कोविन्द सिर्फ इसलिए क्योंकि वे संघी दलित हैं। नहीं तो स्वामीनाथन से ज्यादा किसानों की समस्या को कौन समझ सकता है, और मेट्रोमैन ई श्रीधरन समयबद्ध विकास के खुद प्रतिमान हैं। पार्टी के लिए त्याग तपस्या अगर राष्ट्रपति होने के लिए जरुरी शर्त हो तो आडवाणी जोशी भला कैसे राष्ट्रपति न होते?
भाजपा में अब युग परिवर्तन हो चुका है। मोदी युग ने इस पार्टी की यति-गति सब बदल दी है, जिससे पार्टी की नीति और नियति तक सबमें आमूल-चूल परिवर्तन दिख रहा है। मोदी युग में भाजपा को कार्यकर्त्ता नहीं कार्यवक्ता और विजयी योद्धा चाहिए। अब ये पार्टी नहीं वाहिनी बन चुकी है, जहाँ विजय के सिवा और कोई कर्म नहीं बचा है। कोविन्द नाम को भी मोदी एंड कंपनी दलितों के बीच में गोविन्द नाम की तरह भेजकर 2019 की वैतरिणी पार करना चाहती है। अगर विकास इनका वास्तविक एजेण्डा होता तो ई श्रीधरन से बेहतर कौन होता? यदि किसान को लेकर इनकी पीड़ा असली होती तो भला एमएस स्वामीनाथन का सामना कौन कर सकता था? पार्टी के प्रति निष्ठां और समर्पण को यदि ये सम्मान देना चाहते तो भला आडवाणी और जोशी का मुकाबला कौन कर सकता था?
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