शुक्रवार, 30 जून 2017

चीन जानता है, अब असंभव है उसके लिए 1962 दुहरा पाना

चीन भारत को 1962 की याद 2017 में क्यों दिला रहा है? कहीं उसे भारत ज्यादा आगे बढ़ता तो नहीं दिख रहा है? चीन की अर्थव्यवस्था के अब सुस्ती की ऒर बढ़ने, और भारतीय अर्थव्यवस्था के हुंकारने की भविष्यवाणियां आये दिन दुनिया के कोने कोने में बैठे अर्थशास्त्री प्रायः दुहराते रहते हैं। इस बात का एहसास चीन को होने लगा है। जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान से गहराते हमारे रिश्ते भी चीन के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। अमेरिका से हमारी दांतों काटी रोटी चीन को उसकी चौधराहट नियंत्रित रखने को विवश कर रही है। 1962 की याद दिलाना वास्तव में उसका मानसिक दिवालियापन है। हमारे रक्षामंत्री जेटली नें जो कहा है कि 1962 के और 2017 के भारत में बड़ा अंतर है, एकदम सही बात है। चीन की ताकत उसकी धोखेबाज़ी है। धोखा वही खाता है जो भरोसा करता है। ख़ुशी की बात ये है कि अब भारत नें चीन पर भरोसा करना बंद कर दिया है, इसलिये अब उसकी सबसे बड़ी ताकत धोखेबाज़ी बेअसर हो चुकी है। भारत और चीन दोनों ही जानते हैं कि युद्ध दोनों के तरक्की के मार्ग को अवरुद्ध कर देगा, इसलिए दोनों के बीच अब युद्ध तो असंभव है, लेकिन कूटनीतिक टकरावों और सीमा पर कुछ हिंसक झड़पों से इंकार कर पाना थोडा कठिन कार्य है।
चीनी चौधराहट की हवा निकालने के लिए जहाँ भारत सरकार लगातार कूटनीतिक प्रयास कर रही है, वहीं हम आम भारतीयों को भी इसमें सहयोग करना होगा। व्यक्ति हो या देश हर किसी की चौधराहट उसके पास मौजूद धन पर आधारित होती है। जाने अनजाने चीनी सामान खरीदकर कहीं न कहीं हम भारतीय चीन की चौधराहट के लिए ईंधन ही मुहैया कराते हैं। भारत दुनिया का बड़ा बाजार है, और हम करोड़ों भारतीय उपभोक्ता। अगर हम करोड़ों लोग यह तय कर लें कि जहाँ तक संभव हो सकेगा हम चीनी सामान का बहिष्कार करेंगे तो फिर चीन की हेंकड़ी भी दुरुस्त होने लगेगी। वैसे भी यह किसी सच्चे भारतीय के लिए कैसे संभव है कि जो देश हिंदुस्तान के लिए खतरा हो उसे हम जाने अनजाने में ताकत मुहैया कराने के कारण बन जाँय?

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