शनिवार, 8 जून 2019

जिम्मेदारों से सवाल मतलब बवाल

दो दिन से अखबार- टीवी- सोशल मीडिया से नजरें चुरा रहा हूं, डर रहा हूं कि कहीं उस बच्ची की तस्वीर दिख न जाए, उसके साथ जो क्रूरता हुई उसकी डीटेलिंग से बच रहा हूं। आप कहोगे कि सच्चाई नजरें चुराने से बदल नहीं जाएगी, लेकिन मैं एक बच्ची का पिता हूं, मेरे लिए आपकी आदर्शवादी बातें बेकार हैं। मैं पिता न भी होता तो इतना संवेदनशील हूं कि खून देखकर धड़कन बढ़ जाती है।

हम एक फ़ेल्ड सोसाइटी हैं, हमारी प्राथमिकताएं इस बात की चुगली करती हैं। एक जुर्म, एक पाप, एक घिनापा था जो हो गया। बारीकी से देखिए कि हमारा समाज इस पर रिएक्ट कैसे कर रहा है? मैं मीडिया में हूं। यहां इसकी वीभत्स हेडलाइन्स अपनी पीठ ठोंकते हुए आगे सरकाई जाती हैं। जितनी भीषण हेडलाइन उतनी आत्म संतुष्टि। जो जितनी डीटेलिंग डरावनी आवाज के साथ विजुअल में दिखा पाए उसकी उतनी अच्छी टीआरपी, उतने अच्छे पेज व्यूज।

हमारे हाथ में स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन था। हम अपनी आवाज जिम्मेदार लोगों तक पहुंचा सकते थे। वो जिम्मेदार लोग जिन्हें आपने वोट देकर जिम्मेदारी सौंपी। वो जिम्मेदार जो ये तय कर सकते हैं कि ऐसी क्रूरता फिर से होने के चांस कम हो जाएं। लेकिन वो जिम्मेदार जेल में बलात्कार के आरोपियों से धन्यवाद मीटिंग करने जाते हैं। हमारे मुंह से एक शब्द नहीं निकलता। जिस सूबे में हुई क्रूरता पर पूरा देश उबला हुआ है, उस सूबे का मुख्यमंत्री अलीगढ़ न जाकर अयोध्या में मूर्ति अनावरण करने जाता है। हम उससे सवाल नहीं पूछते। जिम्मेदार लोगों से सवाल करना हमारी प्राथमिकता में नहीं है.

हमने घिनौना चेहरा छिपाने के लिए नए टर्म्स बनाए हैं. मोमबत्ती गैंग, टुकड़े टुकड़े गैंग, अवॉर्ड वापसी गैंग. ये गैंग निर्भया पर भी मोमबत्ती जलाते हैं, आसिफा पर भी मोमबत्ती जलाते हैं, उन्नाव की बेटी पर भी मोमबत्ती जलाते हैं और इस बच्ची के लिए भी जला रहे हैं. हमारी प्राथमिकता ये है कि हम इन्हें याद दिलाते रहते हैं 'उस पर तो प्लकार्ड दिखाए थे, इस पर क्यों नहीं?' ये हमारी ड्यूटी है. हमारी ड्यूटी है कि हम मुख्यमंत्री स्वरा भास्कर से सवाल करें कि आपकी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस क्यों सोती रही? हम प्रधानमंत्री प्रकाश राज को ट्रोल करें कि जब देश उबल रहा है तो तुम खुद को कमल के फूलों से तुलवा रहे हो. हम आसिफा के कातिलों को बचाने के लिए तिरंगा यात्रा निकालें. हम आरोपी का मुस्लिम नाम देखते ही बच्ची को न्याय दिलाने वाले देवदूत बन जाएं, फिर भी हम अपने हृदय सम्राटों से नहीं, हिरोइनों से सवाल करें. ये हमारी प्राथमिकता है.
ये नहीं बंद होने वाला. कभी नहीं बंद होने वाला. बेहद घिनौने समय में घटिया मानसिकता वालों के बीच हम जी रहे हैं. ये क्रूरता की शिकार बच्चियों के नाम रिप्लेस करके कल्पनाएं गढ़ने वालों की जय जयकार करने का समय है. ये जिम्मेदारी तय करने का नहीं, जिम्मेदारी से भागने का समय है. जिम्मेदारों को बचाने के लिए गन्दे तर्कों की ढाल रचने का समय है। हम कौन हैं, हमें पहचान लो और अपने बच्चों को हमसे दूर रखो. हम बहुत गंदे लोग हैं. 

आशुतोष उज्ज्वल जी की वाल से साभार

शुक्रवार, 31 मई 2019

रीता बहुगुणा जोशी के सांसद निर्वाचित होने के बाद लखनऊ की कैंट सीट से कौन होगा उनका उत्तराधिकारी ?

योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी अब इलाहाबाद से सांसद निर्वाचित हो चुकी हैं। लखनऊ की कैंट सीट से विधायक रीता के सांसद बन जाने के बाद अब उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ेगी। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अगले छः महीनों में यहाँ उप चुनाव होगा। अब सवाल यह उठता है कि भाजपा अब यहाँ से किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी। ऐसी आशा है कि भाजपा जिसे भी अपना उम्मीदवार घोषित करेगी, वही विधायकी जीतेगा। क्योंकि इस सीट को भाजपा की परम्परागत सीट माना जाता है। इस सीट के इतिहास पर निगाह डालें तो स्पष्ट दिखता है कि जो भी भाजपा का टिकट पायेगा वही यहाँ से अगला विद्यायक होगा। 

2012 में कांग्रेसी रीता जोशी ने यहाँ से लगातार तीन बार विधायक रहे भाजपा के सुरेश तिवारी को हराकर इस सीट पर आपना वर्चस्व कायम किया था। उसके बाद 2017 के विधान सभा चुनाव में रीता ने पाला बदल करते हुए भाजपा के झंडे तले लड़ते हुए इस सीट पर अपना परचम लहराया था। परन्तु अब वो सांसद बन चुकी हैं , इसलिए यहाँ उप चुनाव अवश्यंभावी है। यहाँ से लगातार विधायक रहे सुरेश चंद्र तिवारी अब उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद भाजपा उन्हें फिर से इस सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दे। सुरेश चंद्र तिवारी इस वक्त भाजपा में अवध क्षेत्र के अध्यक्ष हैं। पार्टी की रीतियों नीतियों को ठीक से समझने वालों का मानना है कि बतौर अध्यक्ष ठीक से काम कर रहे तिवारी जी पर शायद ही पार्टी दांव लगाएगी। ये एक व्यक्ति एक पद की तर्ज पर चल रही पार्टी की नीतियों के खिलाफ होगा। 

दूसरे नंबर के प्रबल दावेदारों में यहाँ से अरविन्द त्रिपाठी "गुड्डू" को माना जा रहा है। 2007 में इसी सीट से बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार रहे पूर्व एमएलसी गुड्डू त्रिपाठी इस समय भाजपा में हैं। भाजपा की इस परम्परागत सीट पर उस दौरान त्रिपाठी ने बसपा के लिए अच्छे खासे वोट बटोरे थे। भाजपा के सुरेश चंद्र तिवारी किसी तरह अपनी और पार्टी की लाज बचाने में कामयाब हो सके थे। प्रदेश की  राजनीति में फिर से अपना बर्चस्व कायम कर रही बसपा को सबक सिखाने के लिए भी भाजपा गुड्डू त्रिपाठी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।  

अन्य दावेदारों में रीता जोशी के पुत्र मयंक जोशी को यहाँ से अगला उम्मीदवार माना जा रहा है।  लेकिन इनकी दावेदारी को पार्टी शायद ही तरजीह दे। क्योंकि रीता जोशी के बाद फिर से उनके पुत्र को टिकट देने का सीधा सन्देश यही होगा कि पार्टी वंशवाद को प्रोत्साहित कर रही है।  जो कि  पार्टी नहीं करना चाहेगी। 

एक और उम्मीदवार अभिजात मिश्रा की भी चर्चा कायम है। अभिजात इस वक्त भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय नेता हैं। अपने राष्ट्रीय नेता को शायद ही पार्टी क्षेत्रीय रोल देना पसंद करेगी ? अन्य नामों में पूर्व में बसपा से इसी सीट से उम्मीदवार रहे योगेश दीक्षित जो इस समय भाजपाई हैं। उनका भी नाम लिया जा रहा है। यहीं से एक पार्षद सुशील तिवारी पम्मी भी टिकट की दौड़ में गिने जा रहे हैं। फिलहाल तो यह एक आंकलन है। सही भी हो सकता है गलत भी। पार्टी किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी और किसे नहीं ये तो पार्टी ही जानें, लेकिन यह बात एकदम सही है कि पैरासूट प्रत्याशी यहाँ असफल  भी हो सकता है, इसलिए उम्मीदवार स्थानीय होगा इसकी पूरी संभावना है। 
लखनऊ कैंट से सुशील अवस्थी "राजन" की रिपोर्ट

शनिवार, 18 मई 2019

सिप्स हॉस्पिटल लखनऊ की खुली लूट



   सिप्स हॉस्पिटल ने यूपी की राजधानी लखनऊ में खुली लूट मचा रखी है। डेड बॉडी को हॉस्पिटल में एडमिट कर लेना फिर उसके इलाज के नाम पर हज़ारों रुपया ऐंठ लेना अब इस अस्पताल का शगल बन चुका है। इस तरह के मामले कई बार प्रकाश में आ चुके हैं, परन्तु सबूत न होने की वजह से अस्पताल हर बार बचता रहा है। इस बार सिप्स ने खुद ही मरीज़ को पहले डेथ सर्टिफिकेट जारी किया, उसके बाद उस डेड बॉडी को एडमिट कर दिन भर इलाज कर हज़ारों रूपये हड़प लिए। 


   इस मामले को लेकर पीड़ित परिजनों ने जब लखनऊ के सीएमओ नरेंद्र अग्रवाल से मुलाकात कर उनसे सिप्स हॉस्पिटल की खुली लूट की शिकायत की तो जैसा कि ऐसे मामलों में प्रशासन का एक तोता रटंत बयान होता है, वही दुहराकर सीएमओ साहब ने भी अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली है।  उन्होंने माना कि इस मामले में अस्पताल का रवैया फ़िलहाल दोषी प्रतीत होता है, हम उसके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करेंगे, परन्तु उनके इस बयान के महीनों बीत जानें के बाद भी आज भी पीड़ित को कोई इंसाफ नहीं मिल सका है। 

रिपोर्ट- सुशील अवस्थी "राजन" 9454699011 


इस मामले को पूरी तरह समझने के लिए आपको यह वीडिओ गौर से देखना चाहिए 


गुरुवार, 24 जनवरी 2019

दुख से दुखी न होना

   

दुख के क्षणों की विशेषता है कि इससे प्रभु को पाने की पात्रता का विकास होता है। भरी सभा में द्रोपदी यदि अपमानित न होती तो उसे श्री कृष्ण की अनुभूति कैसे होती। जो परमेश्वर की याद दिलाये वह किसी पुण्य का परिणाम है और जो परमेश्वर की याद भुलाये वह किसी  पाप का परिणाम है। 
    
अपने भटके बंदों को वापस बुलाने के लिये परमेश्वर कभी कभी दुख का उपहार भेजते हैं। सुग्रीव जब राजरंग में व्यस्त हो गया तो श्री राम ने उसे वापस बुलाने के लिये लक्ष्मण को भेजा। 'तब लछिमन समझावा रघुपति करुऩासींव भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव'.लक्ष्मण शेषावतार के रूप में महाकाल हैं। अब किसी को बिस्तर पर यदि सर्प बैठा दिखाई दे तो वह घर छोड़ कहीं भी भाग सकता है, परंतु भय के ऱूप में जो दुख है उसका सर्वाधिक सदुपयोग यह है कि उन क्षणों में परमेश्वर याद आये। कामकाज में लगे सुग्रीव को रामकाज की याद आ गयी।
   
दुख के क्षणों का सदुपयोग  लंका में अशोकवाटिका में बैठी सीता कर रही हैं। श्री राम ने लंका से वापस लौटे हनुमान से पूछा 'कहहु तात केहि भांति जानकी रहति करति रक्षा स्वप्रान की'. हनुमान जी ने उत्तर दिया 'नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट लोचन निज पद जंत्रित प्रान जाहिं केहि वाट'.दिनरात नामजप का पहरा लगा हुआ है और ध्यान का किवाड़ बंद कर नेत्रों को अपने पैरों की ओर ही केंद्रित कर दिया है जिससे प्राण निकल नहीं पा रहे हैं। श्री राम ने चिंता व्यक्त की कि मनसा वाचा कर्मणा मेरे प्रति समर्पित होने के बाद भी सीता कितनी दुखी हैं? तो हनुमान जी ने उन्हे दुख की सच्ची परिभाषा बता दी 'कह हनुमंत विपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई'. प्रभु आपके वियोगजन्य दुख ने सीता को आपके भजन में लीन होने का अवसर प्रदान कर दिया जिससे वे दुखानंद की अनुभूति में डूबी हुई हैं।
   कबीर ने  दुख की महिमा गायी 'दुख वह सुख की खान है साहब आवें याद वही घरी बस घरी है बाकी सब बरबाद'. वे कहते हैं सुख की स्थितियां बेकार हैं उनसे कोई फायदा नहीं वल्कि दुख की स्थितियां बड़ी सुखदायक हैं 'सुख के माथे सिल परै जो नाम हृदय से जाय बलिहारी वा दुख की जो रामहि राम रटाय' दुख के क्षणों की विशेषता है कि दुखी व्यक्ति से पाप की संभावना नहीं जबकि सुखी व्यक्ति के जीवन में पाप की संभावना बनी रहती है। पाप हमेशा हंसते हुए होता है रोते हुए व्यक्ति से पाप नहीं होता। कबीर ने कहा 'हंसि हंसि कंता न मिला जिन पाया तिन रोय जौ हंसि हंसि कंता मिलै काहे दुहागिनि होय

वीर विक्रम बहादुर मिश्र 

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...