आज नाथूला के पास आशांकित चीनी आक्रमण पर इसराइल से शस्त्रों की सहायता मिलने का भाजपा सरकार को पूरा भरोसा है। नए दौर वाले रिश्तों का यही लाभ है। यह वक्त-2 की बात है। भाजपा और भारतीय जनसंघ भी कैसे बदले हैं ? इसराइल पर उनकी दृष्टि कैसे सम्यक हुई है ?
तब 1977 मोरारजी देसाई वाली जनता पार्टी की सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे। इसराइल के विदेष मंत्री मोशे दयान दिल्ली आये थे। अगस्त माह में लुकते छिपते, छद्म वेष में। उनकी मषहूर कानी आंख जो सदा ढकी रहती थी, और निजी पहचान बन गई थी। पट्टी से आवृत्त थी, मतलब यही कि कोई उन्हें पहचान तक नही सकता था। निषा के अंधेरे में मोषे दयान की अटल बिहारी वाजपेयी से गुप्त स्थान पर भेंट हुई। मोरारजी देसाई से भी मोषे दयान अनजानी जगह वार्ता हेतु मिले। पर जनता पार्टी के इस प्रधानमंत्री के कड़े निर्देष थे कि मोषे दयान से भेंट की बात पूरी तरह से रहस्य रहे। वर्ना इसराइली विदेष मंत्री से मुलाकात की चर्चा से ”मेरी सरकार ही गिर सकती है।“ संपादक एमजे अकबर ने इस गोपनीय घटना को खूब प्रचारित किया (आज वे विदेष राज्य मंत्री हैं।)
तो ऐसी दषा, बल्कि दुर्दषा थी भारत-इसराइल के संबंधों की। यहूदी सरकार से इतना आतंक ? वह भी (उस समय के) कट्टर हिन्दूवादी अटल बिहारी वाजपेयी की हिचकिचाहट, जो विगत कई वर्षों से संसद में विपक्षके सदस्य के नाते इसराइल के प्रतिबद्ध पक्षधर रहे थे।
गौर कीजिए इतना जबरदस्त दबाव था अरब शेखों का, भारत के मुस्लिम वोटरों का, और सेक्युलर ढोंगियों का। हालांकि 1962 में जवाहरलाल नेहरू को चीन के आक्रमण पर, 1965 में लाल बहादुर शास्त्री को मार्षल मोहम्मद अयूब खां द्वारा हमले पर और 1971 में इंदिरा गांधी को बांग्लादेष मुक्ति संघर्ष पर इसराइली सैन्य उपकरण भारतीय सेना को दिये गये थे। फिर भी इसराइल को बल्लियों दूर रखना कांग्रेसी प्रधान प्रधानमंत्रियों की कृतघ्नता थी। हिन्दूवादी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनकर उसी लीक पर चले। मगर उनके पहले थोडा बदलाव लाये थे पी.वी. नरसिह्म राव (1992 में), जब इसराइली दूत को मुम्बई में कार्यालय के लिए ठौर किराये पर दिया था।
इसी परिवेष में जरा परखें छप्पन इंच सीनेवाले, कभी चाय बेचनेवाले, बहुमत की सरकार चला रहे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे, हिन्दुओं के दिलों के राजा, गौरक्षक, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को। मोदी खुल्लमखुल्ला, डंका बजाकर, पांचजन्य फूंक कर इसराईल गये। बाकी जो कुछ कहा, लिखा और लिया-दिया हो, मगर मोदी ने येरूषलभ के होटल के झरोखे से अल कुद्दस तीर्थकेन्द्र देख ही लिया। यह मुसलमानों के लिए पवित्र कैलाष सरीखा, यहूदिया के लिए अमरनाथ सरीखा, इसाईयों के लिए केदारनाथ सरीखा है, लेकिन है यह विवादित धर्मस्थल जैसे काषी, अयोध्या और मथुरा इत्यादि।
नरसिह्म राव के अलावा मोदी ही भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इस शामी नस्लवाले यहूदी राष्ट्र से आत्मीयता दर्षायी। दुनिया में अलग थलग पड़े इस रेतीली, पथरीले इलाके को चमन बनानेवालों में भारत से गये अस्सी हजार यहूदी हैं जो केरल, गुजराल, महाराष्ट्र के थे। अब एषिया के दो गणराज्यों के इन प्रधानमंत्रियों की काया-भाषा (बाडी लेंगुयेज) का अर्थ निकालें, संकेतों की व्याख्या देखें। दोनों के कुषल क्षेम जानने और आदाबअर्ज की शैली से स्पष्ट है कि विष्व के किसी भी राष्ट्रध्याक्षाओं ने आज तक चालीस मिनट में तीन बार परिरंभण नही किया होगा। दो दिनों के प्रवास में जब भी मिले तो मोदी उनसे होली वाला आलिंगन करते रहे। नरेंद्र मोदी और नेतनयाहू ने बेनगुरियन विमान स्थल पर स्नेह की ऐसी ही प्रगाढता पेष की। समूची काबीना मंत्रालय छोड़कर एयर इंडिया के विमान की बाट जोहे ? अद्भुत है। राष्ट्रपति रेवेलिन से किसी ने पूछा कि सारे नियमों को तोड़कर पूरी काबीना विमानपत्तनम पर मोदी के स्वागत में खड़ी है तो उन्होंने कहा ”षिष्टता महज़ एक औपचारिक रीति है। दोस्तों से औपचारिकता कैसी ? मोदी मित्र हैं। मोदी का ”ष्लोम“ का उच्चारण करना, जिसके हीब्रयु भाष्य में अर्थ है ”षुभम“ और भारत में सलाम। श्लेषालंकार का मोदी ने नमूना पेष किया यह कहकर कि ”ई“ माने इण्डिया और ”ई“ माने इसराइल। नेतनयाहू ने कह भी दिया कि भारत तथा इसराइल के ये दोनों व्यक्ति विष्व का जुगराफिया बदल सकते है। यह गठजोड़ जन्नत में रचा गया है। हीब्रयू में नेतनयाहू के अर्थ है जबरदस्त जीत। और संस्कृत में पुरूषों में श्रेष्ठ को नरेंद्र कहा जाता है। आगे क्या होगा, यह संकेत बतायेंगे।
एक बड़ी गूढ उक्ति थी नेतनयाहू की। वे बोले कि वर्षां पूर्व शादी तय करने अपनी प्रेयसी को लेकर एक भारतीय (कष्मीरी) रेस्त्रां में गये थे। परिणाम स्वरूप उनकी दो सुंदर संताने हुईं। मोदी का स्वागत करने के लिए फिर उसी भारतीय भोजनालय से इसराइली प्रधानमंत्री ने खाना मंगवाकर खाया और मोदी को खिलाया था। इस बार क्या जन्मेगा ? देखना बाकी है। मोदी की यहूदी देष की गर्मजोषीवाली यात्रा अरब देषों में सनसनी पैदा कर चुकी है। मगर मोदी भी जानते हैं कि कष्मीर को ये अरब देष पाकिस्तान का हिस्सा मानते है। जब भारत का ब्रिटिष विभाजन कर रहे थे तो इन मुस्लिम राष्ट्रों ने जिन्ना की पाकिस्तान वाली मांग का पुरजोर समर्थन किया था। मगर उन्ही ब्रिटिष ने जब फिलीस्तीन का बंटवारा कर इसराइल बनाया तो ये अरब विद्रोह कर बैठे और उसे इस्लाम पर हमला करार दिया। इन देषों का एक संगठन है आर्गेनिजेषन ऑफ इस्लामी कंट्रीज जिसमे हमेषा पाकिस्तान को भाई माना और ”हिन्दू भारत“ से दूरी रखी। इसका सम्मेलन एक बार मोरक्को की राजधानी रब्बात में हुआ था। भारत आमंत्रित नहीं था। फिर भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फखुद्दीन अली अहमद को भेजा। वहां निहायत बेअदबी से इस भारतीय मुसलमान से ये सब अरब पेष आये। जब अहमद ने सुबह गरम पानी मांगा कि दाढी बना सके, तो जवाब मिला, ”सच्चा मुसलमान दाढी रखता है। मूढता नही है।“ गरम पानी नही दिया गया।
ये सारे मुस्लिम देष इसराइल के शत्रु है। कुछ चीन के भी। अतः मोदी की यात्रा से एक लाभ तो मिला कि हमारे शत्रु (पाकिस्तान और चीन) के शत्रु हमारे मित्र होंगे।) इसराइल से रिष्तों का इसलिए भी महत्व है। मोदी ने एक कलाकारी और की। इसराइल का राष्ट्रध्वज सफेद पर नीली धारियों वाला है। इसे स्टार आफ डेविड कहते है। दो त्रिकोण है। ये सनातन धर्म में षटकोण हैं। यषोदानन्द कृष्ण का प्रतीक है। ब्रहम संहिता में इसका उल्लेख है। इसके अर्थ में प्रत्येक कोण एक सूचक है। पहला है विचार, फिर शब्द, क्रिया, स्वभाव, चरित्र और नियति। सूत्र है ”लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु।“ इसमें विष्व कल्याण की भावना निहित है। पांच हजार वर्ष पुराने इस नीले स्टार ऑफ डेविड पताका ने चान्द सितारे वाले हरे परचम से सदियों से टक्क्र ली है। आज भी भिड़ा पड़ा है। मोदी ने इसमे तड़का छौंका जब अपने घवल सूट की जेब से नीला रुमाल झलकाया। ”हम एक है“ वाली भावना। आखिर इन दोनों प्राचीन राष्ट्रों की संस्कृति भी पांच हजार वर्षों पुरानी है।
अब विदेष नीति की बाबत। राष्ट्रभक्ति ही उसका आधार होता है। मजहब या कबीला नही। जो मुसलमान मोदी की यहूदियों से यारी के आलोचक हैं उन्हे स्मरण कराना पड़ेगा। इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और विष्वनाथ प्रताप सिंह ने इसराइली और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों से संयुक्त कार्यवाही और सहयोग को प्रोत्साहित किया था। भारतीय संस्था ”रा“ से कही अधिक दुरूह तथा दुर्दान्त इसराइल का मोसाद है। यह सर्वविदित हैं कि इसके प्रमुख नाहुम एडमोनी की 1970 से नई दिल्ली में इन्दिरा गांधी के उच्चतम गुप्तचर मुखिया आर.एन. काओ से करीबी थी। मोसाद के अन्य प्रमुख शब्ताई शामित और एप्रहेम हालेबी की राजीव गांधी तथा विष्वनाथ प्रताप सिंह से कई गोपनीय मुलाकातें होती थी। ये दोंनों प्रधानमंत्री लोग भारतीय मुसलमानों के अत्यंत चहेते रहनुमा थे। इस्लामी जम्हुरियाये पाकिस्तान के विदेष मंत्री मियां खुर्षीद कसूरी ने (6 सितंबर 2005) को ऐलानिया तौर पर बताया था कि पाकिस्तान और इसराइल के ”गुप्त ताल्लुकात“ गत एक दषक से चल रहे हैं।“ अब क्या और प्रमाण चाहिए कि मुस्लिम राष्ट्र भी यहूदी इसराइल से सौदेबाजी करते रहे।
K Vikram Rao
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