झूंठ, कपट, छल तुझमें बसते
सब पर तू, सब तुझपर हँसते
ईश्वर को तू दोषी करती
दोषी तेरे सर्वम् हैं।
सत्ता तू क्यों निर्मम है?
राम-सिया तू विलग कराती
लछिमन सा भाई छुंडवाती
संकट के साथी बिछड़ाती
स्वार्थी तेरे प्रियतम हैं।
सत्ता तू क्यों निर्मम है?
धर्म से तेरा कैसा वास्ता
तेरा उसका अलग रास्ता
धर्म का भी तू शोषण करती
लगती गुत्था-गुत्थम है।
सत्ता तू क्यों निर्मम है?
"राजन" तेरा नहीं भरोसा
किसने नहीं है तुझको कोसा?
योगी को तू भोगी करती
भोगी तुझे योगी सम है।
सत्ता तू क्यों निर्मम है?
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