100 दिन काफी कम समय होता है। लेकिन इतने भी कम नहीं कि किसी के स्वभाव या नजरिए का आंकलन न हो सके। यह तो नहीं कहा जा सकता कि योगी सरकार फेल हो गई क्योंकि अभी तो इस सरकार की शुरूआत हुई है। गौर करें तो, इन 100 दिनों में कुछ भी नहीं बदला। बिजली वैसे ही आती जाती है, हत्यारे और चोर उचक्के अभी भी पुरानी सरकार के जाने और नई सरकार के आने के जश्न में डूबे हैं, महिलाओं पर अत्याचार उसी तरह से जारी हैं जैसे पुरानी सरकार में थे, अधिकारी अभी भी जनता को आॅफिस आॅफिस चक्कर लगवा रहे हैं। भ्रष्टाचार बिल्कुल कम नहीं पडा है। सूबे के अन्य शहर तो क्या राजधानी तक अभी भी गंदगी के ढेर पर सवार है, जब कि नगर निगम का मुखिया अब उपमुख्यमंत्री है।
हालांकि योगी जी पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज निभा रहे हैं फिर समस्या कहां है!
समस्या निचले स्तर पर है। योगी जी ने नौकरशाही के उपरी हिस्से पर तो काम किया लेकिन नीचे बैठी काई पर हथौडा नहीं चलाया है। पुलिस विभाग के निचले स्तर के कर्मचारी कई वर्षों से एक ही थाने में जमे हैं। चपरासी और सफाई कर्मी एक ही जगह वर्षों से जमे हैं। यह भी विकास के लिए बाधक हैं। इन पर भी काम करना जरूरी है।
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अश्विनी त्रिवेदी, पत्रकार |
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