गुरुवार, 8 जून 2017

"सबका साथ, खुद का विकास"

 "सबका साथ, सबका विकास" 
इस नारे के दो भाग हैं। पहला भाग है "सबका साथ" और दूसरा भाग है "सबका विकास" मतलब ये कि नारे का पहला भाग जनता को साथ देने के लिए प्रेरित करता कि सभी लोग भाजपा का साथ दो। वहीं दूसरा भाग "सबका विकास" ये बीजेपी की प्रतिबद्धता, कसम या कहें कि संकल्प को दर्शाता है।पहले भाग में देश के आम लोगों को जो करना था वह उन्होंने किया। अब करीब करीब पूरे भारत पर भाजपा का आधिपत्य स्थापित हो चुका है। अर्थात जनता ने अपना कर्तव्य निभाया, अब भाजपा की बारी है। उसे सबका विकास वाला अपना संकल्प ईमानदारी से पूरा करना होगा। परंतु अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि भाजपा सबका साथ लेकर खुद का विकास वाली नीति पर चल पड़ी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लक्षण तो यही दर्शाते हैं।
 
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अब योगी सरकार धीरे धीरे चल पड़ी है। परंतु दुखद बात यह है कि बाबा योगी की सरकार व अन्य गई गुज़री यूपी सरकारों में कोई खास अंतर नहीं दिख रहा है। हाँ मुख्यमंत्री बनने के दो चार शुरुआती दिनों में तो जनता को कुछ सुखद एहसास हुए थे। लोगों को लगने लगा था कि यह बाबा बिलकुल नायक फ़िल्म के अनिल कपूर सरीखा काम करेगा। लेकिन अफ़सोस कि मामला टांय टांय फिस्स हो गया। प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही अब बाबा के निर्देश से नहीं, बल्कि बाबा खुद भ्रष्ट नौकरशाही के आदेश पर दौड़ने लगे हैं। सीमा पर शहीद हुए जवान के घर बाबा की तेलू नौकरशाही बाबाजी के स्वागत में एसी लगाती है, और उनके जाते ही उखाड़ ले जाती है। कहने को तो यह बड़ी सामान्य घटना है, परंतु समझने पर ये बड़ी निर्मम, क्रूर, निर्दयी घटना है। ये घटना सरकार और उसकी मशीनरी की मंशा व कार्यप्रणाली की संवेदनहीनता को उद्घाटित करती है। यह घटना बाबा योगी के पसीने को एक जवान के खून व बलिदान से भी ऊपर व बड़ा स्थापित करती है।
    बाबा योगी जब किसी पिछड़े व दलित गांव में दौरा करते हैं, तब यही उनकी तेलू नौकरशाही उस गांव के गरीबों व मेहनत कशों को शैम्पू व नहाने का साबुन बांटती है, ताकी उनके पसीने की बदबू कहीं योगी जी के महकते पसीने की बेइज़्ज़ती न कर दे। जब बाबा जी किसी दूर दराज़ के सुविधा विहीन अस्पताल में दौरा करते हैं, तो यही तेलू नौकरशाही उस अस्पताल में आनन् फानन में कूलर लगा देती है, लेकिन उनके जाते ही तुरंत उखाड़ लिए जाते हैं। ये घटनाये आम आदमी का सत्ता द्वारा उपहास हैं। और आम आदमी यह सब पुरे पांच साल तक सहने को विवश है। लेकिन जिस दिन उसे बोलने का अवसर मिलेगा, वह बोलेगा जरूर। इसीलिए मैं सुशील अवस्थी कहता हूँ 
ऐ सत्ता तू न कर गुरुर। मैं जिस दिन बोलूंगा तेरा उड़ जायेगा शुरुर।

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