सोमवार, 14 मई 2018

सिर्फ जिन्ना पर भारत विभाजन का दोष क्यों?

प्रभात रंजन दीन
साथियो..! कभी-कभी कुछ बातें आपको भीतर तक इतनी चुभा देती हैं कि उस निरूपित-पीड़ा के खिलाफ आपकी जानकारी और आपकी समझ बगावत करने लगती है. आज के अखबारों में कांग्रेसी नेता स्वनामधन्य शशि थरुर का बयान सुर्खियों में छपा है. अखबार वालों से तो आप अब उम्मीद ही न करें कि वो कोई खबर देश-समाज के हित को ध्यान में रख कर छापते हैं. अखबार और मीडिया की सोच-समझ बहुत शातिराना है. किन बातों से समाज में विद्वेष फैलेगा, किन बातों से कटुता फैलेगी, नफरत का सृजन होगा, उन्माद भड़केगा और अराज कायम होगा, ऐसे विषय अखबारों और चैनलों में खबर बनते हैं. मीडिया का दोनों पक्ष अतिवाद का शिकार है. एक पक्ष विरोध की अति पर है दो दूसरा पक्ष चाटुकारिता की अति पर. दोनों ही पक्ष विश्वास-हीन हैं. हम उस दौर में पहुंच गए हैं जहां आपको अपनी खुद की समझ से समझदारी विकसित करनी है, आप मीडिया को समाज का दिग्दर्शक समझने की भूल न करें, वो आपको गहरे अंधे खड्ड की तरफ ले जा रहे हैं. 

खैर, गुस्सा आ गया इसलिए थोड़ा इधर-उधर हो गया. कांग्रेस नेता शशि थरुर लखनऊ आए थे और वे कांग्रेस के प्रबुद्धजनों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने जिन्ना का प्रकरण उठाया और कहा कि यह जनता का ध्यान भटकाने के लिए किया गया है. थरुर ने फिर ‘भारत माता की जय’ का मसला उठाया और संविधान को सामने लाते हुए कहा कि ‘भारत माता की जय’ बोलने के लिए हमें संविधान बाध्य नहीं करता. थरुर ने यह भी कहा कि मुसलमानों के मजहब में इसे बोलने से मनाही है. यह कैसी बौद्धिक सभा थी कि सारे लोग थरुर का अबौद्धिक वक्तव्य सुनते रहे, किसी ने कोई प्रति-प्रश्न नहीं किया और अखबार वालों ने भी उसे हूबहू छाप दिया! भारतीय संविधान के भाग चार (क) का अनुच्छेद 51 (क) नागरिकों के मूल कर्तव्य को पारिभाषित करता है. संविधान में 10 मूल कर्तव्य उल्लेखित हैं. लेकिन यहां मैं आपको पहले तीन कर्तव्य की याद दिलाता हूं:- 
1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्र-गान का सम्मान करें.
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय से संजोए रखें और उसका पालन करें.
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें.

संविधान का कंधा इस्तेमाल कर थरुर ने समाज में विद्वेष फैलाने वाली कुत्सित बात कही. संविधान में कहां लिखा है कि ‘भारत माता की जय’ मत बोलो! संविधान में यह भी नहीं लिखा है कि ‘भारत माता की जय’ बोलो, लेकिन संविधान में यह जरूर लिखा है कि ‘स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय से संजोए रखें और उसका पालन करें.’ ...‘भारत माता की जय’ का नारा राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े क्रांतिकारियों ने दिया था. हम उन उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखने और पीढ़ियों तक उस संस्कार को ले जाने के लिए कहते हैं, ‘भारत माता की जय’. संविधान कहता है कि हमें भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करनी है और उसे अक्षुण्ण रखना है, इसलिए हमारा ‘भारत माता की जय’ कहना सबसे बड़ा और प्राथमिक धर्म है. 

शशि थरुर नाम का अबौद्धिक व्यक्ति कहता है कि मुसलमानों में ‘भारत माता की जय’ कहना मना है. अरे..! यह कैसा पढ़ा-लिखा व्यक्ति है..! ‘मादरे वतन भारत की जय’ कहना क्या है..? 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम की पहली क्रांति शुरू हुई थी, तभी अजीमुल्लाह खान ने ‘मादरे वतन भारत की जय’ का नारा दिया था... यह ‘भारत माता की जय’ का ही तो उर्दू तरजुमा था! हम सब बड़े गर्व से ‘जय हिंद’ कहते हैं. इसमें कहां कोई धर्म आड़े आता है! ‘जय हिंद’ का नारा आबिद हसन सफरानी ने दिया था, थरुर साहब! बात कड़वी जरूर है, लेकिन थरुर साहब के लिए सटीक है... आप पहले अपनी पत्नी के प्रति वफादार होना सीख लें, देश के प्रति वफादारी आ जाएगी. 

बहरहाल, जिन्ना पर आते हैं. जिस जिन्ना ने खुद कभी इस्लाम की शिक्षा नहीं मानी और हर वे हरकतें कीं जो इस्लाम के खिलाफ मानी जाती हैं, उसी जिन्ना को लेकर कुछ मुसलमान बेवजह फना हुए जा रहे हैं. लेकिन जिन लोगों ने जिन्ना की तस्वीर का मसला उठाया है, उसके पीछे उनकी कोई राष्ट्र-भक्ति नहीं, वह केवल वोट-भक्ति है. यह कांग्रेस के पैंसठ साल तक चले फार्मूले का प्रति-फार्मूला है, जिसे भाजपा आजमा रही है. 

भारत के विभाजन के लिए अकेले जिन्ना दोषी नहीं हैं. भारत के विभाजन के लिए जिन्ना के साथ-साथ नेहरू और गांधी भी दोषी हैं. साथ-साथ वे सब दोषी हैं जिन्होंने एक तरफ जिन्ना का साथ दिया तो दूसरी तरफ नेहरू का. इन सब लोगों ने मिल कर देश विभाजन का आपराधिक कृत्य किया. हम अकेले जिन्ना जिन्ना क्यों रट लगा रहे हैं..? गांधी को राष्ट्रपिता का सम्मान हासिल था. पिता जब तक जीवित रहता है, घर का बंटवारा नहीं होता. भाई आपस में चाहे जितना मनमुटाव रखें, पर पिता के सामने उनकी नहीं चलती. पिता का आखिरी हथियार होता है, ‘मेरी लाश पर ही घर का बंटवारा होगा.’ यह कह कर पिता घर को बांधे रहता है. लेकिन राष्ट्रपिता गांधी ने राष्ट्र-गृह का विभाजन रोकने के लिए ऐसा क्या किया..? अगर वह जिन्ना और नेहरू की सत्ता-लालसा के आगे इतने ही निरीह हो गए थे, तो देश के समक्ष जिन्ना-नेहरू की लिप्सा उजागर करते और देश के बंटवारे के मसले को देश की जनता के जिम्मे छोड़ देते! गांधी ने ऐसा क्यों नहीं किया..? जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव देकर नेहरू मुस्लिम लीग की दुर्भावना पर पानी फेर सकते थे और आम चुनाव के जरिए देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनने का रास्ता अपना सकते थे. लेकिन जिन्ना और नेहरू दोनों पर ही ‘प्रथम’ होने की सनक सवार थी. इसी सनक पर देश बंट गया और देश के लोगों से पूछा भी नहीं गया. देश को जिन्ना और नेहरू ने अपनी-अपनी बपौती समझ कर बांट लिया. हम इन दोनों को अपने-अपने देश में महान बनाए बैठे हैं. देश के बंटवारे के मसौदे पर नेहरू और जिन्ना ने हस्ताक्षर किए, गांधी मूक बने बैठे रह गए. नेहरू अगर राष्ट्रभक्त होते तो बंटवारे के मसौदे पर साइन करने से इन्कार कर देते..! फिर कुछ दिन और आजादी की लड़ाई लड़ी जाती. जूझारू क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने ‘टू-नेशन थ्योरी’ का पुरजोर विरोध किया था और बंटवारे के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि सावरकर को भावी नस्लों के सामने विलेन की तरह पेश किया गया और हमने भी बिना सोचे समझे सावरकर को विलेन कहना शुरू कर दिया. यह बंटवारा-परस्तों का षडयंत्र था, जिसने हमारा दिमाग ग्रस लिया. सत्ता के भांड इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर उलट-पलट कर हमारे सामने पेश किया. हमने इसे इतिहास समझ लिया, साजिश नहीं समझा. 

हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहते हैं, क्योंकि हमें ऐसा कहने को कहा गया. हमें अपना राष्ट्रपिता चुनने का अधिकार नहीं. वैसे ही जैसे हमें अपने देश को एक बनाए रखने का अधिकार नहीं था. भारतवर्ष के राष्ट्रपिता का व्यक्तित्व बाबा साहब भीमराव अंबेडकर में था. भ्रमित-खंडित देश ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया. भारत राष्ट्र और भारतीय समाज को लेकर एक बाप की तरह की पीड़ा थी बाबा साहब में, इस पर हमने सोचा ही नहीं. धारा 370 को लेकर आज भाजपा जो भी राजनीति करती रहे, बाबा साहब ने इसे लागू करने को लेकर पुरजोर विरोध किया था, यहां तक कि शेख अब्दुल्ला को अपने कक्ष से बाहर निकाल दिया था. फिर नेहरू, पटेल और अब्दुल्ला ने षडयंत्र करके संविधान निर्माण प्रारूप समिति के अध्यक्ष और कानून मंत्री बाबा साहब को दरकिनार कर संसद से धारा 370 का प्रस्ताव पारित कराया. 

राष्ट्रपिता बाबा साहब अंबेडकर ने भारत के विभाजन का तगड़ा विरोध किया था. लेकिन बाबा साहब की एक नहीं सुनी गई. बाबा साहब की किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्‍तान’ पढ़ें तो ‘महापुरुषों’ के कुकृत्य देख कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और मन वितृष्णा से भर जाएगा. सत्ता-लोलुपता से ग्रस्त ‘महापुरुष’ देश के टुकड़े करने से बाज नहीं आए और इसके लिए क्या क्या हरकतें नहीं कीं! बाबा साहब ने अपनी किताब में सावरकर का जिक्र करते हुए लिखा है कि सावरकर देश बंटवारे के विरोध में थे. यहां तक कि सावरकर ने दो देश बनने के बावजूद एक ही संविधान रखने की आखिरी कोशिश की थी, लेकिन उसमें भी वे नाकाम रहे. देश का विभाजन करने पर आमादा जिन्ना और नेहरू को बाबा साहब ने बुरी तरह लताड़ा था. 1940 में लिखी इस किताब में उन्होंने एक तरफ मुस्लिम लीग तो दूसरी तरफ कांग्रेस की खूब छीछालेदर की थी. बाबा साहब भारतवर्ष को अखंड देखना चाहते थे. उनका मानना था कि देश को दो भागों में बांटना व्‍यवहारिक रूप से अनुचित है और इससे मनुष्‍यता का सबसे बड़ा नुकसान होगा. और ऐसा ही हुआ. विभाजन के दौरान हुई भीषण हिंसा आज भी आंखों में लहू उतार देती है. कौन-कौन दोषी हैं इसके लिए..? क्या अकेले जिन्ना..? या साथ में नेहरू भी..? और साथ में गांधी भी..? बाबा साहब भारतवर्ष को भौगोलिक और सांस्कृतिक नजरिए से एक समग्र राष्ट्र के रूप में देखते थे. जैसा एक राष्ट्रपिता देखता है... आप ‘भारत माता की जय बोलें’, आप ‘मादरे वतन भारत की जय बोलें’ और आप बोलें ‘राष्ट्रपिता बाबा साहब अंबेडकर की जय’... यह बोलने में धर्म, जाति, वर्ण, सवर्ण सब भूल जाएं, केवल राष्ट्र याद रखें...

तुलसीदास ने अपनी रचना "तुलसी शतक" में किया है "बाबरी मस्जिद" का उल्लेख

आम तौर पर हिंदुस्तान में ऐसी परिस्थितियां कई बार उत्पन्न हुई जब राम -मंदिर और बाबरी मस्जिद (ढांचा ) एक विचार-विमर्श का मुद्दा बना और कई विद्वानों ने चाहे वो इस पक्ष के हो या उस पक्ष के अपने विचार रखे . कई बार तुलसीदास रचित रामचरित मानस पर भी सवाल खड़े किये गए की अगर बाबर ने राम -मंदिर का विध्वंश किया तो तुलसीदास जी ने इस घटना का जिक्र क्यों नही किया . 
सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी की रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं . वस्तुतः रामचरित्रमानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है . तुलसीदास जी ने तुलसी शतक में इस घंटना का विस्तार से विवरण दिया है .

हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उतपन्न की,कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है . श्री नित्यानंद मिश्रा ने जिज्ञाशु के एक पत्र व्यवहार में "तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है | हमनें भी उन दोहों के अर्थो को आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है | प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है , ध्यान से पढ़ें |

मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ,
बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि,
करि तुलसी परिहास ॥

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।

सिखा सूत्र से हीन करि,
बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते,
तुलसी कठिन कुजोग ॥

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।

बाबर बर्बर आइके,
कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन,
जन तुलसी काल कराल ॥

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।

सम्बत सर वसु बान नभ,
ग्रीष्म ऋतू अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन,
अनरथ किय अनखानि ॥

(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।

राम जनम महि मंदरहिं,
तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते,
तुलसी कीन्ही हाय ॥

जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।

दल्यो मीरबाकी अवध,
 मन्दिर राम समाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति,
त्राहि त्राहि रघुराज ॥

मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।

राम जनम मन्दिर जहाँ,
तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ,
मीरबकी खल नीच ॥

तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई ।

रामायन घरि घट जहाँ,
श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह,
करत कुरान अज़ान ॥

श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।

अब यह स्पष्ट हो गया कि गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया है।

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...