गुरुवार, 15 जून 2017

काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ

विभीषण द्वारा रावण को समझाने के लिए तुलसीदास अपने महाकाव्य राम चरित मानस के सुन्दरकाण्ड में यह सुन्दर चौपाई लिखते है-
काम, क्रोध, मद, लोभ, सब,
नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि,
भजहुँ भजहिं जेहि संत।
इसका शाब्दिक अर्थ एकदम स्पष्ट है। वह ये कि काम क्रोध मद मतलब अहंकार और लोभ अर्थात लालच ये सब नरक के रास्ते हैं। इसलिए रावण तू इन सबका बहिष्कार कर सिर्फ राम का भजन कर, जिसका कि संत लोग भजन करते हैं।
यहाँ काम क्रोध मद लोभ आदि कारकों से विभीषण हमेशा के लिए रावण को मुक्त होने के लिए नहीं कहता है। क्योंकि वह जानता है कि सफल राजनीतिक जीवन के लिये काम क्रोध मद लोभ इत्यादि स्वाभाविक तत्वों का होना आवश्यक है। काम संतानोत्पत्ति, क्रोध दुश्मनों के दमन, मद याने स्वाभिमान स्वत्व की वृद्धि, लोभ व्यवसाय वृद्धि में महत्त्व पूर्ण भूमिका अदा करता है। इसलिए वह इन तत्वों को नरक नहीं कहता बल्कि नरक के पंथ कहता है। 

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