अपने भटके बंदों को वापस बुलाने के लिये परमेश्वर कभी कभी दुख का उपहार भेजते हैं। सुग्रीव जब राजरंग में व्यस्त हो गया तो श्री राम ने उसे वापस बुलाने के लिये लक्ष्मण को भेजा। 'तब लछिमन समझावा रघुपति करुऩासींव भय देखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव'.लक्ष्मण शेषावतार के रूप में महाकाल हैं। अब किसी को बिस्तर पर यदि सर्प बैठा दिखाई दे तो वह घर छोड़ कहीं भी भाग सकता है, परंतु भय के ऱूप में जो दुख है उसका सर्वाधिक सदुपयोग यह है कि उन क्षणों में परमेश्वर याद आये। कामकाज में लगे सुग्रीव को रामकाज की याद आ गयी।
दुख के क्षणों का सदुपयोग लंका में अशोकवाटिका में बैठी सीता कर रही हैं। श्री राम ने लंका से वापस लौटे हनुमान से पूछा 'कहहु तात केहि भांति जानकी रहति करति रक्षा स्वप्रान की'. हनुमान जी ने उत्तर दिया 'नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट लोचन निज पद जंत्रित प्रान जाहिं केहि वाट'.दिनरात नामजप का पहरा लगा हुआ है और ध्यान का किवाड़ बंद कर नेत्रों को अपने पैरों की ओर ही केंद्रित कर दिया है जिससे प्राण निकल नहीं पा रहे हैं। श्री राम ने चिंता व्यक्त की कि मनसा वाचा कर्मणा मेरे प्रति समर्पित होने के बाद भी सीता कितनी दुखी हैं? तो हनुमान जी ने उन्हे दुख की सच्ची परिभाषा बता दी 'कह हनुमंत विपति प्रभु सोई जब तव सुमिरन भजन न होई'. प्रभु आपके वियोगजन्य दुख ने सीता को आपके भजन में लीन होने का अवसर प्रदान कर दिया जिससे वे दुखानंद की अनुभूति में डूबी हुई हैं।
कबीर ने दुख की महिमा गायी 'दुख वह सुख की खान है साहब आवें याद वही घरी बस घरी है बाकी सब बरबाद'. वे कहते हैं सुख की स्थितियां बेकार हैं उनसे कोई फायदा नहीं वल्कि दुख की स्थितियां बड़ी सुखदायक हैं 'सुख के माथे सिल परै जो नाम हृदय से जाय बलिहारी वा दुख की जो रामहि राम रटाय' दुख के क्षणों की विशेषता है कि दुखी व्यक्ति से पाप की संभावना नहीं जबकि सुखी व्यक्ति के जीवन में पाप की संभावना बनी रहती है। पाप हमेशा हंसते हुए होता है रोते हुए व्यक्ति से पाप नहीं होता। कबीर ने कहा 'हंसि हंसि कंता न मिला जिन पाया तिन रोय जौ हंसि हंसि कंता मिलै काहे दुहागिनि होय'
वीर विक्रम बहादुर मिश्र |
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