। इसके पीछे सिर्फ एक कारण रहा है, और वह है हमारी घरेलु राजनीती की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति। जिन अरब देशों की नाराज़गी की वजह से हमने इज़राइल जैसे शुभचिंतक देश से दूरियां बनाये रखी, पाकिस्तान हमेशा उन्हीं अरब देशों का दुलारा बना रहा।

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