बुधवार, 31 मई 2017

योगी की अयोध्या यात्रा के मायने

आज जब यूपी के सीएम अयोध्या में हैं, तब ये सवाल उठना लाज़िमी है कि योगी और अयोध्या का सम्बन्ध क्या है? आने वाले दिनों में यह भी घोषणा हो सकती है कि योगी अयोध्या से विधायिकी लड़ेंगे। असल में योगी जी और भाजपा कुछ दिन यूपी संभाल कर यह ठीक तरह से समझ चुके हैं, कि परफार्मेंस के आधार पर 2019 में मोदी जी को थोक भाव में यूपी से वोट दिला पाना कठिन मिशन है, इसलिये अब भाजपा धार्मिक आधार पर अपना कारवां आगे बढ़ाने पर उतर आई है। इतने बड़े प्रदेश को न तो अपराध मुक्त किया जा सकता है, और न ही नौकरशाही के रवैये को बदला जा सकता है। इसलिए प्रदेश की धर्म भीरु,धर्मांध जनता को कट्टर हिंदुत्व की चाशनी में पिरोकर राजनीतिक दर्शन परोसा जाय। फिर भले ही यह कट्टरता देश को पाकिस्तान, बांग्लादेश, इराक या सीरिया बना डाले। मेरा मानना है कि जब आप लोगों को रोटी न मुहैया करा सको, तो राम को रोटी से भी बड़ा बनाकर पेश करो। इससे क्या है कि एक तो आपकी नाकामी छिपेगी, और प्रदेश की जनता का कृतिम राजनीतिक मनोरंजन भी संभव हो सकेगा

मंगलवार, 30 मई 2017

सुशासन से आसान है धार्मिक ध्रुवीकरण

अगर मोदी सरकार में साध्वी प्रज्ञा मालेगांव विस्फोट कांड से बाहर हो सकती हैं, तो फिर आडवाणी, जोशी, उमा आदि बाबरी विध्वंस कांड से क्यों नहीं बाहर हो सकते? कौन नहीं जानता कि सीबीआई भी दबावों के बीच ही अपने कर्तव्य तय करती है। मुझे लगता है भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण का राजनीतिक खेल खेलना चाह रही है, क्योंकि उसे लग गया है कि सुशासन की राह आसान नहीं है। अब जब मुस्लिम सर्वाधिक दुविधाग्रस्त स्थिति में है, तब धार्मिक ध्रुवीकरण का सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही मिलेगा। हो सकता है कि ऐसे माहौल में योगी बाबा अयोध्या से ही विधायक बनना पसंद करें।

सोमवार, 29 मई 2017

दारु ले लो.... दारु

 
ऐसा लगता है कि राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्रीमती स्वाति सिंह की मति मंत्री बनते ही भ्रष्ट हो गयी है। मैडम एक बीयर बार का उद्घाटन कर बैठी। लगता है कि मंत्री बनने के बाद वो खुद को महरानी समझ बैठी है। स्वाति सिर्फ किस्मत कनेक्शन से मंत्री बनी है, यह कौन नहीं जानता? उनके पति का माया को अपशब्दों से नवाजना, फिर एकदम से भारतीय नारी का यूपी के राजनीतिक क्षितिज पर उभरना, एकदम फ़िल्मी पटकथा सा लगता है। उनमे विधायक बनने और उस दायित्व को निभाने तक की क्षमताये तो विद्यमान है, लेकिन पता नहीं क्यों, उन्हें मंत्री पद से नवाज़ा गया? बाबा योगी की शंकरी बारात जैसे मंत्रिमंडल में ऐसे तमाम नमूने और भी मौजूद है, आशा है समय समय पर वो अपनी छुपी प्रतिभा का उद्घाटन करते रहेंगे। इस बीयर शाप के उद्घाटन के दो और प्रमुख पात्रों पर भी आप की नज़रे इनायत हो। एक रायबरेली के एसपी गौरव पाण्डेय, दूसरी उन्नाव की एसपी नेहा पाण्डेय की उपस्थिति ने तो कार्यक्रम में चार क्या चालीस चाँद लगा दिए। शायद आप जानते हों कि ये दोनों पुलिस अधिकारी पति-पत्नी हैं। ख़ुशी की बात ये है कि बाबा योगीनाथ को इस तरह दारू प्रमोशन का इनका काम रास नहीं आया। स्वाति,गौरव,नेहा में से किसी न किसी के सिर बाबा ठीकरा जरूर फोड़ेंगे। 
   इस प्रकरण के बाद पियक्कड़ों में गज़ब की मायूसी देखी जा रही है। लगता है बीयर बार के उद्घाटन के बाद से तड़ियालों को ये लगने लगा था कि हो न हो स्वाति सिंह जैसी मंत्री की वजह से उनके दारू पीते रहो आंदोलन को बाबा योगी की सरकार से सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जायेगी। ससुरे नशेड़ी सोंच रहे थे कि सब्जी वालों की तरह अब दारू विक्रेता भी मुहल्लों की गलियो में चिल्लाते फिरेंगे "दारु ले लो.... दारु" भला दारू और बीयर में फर्क ही कितना है?

रविवार, 28 मई 2017

गिरे लोगों की गिरी पार्टी, कांग्रेस

केरल के कुन्नूर में गोकशी कर प्रदर्शन करते यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का वीडियो अगर सच है, तो मानकर चलिए अब कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में अपने लिए ताबूत बना रही है। जिस गोहत्या कृत्य को मुग़ल शासन में भी मृत्यु दंड की श्रेणी में रखा गया था, उस कुकृत्य का ऐसा समर्थन, ये देश की जनता कभी बर्दास्त नहीं करेगी। हो सकता है कि कांग्रेस के इस कुकृत्य का उन्हें केरल में कोई फायदा मिल भी जाय, परंतु पुरे भारत से उसका सफाया हो जायेगा, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। सोचने वाली बात ये है कि आज कांग्रेस जितना नीचे गिर चुकी है, अगर वह यहाँ से भी नीचे गिरना चाहे तो कहाँ जायेगी? आखिर उसे अपने गिरने की कोई तो सीमा सोचनी चाहिए।

शनिवार, 27 मई 2017

खूबियाँ, नादानियां बन गईं...

यूपी के कुछ मुख्यमंत्रियों के हुनर जो बाद में ऐब बन गए, पर सुशील अवस्थी राजन की संक्षिप्त विवेचना-
1- मुलायम सिंह यादव= दोस्ती निभाते हुए लोगों को उपकृत करना।
परंतु बाद में इन्होंने सबसे ज्यादा अपने परिवार के लोगों को उपकृत किया।
2- राजनाथ सिंह= प्रबल गणित बाज़, जिससे कई बार उनकी पार्टी भाजपा को फायदा पंहुचा।
परंतु बाद में इनकी नकारात्मक गणित नें पार्टी का बेडा गर्क भी किया, कल्याण सिंह के अस्तित्व निर्मूलन में इन्ही की गणित थी। फलस्वरूप लोग अब इन्हें भाजपा के अंदर सिर्फ टी सीरीज, मतलब ठाकुर लॉबी का ही नेता मानते हैं।
3- मायावती= दबंग और गुंडा विरोधी।
परंतु बाद में सबकी गुंडई बंद कराकर, सबके हिस्से की गुंडई वो खुद करने लगी।
4- अखिलेश यादव= सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा और युवा मुख्यमंत्री।
लेकिन बाद में ये अपने बाप और चाचा को ही पढ़ाने लगे, और जवानी बुजुर्गों की बलि लेंने लगी।
5- आदित्यनाथ योगी= कट्टर हिंदुत्ववादी।
लेकिन अब हिंदुत्व+बादी अर्थात हिंदुत्व बाद में, मुख्यमंत्री पहले।

जो कहूंगा, सच कहूंगा, सच के सिवा....

14 साल का वनवास भोगने के बाद अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा का राज्याभिषेक हुआ है, तो उसके पीछे सिर्फ मोदी और मोदी लहर है। संयोग यह कि "नाथ" राजनाथ के हाथ से गई सत्ता फिर "नाथ" आदित्यनाथ के ही हाथ लगी है। मेरा अपना मानना है कि अगर इस बार भाजपा का सीएम यूपी में फेल हुआ तो अब उसका वनवास काल 14 साल का नहीं, बल्कि 140 साल का होगा। हालाँकि कुछ एक महीनों में किसी भी सरकार का मूल्यांकन बेहद पक्षपाती कृत्य है, फिर भी सरकार के कामकाज से उसके मुकाम का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। मेरी अगर मानिये तो मैं कहूंगा कि अपने अस्तित्व में आने के शुरुआती 4 दिनों तक योगी सरकार नें ठीक से काम किया है। अब ये सरकार भी अन्य सरकारों जैसी ही लग रही है।

गुरुवार, 25 मई 2017

योगी जी! गरीब मरीजो की जान से कब तक खेलेंगे सरकारी डॉक्टर

धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर उत्तर प्रदेश में गरीबों की जान से खेल रहे है। सरकारी अस्पतालों में कार्यरत अधिकतर डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में मशगूल हैं। ये हालत तब है, जब कि हाईकोर्ट सरकारी डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर लगातार सख्त रुख अपनाये हुए है। जहाँ अखिलेश सरकार भी पूरे पांच साल इन गैर जिम्मेदार डॉक्टरों के आगे नतमस्तक रही, वहीं भाजपा की नई योगी सरकार भी इनके आगे नत मस्तक मुद्रा में दिख रही है। अब तो ऐसा लगता है कि प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त इन डॉक्टरों को हाईकोर्ट से लेकर योगी सरकार तक किसी से कोई भय नहीं है।
जानकारों का कहना है कि सरकारी डॉक्टरों की निडरता के सिर्फ दो कारण है। पहला यह कि प्रदेश में डॉक्टरों की बेहद कमी है, उस पर अगर सरकार इन्हें सस्पेंड भी करने लगे तो फिर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को बेपटरी होने से कोई नहीं रोक सकेगा। दूसरा कि प्राइवेट प्रैक्टिस अब यूपी में विकृति की जगह संस्कृति का रूप ले चुकी है, और प्रत्येक सरकारी डॉक्टर इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान बैठा है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक प्राइवेट प्रैक्टिस से उत्तर प्रदेश के डॉक्टर करीब सात हज़ार करोड़ रुपये की गैर क़ानूनी कमाई करते हैं, जिसमें दवाई कम्पनियो व डाइग्नोस्टिक सेंटरों द्वारा दिया गया मोटा कमीशन भी शामिल है। जाहिर सी बात है कि इस काली कमाई का बड़ा हिस्सा पूरे प्रशासनिक तंत्र में नीचे से ऊपर तक पहुँच कर इस गैर क़ानूनी गठजोड़ को बेहद पावर फुल बनाये हुए है। जिस वजह से गरीब मरीज़ की जान और खतरे में पड़ती जा रही है। पेट्रोल-डीज़ल चोट्टों की मज़बूत लॉबी के आगे नत मस्तक हो चुकी योगी सरकार से यूपी का गरीब मरीज़ भला कैसे उम्मीद कर सकता है कि ये सरकार प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त मज़बूत डॉक्टरों के गैंग से उसकी रक्षा कर सकेगी। 
इस पूरे खेल को समझने के लिए आप सिर्फ एक प्रकरण को ठीक से समझिये। वह ये कि किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ के एक प्रो0 एचएस पाहवा का मैंने अपने चैनल सुदर्शन न्यूज़ के लिए प्राइवेट प्रैक्टिस करते हुए स्टिंग आपरेशन किया। चैनल पर स्टोरी चलने और व्यक्तिगत रूप से मेरे द्वारा प्रो0 पाहवा के खिलाफ सीएम आफिस में शिकायत के बाद सरकार पर कुछ दबाव बना, जिस  वजह से प्रो0 पाहवा के खिलाफ जांच शुरू हो गयी है। लेकिन सरकार से लेकर नीचे तक सभी प्रो0 को बचाने में लगे हुए हैं। फिर भी मेरी जिद है कि इस लापरवाह डॉक्टर को दंड मिलना चाहिए। एक पत्रकार को जब स्टिंग वीडियो होने के बाद भी इस प्रो0 को दण्डित करवाने के लिए जब इतने पापड़ बेलने पड़ रहे है, तब आसानी से  कल्पना की जा सकती है कि एक आम आदमी के लिए यह कितना कठिन कार्य है? लेकिन भ्रष्ट सिस्टम अभी सुशील अवस्थी राजन की संघर्ष जिजीविषा से पूरी तरह वाकिफ नहीं है। आप देखिएगा कि यही भ्रष्ट सिस्टम एक दिन इसे दण्डित भी करेगा। क्योंकि अभी यह सिस्टम इस भ्रष्ट डॉक्टर पर इस तरह मेहरबान है कि इस धन लोलुप को कैंसर इंस्टिट्यूट, चक गंजरिया, सीजी सिटी, सुल्तानपुर रोड, लखनऊ जैसे महत्वपूर्ण संस्थान का सीएमएस बना चुका है।

बुधवार, 24 मई 2017

तुम जिस दिन टकराओगे, मिटटी में मिल जाओगे पाकिस्तान

   
    सोहेल अमान के डायलाग को याद कर आज दिन भर मुझे हंसी आती रही। दिन भर हंसी दिलाने के लिए इनका शुक्रिया। अब आप कहेंगे कि ये कौन हैं? ये बड़बोले लाल पाकिस्तान की पिद्दी सी वायुसेना के प्रमुख हैं। आज सुबह सुबह ये मुंहबोले सूरमा पाक वायुसेना का 50 साल पुराना कबाड़ सा जंगी जहाज़ मिराज लेकर सियाचिन के पास से अपने ही नभ् क्षेत्र से क्या गुज़रे, खुद को तीसमार खाँ समझ बैठे। थोड़ी सी भी अगर इनकी नाप जोख गड़बड़ा जाती तो भारतीय वायुसेना इनको हज़ारो फिट ऊपर आसमान में ही आग के शोलों में तब्दील कर देती।
     जमीन पर उतरते ही इन मुंहबोले सूरमा नें जो हवाई मारी उसको याद कर ही आज मैं सारा दिन हँसता रहा। इस चूतिये ने फ़रमाया कि पाक वायुसेना भारत को ऐसा जवाब देगी कि भारत की आने वाली नस्लें उसे याद रखेंगी। बताओ हंसी वाली बात है या नहीं?
     असल में वह कहना यह चाह रहे होंगे कि भारतीय वायुसेना नें पाकिस्तान को जो चोट पहुचाई है, उसे पाक की नस्लें याद रखें, भूलें नहीं। पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में इन बुजदिलों के जनरल नियाज़ी नें भी अपने तकरीबन एक लाख सैनिकों के साथ हथियार डालते वक्त कहा था कि हमें भारतीय वायुसेना नें ऐसा करने के लिए मज़बूर कर दिया है। अब बताओ दुनिया की 4थे नंबर की आधुनिक भारतीय वायुसेना का भला 13वे नंबर की जाहिल वायुसेना से क्या मुकाबला?

मंगलवार, 23 मई 2017

मोदी की नौटंकी है पाकिस्तानी बंकरों पर हमला

       पाकिस्तानी हरामीपने नें कश्मीर में 90 के दशक वाला आतंकवाद जिन्दा कर दिया है। जब गैर इस्लामी बहन बेटियों से खुले आम बर्बरता होती थी। शुक्र है कि अब वहां गैर इस्लामी आबादी नगण्य है। भारत उनके बलोचिस्तान को सुलगा भी न सका और अपना कश्मीर बचा भी न सका। हमारे भाजपाई नेता सिर्फ बड़बोलेपन का ही परिचय देते रहे, पाकिस्तान के आठ टुकड़े बारह टुकड़े वगैरह वगैरह। यानी कश्मीर के मुद्दे पर कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान नें हमको कूट दिया। इतना कूटा कि हम अपने ही कश्मीरियों के हाथ से पत्थर न तो भय दिखाकर छीन पाये और न प्रीति दिखाकर रखवा पाये।  125 करोड़ देशवासियों के तेवरों से लगा कि देश अब मोदी के मोद से बाहर आ रहा है। फिर क्या था पाकिस्तानी चौकियों पर धूम-धड़ाम। पता नहीं उनमें उस समय कोई था भी या खाली थीं? इस हमले में कितने पाकिस्तानी सुअर मरे ये कौन बताएगा? क्योंकि पाकिस्तान तो ऐसे किसी हमले से ही इनकार कर रहा है। 
     मोदी सरकार इन टोने-टटकों से जन मानस का दिल बहलाने की कोशिश न ही करे तो अच्छा है। सेना का इस्तेमाल सरकार की छवि गढ़ने में करना, मैं सुशील अवस्थी राजन इसे उचित नहीं मानता हूँ। पहले सर्जिकल स्ट्राइक का तमाशा, फिर पाकिस्तानी बंकर तबाही, ये मोदी सरकार का देश की जनता के साथ खुल्ला फरेब है। सर्जिकल स्ट्राइक और बंकर तबाही जैसी घटनाएं दोनों देशों की सीमाओं के मध्य घटने वाली बड़ी ही सामान्य और रूटीन घटनाएं हैं। अभी पाकिस्तानी bat टीम भी तो सर्जिकल स्ट्राइक जैसी ही घटना हमारी सीमा में घुसकर अंजाम दे ले गई थी। पाकिस्तानी भी तो हमारी पोस्टों को आये दिन निशाना बनाया करते हैं। मोदी सरकार के चकड़ चाणक्य इस तरह के मीडियाई करिश्मे से राष्ट्रवाद का कृत्रिम यानी बनावटी उफान पैदा करना चाहते हैं। सेना का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है, ताकि कोई कुछ भी सवाल उठाये, तत्काल उसे देशद्रोही घोषित किया जा सके। 
      करना ही है तो इंदिरा गांधी जैसी कूटनीति से पाकिस्तान को टुकड़े टुकड़े कर डालो। 3 साल से जनता तुम्हे देख रही है साहब, अब प्रवचन से काम न लो, कुछ ठोस करो। 

दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को


घाटी मे कोलाहल है,कोलाहल है गद्दारों का,
मौसम बना हुआ है देखो आतंकी त्यौहारों का,
मौत हुई है आतंकी की लाखों चेहरे रोए हैं,
हम तो केवल दाल टमाटर के भावों मे खोए हैं,
आतंकी का एक जनाजा मानो कोई जलसा है,
लाखों लोग उमड़ आए हैं जैसे कोई फरिश्ता है,
सेना पे पथराव किया है अफ़जल के दामादों ने,
फिर से थाने फूँक दिए हैं धरती के जल्लादों ने,
सीधा मतलब साथ निभाने वाले भी आतंकी है,
इन सबकी वजह से पूरी घाटी ही आतंकित है,
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को,
चौराहों पे गोली मारो साठ साल के पापों को,
सौ सौ बार नमन् सेना को डटी रही है घाटी मे*
आतंकी को मिला रही है काट काट के माटी मे,
सेना को अब आतंको की छाती पे चढ़ जाने दो,
साथ निभाने वालों पे भी अब गोली बरसाने दो,
एक बार अब श्वेत बर्फ पे लाल रंग चढ़ जाने दो,
लाश बिछा दो गद्दारों की सेना को बढ़ जाने दो,
एक परीक्षण नये बमों का गद्दारों पे कर डालो,
दहशतगर्दों के सीने मे तुम भी दहशत भर डालो,
भूलो गिनती गद्दारों की लाश बिछाना शुरू करो,
वंदे मातरम् भारत माँ की जय तराने शुरू करो,
देशप्रेमियों की सैनिकों पूरी मन्नत कर डालो,
नर्क भेज के गद्दारों को भूमि जन्नत कर डालो।।।


शनिवार, 20 मई 2017

गांधी के हत्यारे गोडसे एन्ड कंपनी का वीडियो विश्लेषण


महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े मुकदमे की बात हो तो इसके बारे में कुछ चीजें सहज ही दिमाग में आती हैं. जैसे अदालत का माहौल बहुत ही गंभीर रहा होगा. इतने बड़े नायक की हत्या से लोग स्तब्ध रहे होंगे जिससे कार्रवाई बहुत शांति और संजीदगी के साथ चली होगी.
लेकिन एक दुर्लभ वीडियो इसके उलट तस्वीर दिखाता है. यह वीडियों 27 मई 1948 को मुकदमे की सुनवाई शुरू होने के वक्त का है ऐतिहासिक क्लिपें सहेजने वाली एक एजेंसी ब्रिटिश पाथे का यह वीडियो दिखाता है कि इस चर्चित मुकदमे के दौरान अदालत में वैसा ही हंगामा था जैसा आज दिखता है. लोग आ-जा रहे हैं और कटघरे में बैठे आरोपितों से बात भी कर रहे हैं. नाथूराम गोडसे और बाकी आरोपितों को कैमरे में कैद करते पत्रकारों की हड़बड़ी माहौल में और भी अराजकता घोलती दिखती है. गौरतलब है कि आज अदालत में इस तरह फोटो या वीडियो लेने की इजाजत नहीं होती. न ही मुकदमे की सुनवाई कर रहा जज मीडिया से बात करता दिखता है. लेकिन उन दिनों ऐसा हो सकता था.
इस वीडियो की शुरुआत लाल किले के शॉट से होती है जहां मुकदमा चल रहा है. इसके बाद मुकदमे की सुनवाई देखने जाते लोगों की तलाशी के दृश्य हैं. आगे बिड़ला भवन दिखता है. उस जगह पर अब एक चबूतरा बना दिया गया है जहां गांधीजी को गोली लगी थी. इस पर हे राम लिखा है. लोग जूते उतारकर इस जगह पर दर्शन करने आ रहे हैं. इसके बाद कैमरा मुकदमे के न्यायाधीश आत्माचरण को दिखाता है जो शायद पत्रकारों से बातचीत कर रहे हैं. फिर जस्टिस आत्माचरण अदालत में बैठे दिखते हैं और अगले ही दृश्य में कैमरा कटघरे में बैठे आरोपितों को दिखाता है. नाथूराम गोडसे, नारायण दत्तात्रेय आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे कठघरे में पहली पंक्ति में बैठे हैं. उनके पीछे दूसरी पंक्ति में दिगंबर रामचंद्र बडगे, मदनलाल पाहवा और नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे हैं. तीसरी पंक्ति में शंकर किष्टैया, विनायक दामोदर सावरकर और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे को भी देखा जा सकता है.
वीडियो देखकर लगता है जैसे नाथूराम गोडसे अदालत में होकर भी वहां नहीं हो. ज्यादातर वक्त वह आसपास के माहौल से कटा हुआ दिखता है. एक ही दिशा में ताकता हुआ. 1965 में इस मुकदमे के बारे में जस्टिस जीडी खोसला ने कहा भी कि उसके चेहरे पर इस काम के लिए कोई पछतावा नहीं दिखता था. उधर गोडसे के पड़ोस में बैठे नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और पीछे बैठे मदनलाल पाहवा को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें अपने जुर्म की गंभीरता का अहसास ही नहीं है. उनके हावभाव (खासकर करकरे के) ऐसे हैं जैसे वे अपने घर के ड्राइंग रूम में बैठे हों. आप्टे और करकरे आपस में बात करते हुए खूब हंस भी रहे हैं. करकरे तो कई बार उत्साह से उचक-उचककर लोगों की बात का जवाब देता दिखता है.
इस वीडियो में ठीक मदन लाल पाहवा के पीछे और तीसरी पंक्ति में बीच में बैठे विनायक सावरकर को जितना भी दिखाया गया है बड़ी शांति से बैठा दिखाया गया है. वीडियो में मदनलाल पाहवा को पहली नजर में देखकर ही ऐसा लगता है कि जैसे वह आज की किसी बॉलीवुड फिल्म का नायक हो. वह शर्ट भी बिलकुल आज के चलन के हिसाब से पहने हुए है जिसकी ऊपर की बटन खुली हुई है.
गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी. हत्या के जुर्म में गोडसे और आप्टे को मौत की सजा हुई. सावरकर को बरी कर दिया गया और बाकियों को उम्र कैद हुई. उच्च न्यायालय में अपील के बाद दो आरोपितों परचुरे और किष्टैया की सजा माफ हो गई जबकि बाकी की सजा बरकरार रही. गोडसे और आप्टे के लिए 15 नवंबर 1949 फांसी की तारीख तय हुई. इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय का विकल्प बचता था. लेकिन देश में तब सर्वोच्च न्यायालय नहीं था. उन दिनों उच्च न्यायालय के बाद अपील करनी हो तो मुकदमा इंग्लैंड स्थित प्रिवी काउंसिल में जाता था. बताते हैं कि गोडसे नहीं चाहता था कि उसकी जान बचाने के लिए आगे अपील की जाए, लेकिन उसके घरवालों ने उसे बिना बताए अपील कर दी. यह अक्टूबर 1949 की बात है. प्रिवी काउंसिल ने सुनवाई से मना कर दिया. उसका तर्क था कि 26 जनवरी 1950 को भारत में सर्वोच्च न्यायालय अस्तित्व में आ जाएगा और उससे पहले उसके लिए मुकदमा खत्म करना संभव नहीं होगा. लिहाजा उसकी सुनवाई का कोई मतलब नहीं बनता. इसके बाद गोडसे के परिजनों ने तत्कालीन गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी से उसकी सजामाफी की अपील की जो खारिज हो गई. यह सात नवंबर 1949 की बात है. इसके बाद गोडसे और आप्टे को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई.
इस मुकदमे के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि इसके तीन आरोपितों का कभी कोई पता नहीं चला. ये थे गंगाधर दंडवते, गंगाधर जादव और सूर्यदेव शर्मा. वे फरार हो गए थे और आज तक कोई नहीं जानता कि उनका क्या हुआ.

शुक्रवार, 19 मई 2017

AY अखिलेश यादव या YA योगी आदित्य नाथ कोई फ़र्क नहीं

सत्ता की अपनी एक अलग ही चाल और स्वभाव होता है। इस पर जो भी सवार होता है, वह पिछले सवार जैसा ही लगता है। अखिलेश यादव और बाबा योगी आदित्य नाथ का अंतर मुझे तो ख़त्म होता दिख रहा है। दोनों की कार्यशैली मुझे एक सी नज़र आ रही है। यूपी के जमीनी हालात न तो अखिलेश बदल पाये, और न योगी। हाँ प्रवचन पक्ष बाबा का ज्यादा भारी है। फिर भी मैं अभी निराश नहीं हूँ, क्योंकि बाबा के अभी काफी ओवर बाक़ी हैं, हो सकता है बाबा जी कुछ अच्छे शॉट खेलकर हमारा आपका राजनीतिक मनोरंजन कर ले जाएँ।

मंगलवार, 16 मई 2017

लेद्धड़ और बोगस सरकार, मोदी सरकार

   

देखते देखते मोदी सरकार ने 3 साल पूरे कर लिए। अब अगर इस सरकार की उपलब्धियों और नाकामियों की चर्चा प्रारम्भ की जाय तो किसी को आपत्ति का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। सत्ता पक्ष के पास गिनाने के लिए उपलब्धियों का अथाह भंडार है, तो विपक्ष के पास इस सरकार की नाकामियों की लंबी फेहरिस्त है। मैं दोनों की बात नहीं करूँगा। मैं बात करूँगा उस आम आदमी के अनुभव की जिसने अच्छे दिनों की कल्पना कर और मोदी जी की बात पर भरोसा कर इस सरकार को अस्तित्व दिया। पीएमओ में किस तेज़ी से फैसले हो रहे हैं? सरकार को कितना चाक चौबंद किया गया है? मुझे इन बातों से कोई लेना देना नहीं है। मेरा लेना देना उन गांवों से है, जहाँ से हमने दिल्ली को वोट भेजकर अपना भाग्यविधाता तय किया था। वह मेरा भाग्यविधाता दिल्ली से हमारे गांवों, कस्बों और शहरों को क्या भेज पाया है? हम इस पर चर्चा करेंगे।
      पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक जिसके बाद पाकिस्तान और खूंखार हो गया। नोटबंदी जिसमें हमने कष्ट उठाये, और सरकार भी चिल्लाई कि उसने नोटबंदी के हथियार से नक्सलियों और आतंकवाद की कमर तोड़ दी। किसकी कमर टूटी सब जानते हैं। बुलेट ट्रेन परियोजना गुलेल से फेंकी गयी कंची की गति से चल रही है, और हमारी रेल गाड़ियां पटरी से ज्यादा बेपटरी चल रही हैं। सबका साथ तो लिया लेकिन विकास को भगवा चोला ओढ़ाकर जनता के सामने पेश किया गया। मैं तो मोदी सरकार को अभी तक फेल सरकार की श्रेणी में रखूँगा। हमारी आशाओं, अपेक्षाओं और उम्मीदों को लोकसभा चुनावों के दरमियान मोदी ने जिस तरह उचाईयों के आकाश पर चढ़ाकर वोट लिया था, उसके अनुरूप मुझे यह सरकार अभी तक की सबसे लेद्धड़ और बोगस सरकार है।

bhagwan badrvishal ki jay

सोमवार, 15 मई 2017

"पत्थरबाजी" युद्ध कला


भारत सरकार कश्मीरी पत्थरबाजों को हल्के में न ले। आपको जानकर ताज़्ज़ुब होगा कि पत्थरबाजी युद्ध कला का बड़ा ही पुरातन, प्राथमिक और मज़बूत सिद्धांत है। आप सब शिवाजी की सेना द्वारा इस सिद्धांत को अपनाने और अपने दुश्मन की मज़बूत सेना को तहस नहस कर डालने के इतिहास से तो परिचित ही होंगे। परंतु क्या आप जानते हैं कि भगवान् राम की वानरी सेना नें भी अपनीभारत सरकार कश्मीरी पत्थरबाजों को हल्के में न ले। आपको जानकर ताज़्ज़ुब होगा कि पत्थरबाजी युद्ध कला का बड़ा ही पुरातन, प्राथमिक और मज़बूत सिद्धांत है। आप सब शिवाजी की सेना द्वारा इस सिद्धांत को अपनाने और अपने दुश्मन की मज़बूत सेना को तहस नहस कर डालने के इतिहास से तो परिचित ही होंगे। परंतु क्या आप जानते हैं कि भगवान् राम की वानरी सेना नें भी अपनी सटीक और सधी हुई पत्थरबाजी की ही बदौलत तब की अजेय मानी जाने वाली रावण की सेना को बुरी तरह परास्त किया था। दुर्भाग्य यह कि राम और शिवाजी का अनुयायी देश भारत आज विदेशी आक्रमणकारियों और रावण की युद्धनीति अपना रहा है, तो आतंकवादी देश पाकिस्तान हमारे खिलाफ राम और शिवाजी की युद्धनीति का सहारा ले रहा है।
जय श्री राम या वीर शिवाजी की झूंठी जय जयकार करने वाले पता नहीं कब अपनी गलती से सबक सीखेंगे। पत्थरबाज भी आतंकी ही हैं, इन पर रहम मतलब खुद को हार की आगोश में सौपना है। सटीक और सधी हुई पत्थरबाजी की ही बदौलत तब की अजेय मानी जाने वाली रावण की सेना को बुरी तरह परास्त किया था। दुर्भाग्य यह कि राम और शिवाजी का अनुयायी देश भारत आज विदेशी आक्रमणकारियों और रावण की युद्धनीति अपना रहा है, तो आतंकवादी देश पाकिस्तान हमारे खिलाफ राम और शिवाजी की युद्धनीति का सहारा ले रहा है। जय श्री राम या वीर शिवाजी की झूंठी जय जयकार करने वाले पता नहीं कब अपनी गलती से सबक सीखेंगे। पत्थरबाज भी आतंकी ही हैं, इन पर रहम मतलब खुद को हार की आगोश में सौपना है।

रविवार, 14 मई 2017

डॉक्टर भगवान का रूप होता है

 डॉक्टर भगवान का रूप होता है, अगर वह मर्ज़ के खिलाफ लड़ने में मरीज की मदद करे। सरकारी डॉक्टरों का बेपरवाह रवैया उन्हें भगवान नही बल्कि दानव के समकक्ष खड़ा करता है। देखिये कैन्सर इंस्टिट्यूट के डॉक्टर प्रो पाहवा का स्टिंग आपरेशन जिसमें वह अस्पताल से गायब रहकर प्राइवेट प्रैक्टिस करते दिख रहा है।

बुधवार, 10 मई 2017

बद्रीनाथ धाम यात्रा सुशील अवस्थी राजन के साथ


बद्रीनाथ धाम दर्शन यात्रा प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबी की हार्दिक इक्षा होती है। आइये मेरे साथ आप भी करें यह यात्रा। मार्ग में बिखरे पडे प्राकृतिक नज़ारे आपको बार बार यहाँ आने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

मंगलवार, 9 मई 2017

क्या बसपा में अब सिर्फ मायावती बचेंगी?

आज मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से बाहर कर दिया। आरोप ये कि चुनाव के नाम पर नसीम नें कई लोगों से पैसा लिया। जबकि हम सभी लोग ठीक से जानते हैं टिकट के नाम पर पैसा वसूलने की परंपरा खुद माया ने ही शुरू की थी। मुझे नहीं लगता कि सिर्फ पैसा वसूलने के लिए नसीमुद्दीन को बाहर किया गया, बल्कि वह पैसा माया तक न पहुचाना उनके निष्कासन की वजह हो सकती है। तब नसीम के पार्टी से बाहर जाने का क्या नुकसान होगा, जब पार्टी में वैसे ही बसपा छोंड़कर जाने वालों की होड़ लगी हो। स्वामी प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक जैसे बड़े नेता मायावती को कबका छोंड़कर जा चुके हैं। जहाँ एक ओर बहुजन समाज पार्टी का ढाँचा पहले ही चरमराया हुआ है, ऐसे में नसीमुद्दीन जैसे बड़े मुस्लिम नेता को खुद माया द्वारा निकाला जाना, यह दर्शा रहा है कि बसपा अब ख़त्म होने के कगार पर खड़ी है। अब तो ऐसा लग रहा है कि बसपा में सिर्फ मायावती सुप्रीमों रह जाएँगी, और एससी मिश्रा कार्यकर्त्ता।
    सच्चाई यह है कि मायावती गज़ब की बेवकूफ, और मूर्ख हैं। मान्यवर कांसीराम के संपर्क में आने और मान्यवर साहब द्वारा उन्हें अपना अति विश्वासपात्र मान लेने के सिवा इस महिला के जीवन में मुझे और कुछ भी खास नहीं लगता। इस प्रकरण में भी मुझे संयोग और किस्मत का ही सारा कमाल नज़र आता है। अब माया और एससी में मुझे कांसीराम जी जैसा वह संघर्ष का माद्दा भी नहीं नज़र आता कि कहा जा सके कि ये लोग पार्टी का पुनर्निर्माण कर सकेंगे। क्योंकि अब बगैर उस पुराने काँशीरामी संघर्ष के इस पार्टी को पुनः जीवित कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। इसलिए ये वक्त मुझे बसपा के अंतिम संस्कार का वक्त लगता है।

सोमवार, 8 मई 2017

कानून को हाथ से नहीं, पैरों से रौंदना चाहते हैं यूपी के कुछ भाजपाई


   
        सत्ता का नशा आजकल यूपी के भाजपाइयों पर सर चढ़कर बोल रहा है। अभी एक जिले के एसपी को प्रताड़ित किये जाने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि गोरखपुर की लेडी सिंहम के नाम से विख्यात प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी चारु निगम को भाजपा विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल द्वारा अपमानित किये जाने का मामला गर्म हो उठा है। मा0 सत्ताधारी विधायक लेडी आईपीएस से सार्वजानिक रूप से जिस तरह पेश आये, वह भाजपाइयों पर चढ़ा सत्ता का नशा ही कहा जायेगा।
      इस तरह की घटनाएं अब आम बात होती जा रही है। इसकी जितनी निंदा की जाय कम है। उत्तर प्रदेश में अब भाजपाइयों से आईपीएस भी खौफ खाने लगे है। वो अलग बात है कि योगी जी रोज़ अपना तकिया कलाम दुहराते रहते हैं कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इज़ाज़त नहीं दी जायेगी। सत्ता के नशे में चूर भाजपाई भी योगी जी के आदेशों का बेधड़क अनुपालन कर रहे हैं। वह कानून को हाथ में तो नहीं ही ले रहे, बल्कि अपने पैरों से रौंद रहे हैं। खैर हाथ में तो नहीं ही ले रहे हैं न?

रविवार, 7 मई 2017

"राम" सकल नामन से अधिका....

    कौन ऐसा हिन्दू होगा जो अपने जीवन काल में एक बार अपने मुंह से यह न बोलता होगा कि राम नाम सत्य है। हाँ ये भी हो सकता है कि वह अपने पूरे जीवन काल में अगर वह किसी और भगवान् का उपासक हो तो न बोल पाता हो कि अमुक नाम सत्य है। क्यों? 
 तुलसी बाबा अपने महाकाव्य रामचरित मानस में, एक प्यारी चौपाई लिखते हैं कि 

"राम सकल नामन से अधिका, होउ नाथ अघ खग गन बधिका"

ये तब का प्रसंग है जब श्री राम माता सीता को खोजते हुए दंडकारण्य में भटकते हैं, और उसी दरम्यान उनसे देवर्षि नारद मिलते हैं। नारद प्रभु क़ी विरह वेदना के अभिनय में ईश्वर द्वारा उठाये जा रहे अपार कष्ट को देखकर द्रवित हो जाते हैं। चलते समय लीलाधारी भगवान राम उनसे कोई वरदान मांगने को कहते है। नारद के श्री मुख से तुलसी बाबा यही चौपाई कहलाते है कि 

"राम सकल नामन से अधिका" 

आशय यह है कि भगवन आपने अनेकों अवतार लिए हैं, और आगे भी अनेंकों लेंगे, परंतु उन सब में "राम" नाम का ही महत्त्व अधिकाधिक रूप में सदैव बना रहे।

"होउ नाथ अघ खग गन बधिका"

और यही नाम कलियुग में अघ= पाप, खग= पक्षी, गन= समूह, बधिका= बध करने वाला याने शिकारी। अर्थात पापो के समूह का नाशकर्ता बने। भगवान राम नें नारद जी को जो वरदान दिया, ये उसी का असर है कि आज भी हम सबको राम नाम ही सत्य लगता है। 

मिशन 2019: योगी से ही आस,योगी पर विश्वास

"सीएम #योगी के शुरुआती तेवरों से लग रहा था कि वो यूपी की भ्रष्ट और लापरवाह नौकरशाही को बदल कर रख देंगे, लेकिन अब साफ दिख रहा है कि इन नौकरशाहों के नापाक गैंग ने उनको बदल कर रख दिया है"
हज़रतगंज थाने का औचक निरीक्षण, गोमती रिवर साइड पर ऑन स्पॉट सवाल-जवाब। ये जनता को रास आ रहा था। असल में जनता जो कि सारी राजनीतिक व्यवस्था की मालिक है, भ्रष्ट नौकरशाही उसको गुलामों की तरह ट्रीट करती है। जनता की इस नौकरशाही से जातीय खुन्नस है। जब ये नौकरशाही किसी के सामने गिड़गिडाउ मुद्रा में दिखती है, तो इस व्यवस्था के असल मालिक अर्थात जनता को बड़ा सुकून मिलता है। अगर ये सुकून देने का काम उसका चुना हुआ प्रदेश का मुखिया करता है, तो जनता की अपार मेहरबानियाँ उसी पर बरसती हैं।
शुरुआत में #मायावती ने भी जनता और नौकरशाहों के बीच स्थापित इसी मनो भड़ास का पूरा फायदा उठाया था, तभी तो वो औचक निरीक्षण में सार्वजानिक रूप से अधिकारी से कहती थी, कि ऊपर मुंह क्या देखता है, नीचे नाली देख कितनी गन्दी है? मायावती नें अपने ये तेवर एक दो महीने नहीं बल्कि सालों तक बरकरार रखे थे। एक समय नौकरशाही उनके नाम से काँपती थी। वो अलग बात है कि कालान्तर में वो खुद भी इसी भ्रष्ट नौकरशाही की कठपुतली बन गयी थी।
असल में यह नौकरशाही आज भी अंगरेजी मानसिकता के कीटाणुओं,जीवाणुओं और विषाणुओं से युक्त है। ये ईमानदार को ईमानदार और बेईमानों को बेईमान नहीं रहने देना चाहती है। ऐसा नहीं है कि मैं सुशील अवस्थी राजन योगी विरोधी हूँ। बल्कि मुझे इसी योगी में यह आशा की किरण दिख रही है कि वह असल मालिक यानी जनता को उसका मालिकाना हक़ दिला सकता है, और नौकर को नौकर बना सकता है। मेरी यह आशा जब मरती हुई दिखती हैं तो तकलीफ होती है। मिशन 2019 साधने के लिए योगी को वही करना होगा, जो मैं यानी जनता चाहती है।

बांग्लादेशी सेक्सवर्कर ने मांगी मोदी से मदद


बांग्लादेश की एक गार्मेंट फ़ैक्ट्री में नौ हज़ार रूपए के मासिक वेतन पर काम करने वाली तलाक़शुदा महिला आयशा (बदला हुआ नाम) को उनके ही एक सहकर्मी ने भारत में अच्छी नौकरी का लालच दिया था.
उस व्यक्ति पर भरोसा कर, बिना माँ-बाप को बताए, दलाल के माध्यम से वो मुंबई पहुँचीं, मगर वहाँ उनके ही सहकर्मी ने मात्र 50 हज़ार रूपए में उन्हें एक नेपाली औरत को बेच दिया, जो एक वेश्यालय चलाती थी.
फिर आयशा को जबरन देह-व्यापार करना पड़ा, और मुंबई से बेंगलुरु तक अलग-अलग शहरों में देह-व्यापार के अड्डों से होती हुई, अलग-अलग लोगों के चंगुलों में फँसने के बाद, अंततः उनका ठिकाना बना पुणे का रेड लाइट इलाक़ा.
वहीं से कुछ दिनों पहले पुणे शहर की पुलिस ने उन्हें छुड़ाया और एक ग़ैर-सरकारी संस्था के सुपुर्द कर दिया. इस संस्था के लोगों ने ही मुंबई में बांग्लादेशी उच्चायोग से जुड़े दफ़्तर के साथ संपर्क किया और आयशा के घरवालों का नाम-ठिकाना बताया.
जल्दी जाँच-पड़ताल पूरी हुई और आयशा को उनके देश वापस भेजने की व्यवस्था और तैयारी की गई. अगर सब कुछ ठीक रहा तो वो 15 मई को बांग्लादेश लौट भी जाएँगी.
आयशा की अभी तक की कहानी अभी तक बांग्लादेश की दूसरी हज़ारों असहाय नारियों की तरह ही लगती है - जो अच्छे काम की तलाश में भारत आती हैं और एक अंधेरी ज़िंदगी में फँस जाती हैं.
मगर आयशा की कहानी में एक मोड़ है - और वो ये कि भारत से बांग्लादेश लौटने से पहले उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक मर्मस्पर्शी चिट्ठी लिखी.
उसमें लिखा है कि उन्होंने भारत में अपने ग्राहकों से टिप में मिले कुछ पैसे बचा रखे हैं, मगर उनमें से अधिकतर पाँच सौ और हज़ार रुपए के पुराने नोट हैं, जो रद्द हो गए हैं. अत्यंत कष्ट और कलंक उठाकर कमाए गए उनके कुछ हज़ार रूपयों को यदि प्रधानमंत्री मोदी बदलवा दें, तो वो उनकी कृतज्ञ रहेंगीं.
इस भावुक चिट्ठी का रेस्क्यू फ़ाउंडेशन की रूपाली शिभारकर ने हिन्दी में अनुवाद किया, फिर हाथ से लिखी उस चिट्ठी को आयशा की ओर से प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट कर दिया गया.
मोदी और सुषमा नियमित रूप से अपने ट्वीट चेक करते हैं, और सुषमा स्वराज तो अक्सर मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करती रही हैं, इसी उम्मीद से आयशा ने चिट्ठी लिखी.
उनकी इस चिट्ठी पर भारत के कई समाचार माध्यमों ने रिपोर्ट की. रेस्क्यू फ़ाउंडेशन की प्रमुख त्रिवेणी आचार्य ने बताया,"हमने जब पुलिस की मदद लेकर आयशा को बचाया, तो उसे एक कपड़े में उस इलाक़े से बाहर लाना पड़ा. उसके बाद कोर्ट-कचहरी-दूतावास की भागदौड़ के कारण उन्हें वहाँ से अपना सामान लाने का मौक़ा ही नहीं मिला."
"बाद में उसने जब बताया कि उसने कुछ पैसे छिपाकर रखे हैं, तो हम दोबारा वहाँ गए और एक ट्रंक के भीतर कपड़ों के बीच छिपाकर रखे गए 12-13 हज़ार रूपयों को बरामद किया."
चिट्ठी में आयशा ने बताया- ''बैंगलुरू के रेड लाइट एरिया में काम करते समय कोठे के मालिक हाथ में एक भी पैसा नहीं देते थे. मगर ग्राहक ख़ुशी से जो टिप देते थे, वो पेटीकोट के भीतर किसी तरह छिपाकर रख लेती थी, इनमें अधिकतर पाँच सौ और हज़ार रूपए के नोट थे.''
लेकिन 31 दिसंबर को नोट बदलने की समयसीमा समाप्त होने के बाद उनके ये पैसे बेकार हो गए. पुणे के कटराज घाट स्थित रेडलाइट इलाक़े से आयशा को बाहर निकालने में शहर की पुलिस कमिश्नर रश्मि शुक्ला ने व्यक्तिगत दिलचस्पी ली थी.
वो कहती हैं, "इस असहाय बांग्लादेशी लड़की के इतने कष्ट से कमाए गए पैसों के बर्बाद होने की बात सोचकर बहुत बुरा लग रहा है. उसकी चिट्ठी के बाद शायद केंद्र सरकार कुछ मदद करे. लेकिन अगर वो नहीं भी हो पाया, तो हम ये प्रयास करेंगे कि उसके बांग्लादेश लौटने से पहले उसे कुछ आर्थिक मदद दी जा सके."
दस हज़ार रुपए शायद कई लोगों के लिए कोई बहुत बड़ी रकम ना हो, मगर आयशा के लिए उनका मोल बहुत ज़्यादा है.
और अगर उनकी वापसी से पहले भारत सरकार उनके नोटों को बदल सके, तो ये ना केवल आयशा के लिए आर्थिक मदद भर होगी, बल्कि ये उनकी आगे की ज़िंदगी के लिए एक अमूल्य स्मृति बनकर भी रह जाएगी.

शनिवार, 6 मई 2017

दुनिया में पुरुषों की संख्या महिलाओं से ज्यादा क्यों होती है?

     
    विश्व की जनसंख्या सांख्यिकी का आंकड़ा कहता है कि दुनिया में महिला-पुरुष अनुपात 100:102 है. पैदा होने वाले बच्चों का लिंग अनुपात देखें तो पलड़ा पुरुषों की तरफ और झुक जाता है क्योंकि यह अनुपात 100:107 है. दुनियाभर में महिलाओं को बराबर अधिकार दिलाने के लिए लड़ रहे फेमिनिस्ट कुदरत की इस गैर-बराबरी पर क्या कहेंगे, यह लंबी चर्चा का विषय है इसलिए इस पर कभी और बात करेंगे. फिलहाल सवाल यह है कि दुनिया में पुरुषों की संख्या महिलाओं से हमेशा ही ज्यादा क्यों और कैसे रहती है?
    जीवविज्ञानियों का मत है कि आज हम जो असंतुलन देख रहे हैं, उसकी वजह भी संतुलन की कोशिश है. हजारों सालों के विकास के बाद हर बदलती हुई जीवनशैली में प्रकृति पुरुषों के अस्तित्व को लगातार संकट में पाती है. इसके साथ ही चिकित्सा विज्ञान मानता है कि किसी भी असामान्य परिस्थिति में मादा भ्रूणों की तुलना में नर भ्रूण के गर्भपात की संभावना ज्यादा होती है. वहीं जन्म के बाद पुरुषों का जीवन भी महिलाओं की तुलना में ज्यादा जोखिमभरा होता है. युद्ध, बीमारी या किसी बुरी आदत का शिकार होने से उनके जीवन पर हमेशा संकट बना रहता है. यह निश्चित रूप से उनकी संख्या को भी प्रभावित करता है.
    इसके उलट महिलाओं का जीवन अपेक्षाकृत सुरक्षित और आसान होता है. साथ ही महिलाओं में सर्वाइव करने की क्षमता भी ज्यादा होती है. ऐसे में प्रकृति यह मानकर चलती है कि जितनी महिलाएं पैदा की गई हैं उनमें से एक बड़ी संख्या अपना जीवन बचाने में सफल होगी, जबकि पुरुष ऐसा नहीं कर पाएंगे. इसलिए प्रकृति ज्यादा पुरुषों को पैदा कर अपना संतुलन साधने का प्रयास बनाए रखती है. प्रकृति में यह क्रम निरंतर चलने वाला है. जीवविज्ञान इसे फिशर सिद्धांत के नाम से जानता है. इसके अनुसार हर प्रजाति समय के साथ समान लैंगिक अनुपात की तरफ बढ़ती है. इस हिसाब से प्रकृति की यह व्यवस्था तब तक जारी रह सकती है, जब तक कि उस तक यह संदेश न पहुंचे कि पुरुष अब सुरक्षित हैं.

सार्क सैटेलाइट परियोजना से भारत ने ही उसे अलग किया:पाक


पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा- सार्क सैटेलाइट परियोजना को भारत अकेले ही पूरा करना चाहता था, इसलिए साथ देना संभव नहीं हुआ


सार्क सैटेलाइट परियोजना से बाहर होने के लिए पाकिस्तान ने भारत पर ही आरोप मढ़ दिया है. उसके मुताबिक, नई दिल्ली परस्पर सहयोग के आधार पर उपक्रम विकसित करने का इच्छुक नहीं था.
पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता नफीस जकरिया ने शनिवार को कहा, ‘भारत ने 2014 में 18वें सार्क (दक्षिण एशिया सहयोग संगठन) शिखर सम्मेलन के दौरान साझा उपग्रह का तोहफा देने की पेशकश की थी. लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह इसका अकेले निर्माण, प्रक्षेपण और संचालन भी करेगा.’ उन्हाेंने कहा, ‘इसमें पाकिस्तान भी अपनी विशेषज्ञ सेवाएं देना चाहता था. लेकिन भारत परस्पर सहयोग के आधार पर इसे आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था. इसीलिए पाकिस्तान के लिए इसमें सहयोग देना संभव नहीं हो पाया.’
गौरतलब है कि भारत ने शुक्रवार को ही दक्षिण एशिया संचार उपग्रह (जीसैट-9) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है. इस उपग्रह को बनाने से लेकर प्रक्षेपण तक कुल 450 करोड़ रुपए का खर्च आया है. इसे पूरी तरह भारत ने उठाया है. भारत के इस प्रयास का बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव आदि सार्क के सभी सदस्य देशों ने स्वागत किया है. इस परियोजना से पाकिस्तान के बाहर होने के बाद इसका नाम बदलकर ‘सार्क सैटेलाइट’ के बजाय ‘दक्षिण एशिया संचार उपग्रह’ कर दिया गया था.

ट्रंप के खिलाफ अमेरिकी प्रेस का जंगी ऐलान..

कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू की पब्लिशर कायल पोप ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक खास लेटर लिखा है. इस लेटर को उन्होंने यूएस प्रेस कॉर्प्स की तरफ से लिखा है. ये खुला पत्र मीडिया के उस पहलू को उजागर करता है जिसपर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया.
ट्रंप के नाम ये है पैगाम-
हम एक साथ काम करेंगे. आपने हमे अलग करने की कोशिश की है और कई परिवारों में लड़ाई करवाने की कोशिश की है. पर वो दिन अब खत्म हो रहे हैं. हमें अब समझ आ गया है कि आपकी कवरेज के लिए हमें एक जुट होना पड़ेगा. तो अब जब भी आप अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस पर किसी रिपोर्टर पर चिल्लाएंगे जिसकी कोई बात आपको चुभी हो तब आपको सभी का सामना करना होगा. हम सभी ऐसी स्टोरी पर काम करेंगे जो सेंसेबल हों और इसका ध्यान रखेंगे कि दुनिया के सामने हमारे द्वारा लिखी गई बातें आएं. हम यकीनन हर बात पर सहमत नहीं होंगे, हमारे बीच बहस भी होगी कि क्या सही है और क्या नहीं, लेकिन ये बहस शुरू से अंत तक हमारी ही होगी.
डोनाल्ड ट्रंप के लिए लिखा गया खुला पत्र
इस पत्र में ट्रंप के कई ऐसे कृत्यों के बारे में बताया गया है जिसमें मीडिया वालों के साथ बदसलूकी की गई है.
पत्र के अन्य अंश-
1. आप मिलें तो ठीक नहीं तो और भी तरीके हैं- अगर आपको लगता है कि अपने एडमिनिस्ट्रेशन की एक्सेस देकर पत्रकारों पर कोई दया कर रहे हैं तो ऐसा नहीं है. हम किसी भी तरह से सच ढूंढ निकालेंगे. चाहें आप रैली में बैन ही क्यों ना कर दें. ये हमारे लिए चुनौती होगी.
2. क्या औपचारिक रहेगा और क्या आधिकारिक ये हम तय करेंगे- आप हमारे लिए नियम नहीं बना सकते. किस अधिकारी से कैसे बात करनी है ये हम ही तय करेंगे. आप नियम बनाएं और हम उन्हें मानें ऐसा नहीं होगा.
3. ये हम तय करेंगे कि किसको कितना समय देना है-सिर्फ आपके कहने पर हम आपके किसी वक्ता के लिए अपना ऑन एयर टाइम नहीं बढ़ाएंगे. हम तय करेंगे कि उन्हें कब पब्लिक के सामने भेजना है या कब बैन करना है.

शुक्रवार, 5 मई 2017

भारत का पड़ोसी देशों को तोहफा, दक्षिण एशिया उपग्रह जीसैट-9 सफलतापूर्वक लॉन्च


दक्षिण एशिया उपग्रह ‘जीसैट-9’ के सफल लॉन्च के साथ भारत ने अंतरिक्ष कूटनीति की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. इसे शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम चार बजकर 57 मिनट पर छोड़ा गया. इसके लॉन्च में 49 मीटर लंबे और 450 टन वजनी जीएसएलवी रॉकेट का इस्तेमाल किया गया. इस उपग्रह को बनाने से लेकर लॉन्च तक कुल 450 करोड़ रुपये का खर्च आया है, जिसे भारत ने उठाया है.
भारत द्वारा अपने पड़ोसी देशों को दिए गए इस तोहफे से संचार सुविधाएं मजबूत होंगी. इसके अलावा आपदा राहत के कार्यों में इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा. इसके आंकड़े नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान के साथ साझा किए जाएंगे. पाकिस्तान ने इस सैटेलाइट से कोई भी मदद लेने से इनकार कर दिया था. उसका तर्क है कि इन कामों के लिए उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशिया उपग्रह के सफल लॉन्च को दक्षिण एशिया के लिए ऐतिहासिक दिन बताया है और इस सफलता के जश्न में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका के नेताओं का आभार जताया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हमारा साथ आना इस बात का संकेत है कि हम अपने लोगों की आवश्यकताओं को सबसे आगे रखने के लिए कटिबद्ध हैं.’ वहीं, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि आज चर्चा और उस पर कार्रवाई के बीच का अंतर मिट गया है. उधर, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस उपलब्धि के लिए भारत को बधाई दी और इससे क्षेत्रीय सहयोग बढ़ने की उम्मीद जताई है. भूटान के प्रधानमंत्री शेहरिंग ताबगे ने कहा कि इस उपग्रह से क्षेत्रीय सहयोग और साझा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने कहा कि इससे नेपाल के पहाड़ी और पर्वतीय इलाके में संचार सुविधा बहाल करने में मदद मिलेगी.
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के आठ सदस्य देशों में भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के पास अपने उपग्रह हैं, जबकि अन्य के पास अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम जहां स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है, वहीं पाकिस्तान और श्रीलंका ने चीन की मदद के अपने-अपने उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं. अफगानिस्तान के पास यूरोपीय स्पेस एजेंसी से खरीदा गया एक संचार उपग्रह है. नेपाल और बांग्लादेश के पास अपना कोई उपग्रह नहीं है, लेकिन वे इसे हासिल करने की दिशा में तेजी से प्रयास कर रहे हैं.

गद्दारों के आगे दिल्ली, कब तक घुटने टेकेगी?


काश्मीर में पत्थर खाते,
और सुकमा में गोली।
आखिर "राजन' कब तक होगी,
मेरे संग ठिठोली?

सीमा पर ये हिज़ड़े कब तक
मेरी गर्दन काटेंगे?
बोलो कब तक हम कुत्तो को
"निंदा" बिस्किट बाँटेंगे?

गद्दारों के आगे दिल्ली
कब तक घुटने टेकेगी?
मेरा शौर्य पराक्रम दुनिया,
आखिर किस दिन देखेगी?

एक बार ओ छप्पन इंची,
मेरी बाँहें खोल तो।
एक शब्द बस "आक्रमण"
तू अपने मुंह से बोल तो।

जिस नापाक जमीं को दुनिया
आज कह रही "पाकिस्तान"
लाशों के अम्बार देख उसे
बोल पड़ेगी "कब्रिस्तान"

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...