कौन ऐसा हिन्दू होगा जो अपने जीवन काल में एक बार अपने मुंह से यह न बोलता होगा कि राम नाम सत्य है। हाँ ये भी हो सकता है कि वह अपने पूरे जीवन काल में अगर वह किसी और भगवान् का उपासक हो तो न बोल पाता हो कि अमुक नाम सत्य है। क्यों?
तुलसी बाबा अपने महाकाव्य रामचरित मानस में, एक प्यारी चौपाई लिखते हैं कि
"राम सकल नामन से अधिका, होउ नाथ अघ खग गन बधिका"
ये तब का प्रसंग है जब श्री राम माता सीता को खोजते हुए दंडकारण्य में भटकते हैं, और उसी दरम्यान उनसे देवर्षि नारद मिलते हैं। नारद प्रभु क़ी विरह वेदना के अभिनय में ईश्वर द्वारा उठाये जा रहे अपार कष्ट को देखकर द्रवित हो जाते हैं। चलते समय लीलाधारी भगवान राम उनसे कोई वरदान मांगने को कहते है। नारद के श्री मुख से तुलसी बाबा यही चौपाई कहलाते है कि
"राम सकल नामन से अधिका"
आशय यह है कि भगवन आपने अनेकों अवतार लिए हैं, और आगे भी अनेंकों लेंगे, परंतु उन सब में "राम" नाम का ही महत्त्व अधिकाधिक रूप में सदैव बना रहे।
"होउ नाथ अघ खग गन बधिका"
और यही नाम कलियुग में अघ= पाप, खग= पक्षी, गन= समूह, बधिका= बध करने वाला याने शिकारी। अर्थात पापो के समूह का नाशकर्ता बने। भगवान राम नें नारद जी को जो वरदान दिया, ये उसी का असर है कि आज भी हम सबको राम नाम ही सत्य लगता है।
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