गुरुवार, 15 जून 2017

तुम मुझे धन दो, मैं तुम्हे वाह-वाही दूंगा

मैं बतौर पत्रकार लंबे समय से देखता आ रहा हूँ, कि यूपी के सीएम का सूचना परिसर प्रतिदिन सैकड़ों दावों का खर्रा मीडिया संस्थानों को भेजता है। ये हो गया है, वो होने वाला है, आदि अनादि। परंतु बहुत कम ही दावे ऐसे होते हैं, जिन पर यकीन होता है। एक अघोषित अंडर स्टैंडिंग मीडिया संस्थानों व सरकार के बीच पनप उठती है। उन्हें रिलीज़ भेजना है, और हमें छापते जाना है। मतलब मीडिया संसथान के मालिकान का यूपी के सीएम से सिर्फ इतना सा अफ़साना रहता है कि "तुम मुझे धन दो, मैं तुम्हे वाह वाही दूंगा" 
सरकार और मीडिया मालिकान के बीच हुई इन अघोषित दुरभि संधियों से प्रदेश के मुख्यमंत्रियों और उनकी पार्टियों को आज तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। अखिलेश यादव की दुर्दशा हम सबको ठीक से याद है। एक सांध्य अखबार के तेज़ तर्रार मालिक ने अपनी तर्रारी बेंच खूब माल कमाया, पर अखिलेश बाबू के हिस्से कुछ न आया। मतलब सीएम की रिलीज़ न बोले, काम बोलना चाहिए। कौन नहीं मानता कि योगी सीएम बनने के बाद सिर्फ चार दिन ही डायनामिक सीएम रह पाये थे। उसके बाद फिर जैसे सब वैसे ही वो भी। उन चार दिनों की कितनी रिलीज़ जारी हुई थी, लेकिन काम बोलने लगा था। कौन नहीं जानता कि बाबा योगी की सरकार पेट्रोल और डीज़ल चोट्टों के आगे अपना पिछवाड़ा खोल के लेट गयी। इसकी कितनी रिलीजें जारी हुई हैं? हाँ इस सरकार का सिर्फ एक दावा जनता भी सही मान रही है, और वह है गड्ढा मुक्त सड़क का। सड़कों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, और वह दिख भी रहा है।

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