गुरुवार, 31 अगस्त 2017

नित्य रामायण


*रामचरितमानस* की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे _*प्रभु श्रीराम*_ आप के जीवन को सुखमय बना देगे।

_*1. रक्षा के लिए*_
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||

_*2. विपत्ति दूर करने के लिए*_
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||

_*3. *सहायता के लिए*_
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||

_*4*. *सब काम बनाने के लिए*_
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||

_*5*. *वश मे करने के लिए*_
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||

_*6*. *संकट से बचने के लिए*_
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||

_*7*. *विघ्न विनाश के लिए*_
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||

_*8*. *रोग विनाश के लिए*_
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||

_*9. ज्वार ताप दूर करने के लिए*_
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||

_*10. दुःख नाश के लिए*_
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||

_*11. खोई चीज पाने के लिए*_
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||

_*12. अनुराग बढाने के लिए*_
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||

_*13. घर मे सुख लाने के लिए*_
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||

_*14. सुधार करने के लिए*_
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||

_*15. विद्या पाने के लिए*_
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||

_*16. सरस्वती निवास के लिए*_
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||

_*17. निर्मल बुद्धि के लिए*_
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||

_*18. मोह नाश के लिए*_
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||

_*19. प्रेम बढाने के लिए*_
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||

_*20. प्रीति बढाने के लिए*_
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||

_*21. सुख प्रप्ति के लिए*_
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||

_*22. भाई का प्रेम पाने के लिए*_
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||

_*23. बैर दूर करने के लिए*_
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||

_*24. मेल कराने के लिए*_
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||

_*25. शत्रु नाश के लिए*_
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||

_*26. रोजगार पाने के लिए*_
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||

_*27. इच्छा पूरी करने के लिए*_
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||

_*28. पाप विनाश के लिए*_
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||

_*29. अल्प मृत्यु न होने के लिए*_
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||

_*30. दरिद्रता दूर के लिए*_
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना |

_*31. प्रभु दर्शन पाने के लिए*_
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||

_*32. शोक दूर करने के लिए*_
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||

_*33. क्षमा माँगने के लिए*_
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
🙏🌹जय श्री राम 🌹🙏

जेल न होती तो "पद्मश्री" हो जाता रामरहीम

 
   दो साध्‍वियों के यौन शोषण केस में सलाखों की हवा खा रहा गुरमीत राम रहीम पद्म पुरस्कारों के लिए जुगाड़ में लगा था. इसके लिए उसने अपने समर्थकों के जरिए फील्‍डिंग सजा ली थी. इसका खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ है.
मेवात (हरियाणा) के एक आरटीआई कार्यकर्ता मुबारिक ने गृह मंत्रालय से पद्म पुरस्कारों को लेकर एक आरटीआई मांगी थी. इसके जवाब से पता चला है कि गृह मंत्रालय को अब तक 18,768 नाम मिल चुके हैं, जबकि इसके लिए दो सप्ताह का समय बाकी है.
केंद्र सरकार से मिली 608 पेज की आरटीआई बताती है कि इस नागरिक सम्मान के लिए इन नामों में से 4206 बार राम रहीम का जिक्र है. यानी इतने लोगों ने चाहा है कि राम रहीम को पद्म अवार्ड मिले.
दिलचस्‍प बात यह है कि उसे पद्म पुरस्कार के लिए सबसे ज्‍यादा 4156 सिफारिश सिरसा जिले से भेजी गई है. जहां डेरा सच्‍चा सौदा का मुख्‍यालय है. जाहिर है ये उसके भक्‍तगण होंगे. पद्म पुरस्कारों की घोषणा 26 जनवरी 2018 को होनी है.
आरटीआई कार्यकर्ता राजुद्दीन जंग का कहना है कि पद्म सम्मानों के लिए नॉमिनेशन की आखिरी तारीख 15 सितंबर है. तब तक इसके लिए सिफारिश करने वालों की संख्‍या बढ़ जाती. अगर इसे जेल न हुई होती तो अगले साल तक यह यह पुरस्‍कार ले सकता था. देश-विदेश में उसके करीब पांच करोड़ भक्‍त हैं.
उसके चाहने वाले कई मुख्‍यमंत्री, सांसद, विधायक और मंत्री रहे हैं. जो उसके यहां दरबार लगाते थे. उनसे भी वह सिफारिश करवाता. लेकिन अब पुरस्‍कार लेने के उसके अरमानों पर पानी फिर गया है, क्‍योंकि उसके काले कारनामों का पर्दाफाश हो चुका है.

बुधवार, 30 अगस्त 2017

नित्य रामायण


 नाम हृदयमें धारण करते ही क्षणभरमें सारे पापोंका नाश वैसे ही हो जाता है, जैसे सूखी घासमें चिनगारी पडनेसे वह भस्म हो जाती है । रामनामका ऐसा प्रभाव है कि पापी-से-पापी व्यक्तिका भी उद्धार हो जाता है । भगवान् के भजनके प्रभावसे भगवान् स्वयं वशमें हो जाते हैं । कहा भी गया है --   

सुमिरि पवनसुत पावन नामू,अपने बस करि राखे रामू
                                                             
(मानस १/२६/६)
‘पवनसुत हनुमानजीने भगवान् के नाम स्मरणसे भगवान् को अपने अधीन कर रखा है ।‘ 

भगवान् का नाम निराधारका आधार है । भगवान् से भी बढ़कर भगवान् के नामको कहें तो भगवान् की ही बड़ाई है और अतिशयोक्ति भी नहीं है । नामका गुण, प्रभाव जानना चाहिये । भगवान् के जितने गुण हैं वे सब नाम लेनेवालेमें अपने-आप आ जाते हैं । यह नाम-जपकी महिमा है । दोष, दुर्गुण, दुराचारका अपने-आप नाश हो जाता है, यह प्रभाव है । नामका तत्त्व समझना चाहिये । जैसे बर्फ और जल एक हैं । व्यापक अग्नि और प्रज्वलित अग्नि एक है, उसी प्रकार भगवान् का नाम और स्वरूप एक है । भगवान् के नामका रहस्य समझना चाहिये । भगवान् के नामका बड़ा भारी प्रभाव है, जिससे पापीके सब पापोंका नाश हो जाता है । इसका मतलब यह नहीं है कि खूब पाप करो । जो मनुष्य यह समझता है कि पाप कर लो और भजन करके पापका नाश कर लेंगे, यदि इस आशयसे पाप करने लगे तो ‘नाम’ पापकी वृद्धिमें हेतु हो गया । जो यह समझकर पाप करता है, उसके पापका नाश नहीं होता । उसने नामके रहस्यको नहीं समझा ।

नामकी ओटमें पाप करना भगवान् का अपराध है । पूर्वके पापोंके लिये क्षमा माँग ले और भविष्यमें पाप न करनेकी प्रतिज्ञा कर ले तो पूर्वके पापोंकी माफ़ी है – ऐसा न्याय है । भगवान् के नाममें बड़ा भारी रहस्य भरा है । नामका तत्त्व, नामका गुण, नामका प्रभाव समझमें आ जाय तो नाम-जप छूट नहीं सकता । निरन्तर करता ही रहता है । छोड़ नहीं सकता फिर बेडा पार है ।

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

रामायण पर एक शोधपत्र


अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था।
कई ऐसे लोग हैं, जो प्रभु श्रीराम के इतिहास को भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं। कुछ तथाकथित विद्वान कहते हैं कि रामायण काल की लंका आज की श्रीलंका नहीं, बल्कि भारत के अमरकंटक के पास एक विशेष स्थान को रावण की लंका कहा जाता था तो कोई कहता है कि यह लंका जावा या सुमात्रा के पास कहीं थी। ऐसे सारे दावे तथ्‍यहीन हैं।
दरअसल, रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था। लंका को जीतकर रावण ने उसको अपना नया निवास स्‍थान बनाया।
श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। ऐसा माना जाता है कि जंगलों के बीच रानागिल की विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने तपस्या की थी। रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान को भी ढूंढ लिया गया है।
श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा ‍किया गया है। बाकायदा इसके सबूत भी पेश किए गए हैं।
रावण ने कुबेर को लंका से हटाकर वहां खुद का राज्य कायम किया था। धनपति कुबेर के पास पुष्पक विमान था जिसे रावण ने छीन लिया था। रामायण में उल्लेख मिलता है कि यह पुष्पक विमान इच्छानुसार छोटा या बड़ा हो जाता था तथा मन की गति से उड़ान भरता था।
वाल्मीकि रामायण में लंका को समुद्र के पार द्वीप के मध्य में स्थित बताया गया है अर्थात आज की श्रीलंका के मध्य में रावण की लंका स्थित थी। श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का प्राचीनकाल से ही भारत से घनिष्ठ संबंध था। भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित ‘जानकी हरण’ के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे। कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे। इसे पहले 700 ईसापूर्व श्रीलंका में ‘मलेराज की कथा’ की कथा सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही, जो राम के जीवन से जुड़ी है।
अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था।
.
.
रामसेतु : रामसेतु पुल आज के समय में भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला है। वाल्मीकि के अनुसार 3 दिन की खोजबीन के बाद नल और नील ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उक्त स्थान से लंका तक का पुल निर्माण करने का फैसला लिया गया। उस स्थान को धनुषकोडी कहा जाता है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार धनुष के समान ही है।
ram setu
नल और नील के सान्निध्य में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पत्‍थर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान की भाषा में ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता है। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था। आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थर हैं।

तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी, जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है।
प्यूमाइस पत्थर के छेदों में हवा भरी रहती है, जो इसे पानी से हल्का बनाती है जिस कारण यह डूबता नहीं है। लेकिन जैसे ही धीरे-धीरे इन छिद्रों में पानी भरता है तो यह पत्थर भी पानी में डूबना शुरू हो जाता है। यही कारण है कि रामसेतु पुल कुछ समय बाद डूब गया था और बाद में इस पर अन्य तरह के पत्थर जमा हो गए। माना जाता है कि आज भी समुद्र के निचले भाग पर रामसेतु मौजूद है।
.
.
वेरांगटोक : महियांगना मध्य, श्रीलंका स्थित नुवारा एलिया का एक पर्वतीय क्षेत्र, जो वेरांगटोक (जो महियांगना से 10 किलोमीटर दूर है) में है, को रावण के हवाई अड्डे का क्षेत्र कहा जाता है। यहीं पर रावण ने सीता का हरण कर पुष्पक विमान को उतारा था।

वैलाव्या और ऐला के बीच 17 मील लंबे मार्ग पर रावण से जुड़े अवशेष अब भी मौजूद हैं। श्रीलंका की श्री रामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के 4 हवाई अड्डे थे। उनके 4 हवाई अड्डे ये हैं- उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला। इन 4 में से एक उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। कमेटी के अनुसार सीता की तलाश में जब हनुमान लंका पहुंचे तो लंका दहन में रावण का उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था।
उसानगोड़ा हवाई अड्डे को स्वयं रावण निजी तौर पर इस्तेमाल करता था। यहां रनवे लाल रंग का है। इसके आसपास की जमीन कहीं काली तो कहीं हरी घास वाली है। रिसर्च कमेटी के अनुसार पिछले 4 साल की खोज में ये हवाई अड्डे मिले हैं। कमेटी की रिसर्च के मुता‍बिक रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है।
श्री रामायण रिसर्च कमेटी : वर्ष 2004 में पंजाब के बांगा इलाके के रहने वाले अशोक कैंथ श्रीलंका में अशोक वाटिका की खोज की सुर्खियां में आया था। श्रीलंका सरकार ने 2007 में रिसर्च कमेटी का गठन किया।
कमेटी में श्रीलंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलवम, ऑस्ट्रेलिया के डेरिक बाक्सी, श्रीलंका के पीवाई सुंदरेशम, जर्मनी की उर्सला मुलर, इंग्लैंड की हिमी जायज शामिल हैं। अब तक कमेटी ने श्रीलंका में रावण के महल, विभीषण महल, श्रीगुरु नानक के लंका प्रवास पर रिसर्च की है।
.
.
सीता एलिया :  सीता एलिया श्री लंका में स्थित वह स्थान है जहां रावण ने माता सीता को बंदी बना कर रखा था। माता सीता को सीता एलिया में एक वाटिका में रखा गया था जिसे अशोक वाटिका कहते हैं। वेरांगटोक से सीता माता को जहां ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है जिसे अब ‘सीतोकोटुवा’ नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है। एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे ‘सीता एलिया’ नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। यह मंदिर सीता अम्मन कोविले नाम से प्रसिद्ध है।

सीता एलिया में रावण की भतीजी त्रिजटा, जो सीता की देखभाल के लिए रखी गई थी, के साथ सीता को रखा गया था। यह स्थान न्यूराएलिया से उदा घाटी तक जाने वाली एक मुख्य सड़क पर 5 मील की दूरी पर स्थित है।
इस क्षेत्र में लाखों की तादाद में आज भी अशोक के लंबे-लंबे वृक्ष विद्यमान हैं। अशोक वृक्षों की अधिकता होने के कारण ही इसे अशोक वाटिका कहा जाता है। मंदिर के पास ही से ‘सीता’ नाम से एक नदी बहती है जिसका निर्मल और शीतल जल पीकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। नदी के इस पार मिट्टी का रंग पीला है तो उस पार काला। मान्यता अनुसार उस पार के क्षेत्र को हनुमानजी ने अपनी पूंछ से लगा दिया था।
इस स्थान की शिलाओं पर आज भी हनुमानजी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। कार्बन डेटिंग से इसकी उम्र लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व की आंकी गई है। यहां सीता माता के मंदिर में राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीताजी की जो मूर्तियां रखी हैं उनकी कार्बन डेटिंग से पता चला कि वह भी 5,000 वर्ष पुरानी है। आज जिस स्थान पर मंदिर है वहां कभी विशालकाय वृक्ष हुआ करता था जिसके नीचे माता सीता बैठी रहती थीं।
.
.
रावण का महल : श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है।

सीता एलिया में स्थित अशोक वाटिका से कुछ दूर ही रावण का महल स्थित था। कहा जाता है कि लंकापति रावण के महल, जिसमें वह अपनी पटरानी मंदोदरी के साथ निवास करता था, के अब भी अवशेष मौजूद हैं। इस महल को पवनपुत्र हनुमान ने लंका के साथ जला दिया था। यह जला हुआ महल आज भी मौजूद है।
‘रावण एल्ला’ नाम से एक झरना है, जो एक अंडाकार चट्टान से लगभग 25 मीटर अर्थात 82 फुट की ऊंचाई से गिरता है। ‘रावण एल्ला’ वॉटर फॉल घने जंगलों के बीच स्थित है। यहां ‘सीता’ नाम से एक पुल भी है। इसी क्षेत्र में रावण की एक गुफा भी है जिसे ‘रावण एल्ला’ गुफा के नाम से जाना जाता है। यह गुफा समुद्र की सतह से 1,370 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान श्रीलंका के बांद्रावेला से 11 किलोमीटर दूर है।
लोरानी सेनारत्ने, जो लंबे समय तक श्रीलंका के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबंधित रही हैं और श्रीलंका की इटली में राजदूत भी रह चुकी हैं, ने अपनी पुस्तक ‘हेअरस टू हिस्ट्री’ में पहले 2 भाग रावण पर ही लिखे हैं। उनके अनुसार रावण 4,000 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था। रावण चमकते हुए दरवाजे वाले 900 कमरों के महल में निवास करता था। देश के अन्य भागों में उसके 25 महल या आरामगाहें थीं। -डॉ. विद्याधर की शोध पुस्तिका ‘रामायण की लंका’ से अंश। (साभार : पांचजञ्य)

सावधान रहो, संगठित रहो

    देखें ये लेटर।सत्यता आपके समक्ष है कुछ लोग इस पर भी सही उत्तर देने की बजाय लेटर पर ही सवाल उठा रहे हैं पत्रांक है निकलवाकर देख लें------------ये है सरकार की चाटुकारिता का परिणाम।मानदेय बढ़कर आ रहा है,मानदेय बन्द नही हुआ, टोकन ग्रांट आ गयी है, सेवा नियमावली तैयार है, कोर्ट ने वेतन का आदेश दे दिया है आदि कहकर आंदोलनों का विरोध व असफल करने के कुत्सित प्रयास करने वाले, फर्जी लेटर पोस्ट करने वाले कहाँ हैं।
 
  जो विरोध करते थे अब खुद अस्तित्व बचाने के लिए धरने, सम्मेलन,मिलाप,विलय कर अपनी राजनीति बचाने में लगे हैं अगर यही विलय, सम्मेलन ,धरने हो सकते थे तो पहले क्यों नही हुए ।अगर कर लेते तो सायद कानपुर व झांशी में वित्तविहीन प्रत्यासी जीत गए होते और आज सरकार दबाव में होती हमारा मानदेय बढ़कर मिलता।पर चलो अब भी ज्ञान हो जाये तो अच्छा है बेचारे शिक्षक कर्मचारी आशा में ही जीवन यापन करने को मजबूर हैं।दूसरों को करने नही देंगे खुद कुछ करेंगे नही अजीब तमासा है।इसी के विरोध में ही तो यात्रा का आयोजन हुआ।
    अगर यह सभी जो आज सम्मेलन, विलय,आंदोलन कर रहे हैं यही काम 15 मई के धरने,3 से 10  जुलाई के तालाबंदी,18 जुलाई के धरने के समय करते और विरोध न कर अलग से ही धरना देते जैसा लालबिहारी जी ने किया था तो सायद परिणाम अलग होते।पर शिक्षकों को भृमित कर राजनीति चलाना ही जिनका पेसा हो उनसे क्या अपेक्षा।
   साथियों अभी समय है हमें एकजुटता दिखाकर जागरूकता यात्रा को भरपूर समर्थन देना होगा।सरकार पर अगर दबाव नही बना पाए एक वित्तीय वर्ष सरकार ने बिना मानदेय दिए निकाल दिया तो, सेवा सुरक्षा,नियमावली,धारा परिवर्तन,कोर्ट के ऑडर धरे रह जाएंगे।सबके मूल में पैसा ही है जब वही नही मिलेगा तो हम इन सबको क्या चाटेंगे।

नित्य रामायण

 हनुमान जी भगवान् के भवन के मुख्य द्वारपाल हैं, भगवान् ने कहा है कि जब भी मेरे द्वार पर मेरा दर्शन करने आओगे तो तब तुम्हें पहले हनुमानजी का दर्शन करना होगा, तभी मेरा दर्शन मिलेगा, इसलिये आपको भगवान् के मन्दिर में प्रथम दर्शन हनुमानजी का होता हैं 

भगवान् का जो निजधाभ है जहाँ परम ब्रह्म भगवान रामजी निवास करते हैं यानी साकेत में, श्रीहनुमानजी एक रूप में साकेत में हमेशा निवास करते हैं, जो भी कोई भक्त अपनी याचना लेकर हनुमानजी के पास आता है तो हनुमानजी ही प्रभु के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि प्रभु इस पर कृपा करें।

साकेत में गोस्वामीजी ने भी भगवान् के दर्शन की प्रार्थना इसी प्रकार की, विनयपत्रिका भी जब लिखी है उस पर हस्ताक्षर कराने भी हनुमानजी के पास आते हैं, सकाम भाव से जो भक्त आते हैं हनुमानजी हमेशा उनको द्वार पर बैठे मिलते हैं और हनुमानजी की इच्छा है कि यह छोटे-छोटे काम जो तुम लेकर आये हो मेरे प्रभु को अकारण कष्ट मत दो, प्रभु बहुत कोमल हैं, बहुत सरल हैं लाओ इनको मैं निपटाता हूँ।

इसलिये हनुमानजी हमेशा द्वार पर मिलते हैं और कोई प्रेम के वशीभूत, भाव के वशीभूत आता है तो हनुमानजी उसे भगवान् के भवन के द्वार में अन्दर प्रवेश करा देते हैं, दर्शन के लिए कोई आता है तो उसको प्रवेश करा देते हैं, मनोकामना लेकर आता है तो स्वयं हनुमानजी पूरी करा देते हैं,  क्योंकि माँ ने पहले ही आशीर्वाद दे दिया था।

माँ को भी मालूम था कि संसार में कितने लोग हैं जिनके कितने प्रकार के काम हैं, प्रतिदिन भीड़ लगेगी, भगवान् के दरबार पर कौन निपटायेगा, तो हनुमान यह काम तुम पूरा करोगे, शायद इसीलिये ही "राम दुआरे तुम रखवारे" का दूसरा भाव ऐसा ही लगता है जैसे कथा से पहले कथा का मंगलाचरण होता है।

राम दर्शन से पहले मंगलमूर्ति मारूति नन्दन हनुमानजी का दर्शन आवश्यक है, घर के बाहर जब कोई विशेष दिन होता है तो हम लोग मंगल कलश सजाकर रखते है, भगवान् श्रीरामजी ने अपने घर के बाहर प्रतिदिन मंगल कलश के रूप मे हनुमानजी को विराजित किया है 

भगवान् का भवन तो मंगल भवन अमंगलहारी है पर उनके द्वार पर भी तो मंगल कलश चाहिए, अपना जो मंगलमय परिवार का चिन्ह है यह मंगल कलश है, इस कलश के रूप मे श्रीहनुमानजी मंगल मूर्ति विराजमान हैं।

मंगल मूरति मारूति नन्दन, सकल अमंगल मूल निकन्दन।
पवन तनय संतन हितकारी, ह्रदय विराजत अवध बिहारी।

श्री हनुमानजी की शरण में जो भी आ जाता है उसकी हनुमानजी स्वयं रक्षा करते हैं, शरणागत को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता, जो हनुमानजी की शरण में एक बार आ गया उसकी क्या अवस्था हो जाती है, गोस्वामीजी ने कहा है।

सुर दुर्लभ सुखकरि जग माँही।
अन्तकाल रघुपतिपुर जाई।।

जो सुख देवताओं को भी दुर्लभ है उनका हनुमानजी की कृपा से साधारण सा मनुष्य भोग कर लेता है, यह भोग, यह सुख सुग्रीव को भी मिला, विभीषण को भी मिला, वानरों को मिला, जो हनुमानजी की शरण में आया उसे सुख मिलता है।

सुख की अनुभूति कौन करता है? सुख का अनुभव करती है हमारी ज्ञानेन्द्रियां और हनुमानजी ज्ञान गुणसागर है, हनुमानजी "ज्ञानिनामग्रगंण्यम" (कान, नाक, त्वचा, आँख व जीभ) यह पाँच हमारी ज्ञानेन्द्रियां हैं, इसका रस तो भगवतरस है यही रस का, सुख का अनुभव कराती है, भाई-बहनों! आज मंगलवार के मंगल् दिवस की मंगल् सुप्रभात् आप सभी के लिये मंगलमय् हो 

जय श्री रामजी! 
जय श्री हनुमानजी

सोमवार, 28 अगस्त 2017

भक्ति फायदेमंद है अंधभक्ति नहीं


    बाबा राम रहीम प्रकरण नें हमारे धर्म गुरुओं के अधर्म में लिप्त होनें का एक और स्पष्ट प्रमाण उपस्थित किया है | अब ये हम पर है कि हम इस सच को स्वीकारते हैं,  या फिर अभी भी सच को नज़रअंदाज़ करते हैं |  अगर हम स्वीकारेंगे तो फायदा होगा नहीं स्वीकारेंगे तो आगे कोई और ढोंगी हमें और हमारी आस्था को छलेगा| इन ढोंगी बाबाओं को ताकत देनें का काम हमारी अंधभक्ति ही करती है, इस तथ्य को हम जल्द स्वीकारें तभी हम ऐसे ठगों से बच पाएंगे | अन्यथा कल कोई और आशाराम और राम रहीम हमें फिर से छलेगा | 
   भारत सदा से अध्यात्म की जन्मभूमि रही है, आम भारतीय सदैव निश्छल, निष्कपट, भोला और धार्मिक रहा है |  हमारी आस्था निष्ठा श्रद्धा विश्वास और भक्ति सदैव हमारी ताकत रही है |  लेकिन ठग प्रवत्ति के लोग सदियों से हमारी इन्हीं अच्छाइयों को अपना हथियार बनाकर हमें ठगते भी आये हैं, आज हमें इस कटु सत्य को भी स्वीकारना होगा | ईश्वर नें हमें मनुष्य बनाते वक्त विवेक नाम की भी एक अमूल्य निधि से नवाज़ा है, यदि हम उसका भी इस्तेमाल करें तो इस तरह के धर्म गुरु कभी भी हमें ठग नहीं सकेंगे | अन्यथा यह सिलसिला आगे भी निरंतर रूप से जारी रहेगा | 

रविवार, 20 अगस्त 2017

निकल पड़े हैं खुली सड़क पर अपना सीना ताने


    शिक्षक साथियो मानदेय बन्द हो चुका है। शायद अब सभी को पता चल गया होगा कि गुमराह करने वालों की भी आवाज़ अब बन्द होने लगी है। मैं पहले भी कहता रहा हूं कि कुछ तथाकथित गुमराही नेता सरकार की चाटुकारिता में भोले-भाले हमारे ग़रीब शिक्षकों को भ्रमित कर रहे हैं। आज शिक्षक ठगा सा अवाक् और निराश हो रहा है, और ये लोग कह रहे हैं कि मानदेय बढ़ कर आ रहा है। फिर टोकन ग्रांट दिला कर सारे विद्यालयों को ऐडेड कराने का दिवास्वप्न दिखा कर अपनी ही पीठ थपथपा रहे हैं। अब नियमावली की घुट्टी पिलाना भी शुरू कर दिए है । मुझे नहीं लगता कि अब लोग इन्हें पढ़ते और सुनते होंगे। इन्हें झूठ पर झूठ महाझूँठ बोलने की क्या मजबूरी थी?
   साथियों मैं आप सभी से अपील और विनम्र अनुरोध करता हूँ कि हम चरणबद्ध संघर्ष की रणनीति बना कर आज 21 अगस्त 17 से  "वित्तविहीन शिक्षक अधिकार यात्रा" मोटरसाइकिल से वाराणसी जनपद के जौनपुर सीमा से माo उमेश द्विवेदी प्रदेश अध्यक्ष व Mlc लखनऊ एवं माo संजय कुमार मिश्र कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष व Mlc बरेली-मुरादाबाद,श्री अशोक राठौर,श्री अजय सिंह एडवोकेट,श्री संजीव बाजपेयी,श्री अखिलेश सिंह श्री रामपाल जांगड़ा सहित आप सभी के नेतृत्व व सहयोग से प्रारम्भ करने जा रहे हैं। सम्पूर्ण प्रदेश ( 75 जनपद ) से होते हुए ये यात्रा 4 दिसंबर को लखनऊ में सम्पन्न होगी। इसी दिन 4दिसम्बर17 को महासम्मेलन होगा, जिसमें माo मुख्य मन्त्री,उपमुख्य मंत्री/शिक्षा मंत्री,उपमुख्य मंत्री माo केशव मौर्य जी,माo स्वामी प्रसाद मौर्य जी,माo सुरेश खन्ना जी सहित कई माo मंत्री गणों  के उपस्थित रहने की प्रबल सम्भावना है।   
        आप सभी एक जुट होकर लोकतंत्र के मूल मंत्र अर्थात  संख्या बल की ताक़त दिखायें, सफलता निश्चित है।
                अंत में बस इतना कहना है-
 युद्धों में कभी नहीं हारे , हम डरते है छलचंदो से,
हर बार पराजय पाई है , अपने घर के जयचंदो से।

आपका अपना - उमेश द्विवेदी, एमएलसी यूपी 
   

नित्य रामायण


भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन।
तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन।।

भावार्थ :-  सुख के खजाने और करुणा के धाम भगवान भाव ( प्रेम  ) के वश हैं। अतएव ममता, मद और मान को त्यागकर् निरंतर सीतापति  श्रीरामजी  का भजन ही करना चाहिये।।

दोहावली ( १३५ )

मंगल ग्रह पर यान भेजना आसान, लेकिन जमीन पर ट्रेन चलाना मुश्किल


   मुज़फ्फर नगर के खतौली से एक बार फिर ट्रेन हादसे की दुखदायी खबर आयी है | ट्रैक पर मरम्मत का काम चल रहा था कि इसी बीच पुरी से हरिद्धार जा रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस आ गयी परिणाम स्वरुप एक बड़ा हादसा हो गया | सूचना क्रांति के इस युग में पास के रेलवे स्टेशन तक इस खबर का न पहुँच पाना कि इस वक्त ट्रैक असुरक्षित है, अपने आप में कम विष्मयकारी नहीं है | फ़िलहाल हर रेल हादसे की तरह इस हादसे की भी जाँच तो होगी ही, तभी कारण स्पष्ट होंगे | 
  भारतीय रेल की यह दुर्दशा देख कर मैं कभी-कभी सोंचता हूँ कि अंतरिक्ष में स्थित मंगल ग्रह पर पहले ही प्रयास में सफलता पूर्वक यान पहुंचाने वाले देश भारत के लिए जमीन पर सुरक्षित रेल चला पाना इतना कठिन काम क्यों है ? दुनिया के संपन्न से संपन्न देश जिस मंगल पर अपना सबकुछ झोंककर बमुश्किल पहुंचे, वहां भारत बहुत आसानी से झंडे गाड़ आया, फिर जमीन पर सुरक्षित रेल यात्रा के मामले में हम दुनिया में इतने फिसड्डी क्यों हैं ?  तीन साल पुरानी क्रांतिकारी नरेंद्र मोदी सरकार भी आखिर रेल सञ्चालन व्यवस्था में कोई क्रांति क्यों नहीं ला पा रही है ?
   असल में भारतीय रेल आज भी आज़ादी के पहले के ट्रैकों और संसाधनों पर ही ज्यादा निर्भर करती है | जबकि दुनिया के अन्य देशों नें आधुनिक प्रोद्योगिकी आत्मसात कर ली है  | भारतीय रेल सवारियों से ज्यादा यहाँ की घरेलू राजनीती को ढोनें में इस्तेमाल की जाती है | इसीलिए आज हमारी रेल दुनिया की सबसे असुरक्षित ट्रेनों में अव्वल है | सच तो यह भी है कि बुलेट ट्रेन का सपना संजोने वाली मोदी सरकार भी भारतीय रेल को उसके दुर्दशा दुष्चक्र से बाहर नहीं ला पा रही है | 
सुशील अवस्थी "राजन" 
9454699011 

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

यूपी के स्वास्थ्य विभाग की हालत बयां कर रहा है ये फोटो

 
  आज लखनऊ में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाई जानें वाली ब्लड कलेक्शन एवं ट्रांसपोर्टेशन वैन को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया गया। इस अवसर पर उपस्थित सिद्धार्थनाथ सिंह, डॉ0 महेंद्र सिंह और और स्वाति सिंह को आप चित्र में पहचान भी रहे होंगे। यहां ब्लड मोबाईल एैप का भी उद्घाटन किया गया। परंतु जिस बस को झंडी दिखाई जा रही है क्या आपने उसके टायर पर भी निगाह डाली है? ये बस पंचर है। अब जरा सोंचिये कि जब मीडिया के सामने प्रदर्शन के वक्त स्वास्थ्य विभाग की ऐसी हालत है, तो फिर दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में यह विभाग कैसे काम करता होगा? वास्तविकता यह है कि स्वास्थ्य विभाग ही क्यों करीब करीब सभी विभाग योगी जी और उनके मंत्रियों की पकड़ से कोसों दूर हैं। मैं बार बार कहता हूं ये सरकार अभी भी अपना इकबाल नही कायम कर सकी है।

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

हिन्दू तुष्टिकरण कार्ड खेलते योगी

 
    उत्तर प्रदेश के थानों में लम्बे समय से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परंपरा रही है | जो आज भी निर्बाध रूप से जारी है | इसे न तो कभी किसी नें रोका है, और न ही कभी कोई इसे रोक पायेगा | क्योंकि भगवान् श्री कृष्ण का जन्म ही कारागार में हुआ है, इसलिए थानें और जेलें उनके जन्मस्थल के प्रतीक स्वरुप हैं | फिर भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबा योगीनाथ नें अपनी पूर्ववर्ती सपा सरकार पर एक और तोहमत मढ़ने की कोशिश की है कि थानों में मनाई जानें वाली जन्माष्टमी को अखिलेश सरकार नें रोकने की कोशिश की थी | हालाँकि अखिलेश नें तत्काल ही बाबा योगी के इस आरोप को ख़ारिज भी कर दिया | 
   बाबा योगी नें हिन्दू तुष्टिकरण के अपने तरकश से एक और शक्तिशाली बाण चलाया कि अगर हम ईद या अन्य अवसरों पर सड़क पर होने वाली नमाज़ नहीं रोक सकते तो फिर हमें यह भी हक़ नहीं है कि हम कांवड़ियों के डीजे आदि कार्यक्रमों पर किसी तरह का कोई प्रतिबन्ध लगाएं, क्योंकि कांवड़ यात्रा कोई शवयात्रा नहीं है | उनके इस बयान का कट्टरवादी हिन्दुओं ने दिल खोलकर स्वागत किया है | हालाँकि हिंदुत्व एक अति सहिष्णु विचार है लेकिन इधर कुछ वर्षों में भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों नें इसे अराजक और असहिष्णु बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है | 
 
 हिंदुत्व को अराजक और असहिष्णु बनाने में तथाकथित धर्म निरपेक्ष दलों के योगदान को भी हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते | जिन्होनें हिन्दू प्रतीकों का अपमान कर बहुसंख्यक हिन्दुओं के मन में कुंठा को इकट्ठा होनें का बेवजह अवसर उपलब्ध करवाया | जिसका लाभ भारतीय जनता पार्टी ने अभी कुछ ही मांह पूर्व हुए यूपी विधान सभा चुनावों में उठाया, जब उसनें लोहे को लोहा कटेगा वाली स्टाइल में मुस्लिम तुष्टिकरण के विरोध में हिन्दू तुष्टिकरण कार्ड खेला | जिस वजह से भाजपा नेता नरेंद्र दामोदर दास मोदी नें कब्रिस्तान बनाम श्मशान और ईद बनाम दिवाली जैसे मुद्दों से यहाँ योगी सरकार की स्थापना की | अब योगी सरकार आये दिन अपने हिन्दू तुष्टिकरण के आधार स्तम्भ को मज़बूती देनें का काम कर रही है | अब जब जब ये सरकार गुड़ गवर्नेंस के मुद्दे पर फेल होगी तब तब ये शुतुरमुर्ग की तरह हिन्दू तुष्टिकरण के रेगिस्तान की रेत में अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करेगी ही | 
    गौर करने वाली बात यह है कि योगी का यह हिन्दू तुष्टिकरण युक्त बयान भी ऐसे समय आया है जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले में यह सरकार चारों तरफ से घिरती हुई दिख रही है | 

सुशील अवस्थी "राजन"  मोबाइल नंबर - 9454699011 

बुधवार, 16 अगस्त 2017

अखिलेश तुम फिर याद आने लगे हो


थे क्या तुम अब दिल को जताने लगे हो,
अखिलेश तुम फिर याद आने लगे हो।
थे अच्छे तुम सीएम, दिल "राजन" का बोले,
जब कुछ ही माह जनता ई योगी को झेले ।
था बदलना जरूरी सो बदले हम सत्ता
यही तो है बाबू लोकतंत्र की महत्ता।
पर लगा अब ये टीपू क्या हमने किया है,
न जाने इन दिनों हमने क्या क्या जिया है।
मरे लाल मेरे इक कतरा हवा बिन
चले हॉस्पिटल अब यहां हैं दवा बिन
कहाँ गुम हुई है अब बड़की लफ़ाज़ी
चोरकट बने हैं अब शहरों के काज़ी।
जानवर बड़ा यहां इंशा है छोटा
न कार्ड न राशन और गायब है कोटा।
तेरे विकास के खंडहरों पर नया रंगरोगन
तुझसे ही लेना फिर भी दोषों का रोपन।
हूँ जनता मैं बेबस पर सब देखता हूँ
खुद के करम पर भी खुब सोंचता हूँ।
है ताकत मेरी वोट मेरे ही हिस्से
मैं फिर से लिखूंगा बदलावों के किस्से।
तब तक तुम सोंचो कहाँ तुम हो चूके
खाएंगे तो ही चौदह वर्ष के ये भूंखे।
तुम फिर से अपना डंका बजाने लगे हो
अखिलेश तुम फिर याद आने लगे हो।


मंगलवार, 15 अगस्त 2017

गद्दार तो सिर्फ तू हो सकता है तेरा खुदा नही


देश है तो तुम हो
देश है तो हम हैं
देश का तराना
है राष्ट्रगान गाना
शर्म करें वो लोग
जिनको पड़े सिखाना
तुम कहते हो
खुदा के सिवा
किसी की इबादत नही
पर जो खुदा पसंद
गा रहे ये नगमा
क्या वो खुदा के बंदे नही
खुदी से खुदा है
खुदा से खुदी नही
क्या कोई खुदा
देश से भी बड़ा
हो सकता है कहीं?
तुम कहते हो खुदा से देश है
देश से खुदा नही है
मैं कहता हूं देश ही खुदा है
वो इससे जुदा नही
गद्दारी को खुद से जोड़े रखो
क्योंकि तुम और तुम्हारी गद्दारी
दोनों अलहदा नही
इससे सिर्फ और सिर्फ तुम जुड़े हो
तुम्हारा खुदा नहीं




शनिवार, 12 अगस्त 2017

राजगद्दी उत्सव में खलल की साजिश है नौनिहालों की मौत


    अब गोरखपुर में हुई नौनिहालों की मौत का दोषी खोजा जा रहा है। कमाल की बात देखिए कि ससुरे सारे दोषी ही मिलजुलकर दोषी खोज रहे हैं। सबसे बड़े दोषी यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ भी दोषी खोज रहे हैं। जब सवाल उछला कि बाबा आप कम दोषी नही हैं, तो बोल पड़े कि भला मुझ निर्दोष का कैसा दोष जब हमको किसी ने कुछ बताया ही नही। मुझे भी बाबा निर्दोष लग रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन के पास तो डेट वाइज़ पूरा चिट्ठा था कि कब पैसा भेजा गया कब पहुंचा और कब आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को यह धन मिल गया। ऐसे में भला उनका क्या दोष? मुझे भी टंडन जी निर्दोष लग रहे हैं। सिद्धार्थ नाथ सिंह का तो काम ही है अपनी अकर्मण्य और बेगैरत सरकार की अच्छाइयों को भाखना भले ही उसमें उचक्कों की भरमार हो सो वो अपना काम कर ही रहे हैं। जिसमे उनका दोष क्या है? प्रिंसिपल साहब की निर्दोषता इसी बात से आंकी जा सकती है कि उन्होंने सरकार द्वारा किसी कार्रवाही से पूर्व ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लिख डाला। भला अब उन्हें दोषी कहने का नैतिक साहस कौन जुटा सकता है? ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी भी बगैर पेमेंट की चिंता किये धाराप्रवाह सप्लाई मेंटेन किये हुए थी। अब वो कहाँ से दोषी है?
      ये सब समर्थ लोग हैं। भला समरथ को भी कोई दोष लगता है गोसाई? मुझे तो पूरे प्रकरण में कुछ असमर्थ लोगों का दोष दिख रहा है। वो असमर्थ लोग जिनकी गरीबी उनके नौनिहालों को लीलने के लिए बाबा राघव दास मेडिकल कालेज खींच लाई। वैसे भी इंसेफेलाइटिस की डायन वर्ष प्रतिवर्ष क्षेत्र का दौरा कर कुछ न कुछ गरीबों के लालों को लील ही जाती है, मरने की नियति लिए जन्मे इन गरीबों के लालों को क्या फर्क पड़ता है कि वो कैसे मर गए? मोदी की इन नाज़ायज़ औलादों के 14 वर्ष के बनवास के बाद प्राप्त सिंहासनोत्सव/राजगद्दी उत्सव में खलल डालने के लिए मृतक नौनिहालों के परिजनों को योगी सरकार से माफी मांगनी चाहिए।

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

इंसेफलाइटिस या योगीफिलाइटिस


गोरखपुर का बाबा राघवदास मेडिकल कालेज इंसेफलाइटिस बुखार से होने वाली मौतों के कारण जाना जाता है। अगर इन मौतों को कुदरत का कहर कहा जाय तो गलत नही होगा। अब ये मेडिकल कालेज एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया जब एकाएक यहां से कुछ एक दिनों में ही पचासों मौतों की खबरें आने लगी। इसबार की ये मौतें कुदरती से ज्यादा मानवीय लापरवाही और संवेदनहीनता की वजह से हुई हैं। 
कहा जा रहा है ये मौतें ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने की वजह से हुई हैं। हालांकि यूपी सरकार इस बात से पल्ला झाड़ रही है, परंतु ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी और कॉलेज के बीच गतिरोध को स्वीकार कर रही है। अगर ये ऑक्सीजन आपूर्ति ठप होने वाली बात सही निकलती है तो फिर मैं इन मौतों को योगीफलैटिस से हुई मौते कहूंगा। क्योंकि सीएम आदित्यनाथ का यह गृह जनपद है तथा योगी जी यहां परसों ही पधारकर वापसी भर किये हैं। 

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

एक था हामिद एक हमीद

एक था हामिद
एक हमीद
एक नें तोड़ा दिल
तो एक नें किया मुरीद
हामिद नें तिरंगे का किया अपमान
हमीद नें तिरंगे पर वारी जानी
एक के बोलबम देश को तोड़े
एक नें पाक के टैंक हैं फोड़े
एक हमारा नायक है
एक बना नालायक है
एक के बचन शत्रु को भावें
एक न फूटी आंख सुहावै
"राजन" एक हामिद अंसारी
बोलो जय वीर अब्दुल हमीद एक बारी

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

पहले बेटी बचाओ फिर....

तर्क के लिए यदि एक क्षण के यह भी मान लिया जाए कि वर्णिका 'पियक्कड़' थी तथा 'विकास बराला' से उसकी पूर्व से पहचान थी, तब भी क्या इससे आमिर बाप के इस बिगड़ैल बेटे व उसके मित्र को वर्णिका द्वारा शराब के नशे में पीछा करने, गाड़ी रोकने व सम्भावित अपहरण व बलात्कार/हत्या करने का हक़ मिल गया था ? एक जघन्य क्रिमिनल ऐक्ट हुआ है, अपराधी को दृष्टांत के रूप में कठोर दंड मिलना ही चाहिए। 
दरअसल, आज 'स्त्री-विरोधी' सोच के लोगों का मानना है कि अच्छे घरों की लड़कियां शराब नहीं पीती, अपनी मर्ज़ी से जो चाहे कपड़े नहीं पहनती है, लड़कों के साथ लेटनाइट पार्टी नहीं करतीं और जो ऐसा करती हैं, वो सभ्य नहीं है, मगर लड़के ये सब करने के बाद भी सभ्य ही कहलाते है, क्यों? क्योंकि उन्हें आज से नहीं सदियों से लाइसेंस मिला हुआ है सब कुछ करने का।
पुरुष वर्ग को समझना होगा और जो न समझे उसे समझाना भी होगा कि....स्त्री का 'ना का मतलब ना' ही होता है, जिसे किसी तरह के तर्क, स्‍पष्टीकरण या व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती, न मतलब स़िर्फ न है। यहाँ तक कि 'पति को भी वह ना कह सकती हैं, यह उसका हक़ है'.....नहीं तो पति भी बलात्कार का दोषी होगा। 
आज भी शिक्षा के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाओँ के लिए... खाना बनाने, पति को ख़ुश करने, बच्चे पैदा करने और बच्चों की देखभाल बस इतनी सी ही होती है उनकी ज़िंदगी। इसके आगे उनकी अपनी पहचान, इच्छा-अनिच्छा सब आज भी बेकार है..... हरियाणा की उक्त घटना में सरकार द्वारा 'विकास बराला' व पार्टी द्वारा उसके पिता 'सुभाष बराला' को बचाना, 'बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ' जैसे उत्कृष्ट नारे को चिढ़ाने जैसा लगता है !!!
क्या कहते हैं, आप ???
साभार- सूर्य प्रताप सिंह, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी

रोज़ विधायक टूट रहे हैं

देश कांग्रेस मुक्त हो जाये
मुझे नहीं अफसोस
लोकतंत्र विपक्ष मुक्त हो जाये
तब पलता है रोष
सत्ता स्वेक्षाचारी होगी
मनमानी लाचारी होगी
भूंख भ्रष्टता नही रुकेगी
नौकरशाही नहीं झुकेगी
रोज़ विधायक टूट रहे हैं
आदर्श सिद्धांत सब छूट रहे हैं
विनर और सत्ता के जुमले
जम्हूरियत को लूट रहे हैं
ये मत सोंचो
नित्य निरंतर सत्ता तेरी दासी होगी
जब छोड़ेगी साथ ये तेरा
तुझको बड़ी उदासी होगी
कभी थे भी सत्ताधारी
जिनसे तुम अब खेल रहे हो
मरणासन्न दलों को काहे शाहू
गहरी कब्र में ठेल रहे हो
कौन सुनेगा तेरी महानता
कौन सुने तेरा यशगान
इसीलिए कहता हूं "राजन"
इनमें बाकी रखो जान


सोमवार, 7 अगस्त 2017

हक़ याचना से नहीं, छीनने से मिलता है: उमेश


    आप लोगों में बहुत से लोग इन महोदय से परिचित होंगे| इनके पास नई चमचमाती बुलेट है, और ये बहुत बढ़िया बाइक सवार हैं | ये कोई बड़ी बात नहीं है | बड़ी बात यह है कि इन्होने ये चमचमाती बुलेट एक बड़े उद्देश्य के लिए खरीदी है | ये श्रीमान उमेश द्धिवेदी जी हैं | महोदय उत्तर प्रदेश विधान मंडल में शिक्षक एमएलसी हैं, और सदन में  वित्तविहीन शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करते हैं | यह बुलेट इन्होने पूरे उत्तर प्रदेश का भ्रमण करने के लिए हाल ही में खरीदी है | असल में माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा के अध्यक्ष उमेश जी पूरे यूपी के वित्तविहीन शिक्षकों को जागरूक करने के लिए 21 अगस्त से शिक्षक अधिकार जागरूकता यात्रा प्रारम्भ करने जा रहे हैं | जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से होने जा रही है | महासभा नें पूरे उत्तर प्रदेश के लिए एक विस्तृत कार्य योजना भी तैयार कर ली है | 
     मामला दरसल ये है कि सभी वित्तविहीन शिक्षक आजकल योगी सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं, और इनका नेतृत्व उमेश जी कर रहे हैं | उमेश जी को जिन वित्तविहीन शिक्षकों के वोट नें एक साधारण शिक्षक से एमएलसी के संवैधानिक पद तक पहुंचाया है, वो शिक्षक योगी सरकार की अदूरदर्शिता और अहंकार के शिकार हो रहे हैं | यूपी के जिन दो लाख वित्तविहीन शिक्षकों को पिछली अखिलेश सरकार नें मानदेय देना प्रारम्भ कर दिया था, योगी सरकार ने आते ही वह फैसला रद्द कर दिया है, जिस वजह से ये वित्तविहीन शिक्षक अब भुखमरी के कगार पर आ गए हैं | एक समय मैं सुशील अवस्थी "राजन" भी वित्तविहीन शिक्षक रहा हूँ, इसलिए इन वित्तविहीन शिक्षकों के दर्द को भलीभांति महसूस कर रहा हूँ | पूर्व वित्तविहीन शिक्षक होने  के नाते उमेश जी के मिशन की मदद करना मैं अपना फ़र्ज़ समझता हूँ | उमेश जी कहते हैं कि वित्तविहीन शिक्षक अपना हक़ लेकर रहेगा| लोकतान्त्रिक व्यवस्था में कोई राजा नहीं है, कि वित्तविहीन शिक्षक उसकी मर्ज़ी या मनमर्जी का शिकार हो | इस सरकार पर जन दबाव बढाकर अपना हक़ छीनेंगे, न कि याचना कर भिक्षावृत्ति करेंगे |  और वही जनमत बनाने के लिए मैं पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर अपने शिक्षक भाइयों को जागरूक करूँगा | मेरी नई मोटरसाइकिल इसी उद्देश्य के लिए आयी है| 

रविवार, 6 अगस्त 2017

25 साल बाद पाक में मंत्री बना कोई हिन्दू


डॉ दर्शन लाल को पाकिस्तान की नई अब्बासी सरकार के मंत्रिमंडल में जगह दी गई है | 25 साल बाद पाकिस्तान में किसी हिन्दू को यह मुकाम हासिल हुआ है | नए प्रधानमंत्री अब्बासी के मंत्रिमंडल में 6 नए चेहरों को शामिल किया गया है, जिसमें सिंध प्रान्त से आने वाले डॉ दर्शन को भी जगह दी गयी है | डॉ दर्शन को चार प्रांतों खैबर पख्तूनख्वां, पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान के कोआर्डिनेशन की भी जिम्मेदारी दी गई है | साल 2013 में उन्हें दूसरी बार नवाज़ शरीफ की अगुवाई वाली pml- n पार्टी के टिकट पर अल्पसंख्यक कोटे से सांसद चुना गया था | 65 साल के डॉ लाल सिंध प्रान्त के घोटकी जिले के मीरपुर मथेलो शहर में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं | माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बनाये गए डॉ दर्शन को आगामी चुनावों में पार्टी के लिए हिन्दू अल्पसंख्यकों का वोट हासिल करने के लिए सत्ताधारी दल नें उन्हें यह सम्मान प्रदान किया है | जबकि हिंदुस्तान की सत्ताधारी पार्टी भाजपा नें उत्तर प्रदेश के चुनावों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को एक भी टिकट देना तक ठीक नहीं समझा | 

सिर्फ बोल "बम" ही चलाएगा चीन?


   चीन पगला चुका है, तभी तो वह हर रोज़ हमें एक नई धमकी दे रहा है। युद्ध का डर दिखाकर वह अपनी मनमानी चलाना चाहता है। वह मात्र 8000 सैनिकों की सेना वाले कमजोर और गरीब देश भूटान की जमीन हड़पना चाहता है। हिंदुस्तान का भी सामरिक हित इसी में है कि वो चीन को भूटान के उस डोकलाम एरिया से दूर ही रखे। खुद को पर्वत से भी ज्यादा मजबूत बताने वाली चीनी सेना पीएलए की बहादुरी को दुनिया तभी समझ गयी थी, जब उसने अपनी बहादुरी दिखाने के लिए मात्र 8000 की सैनिक संख्या वाले देश भूटान को डराकर उसकी जमीन कब्जाने की शर्मनाक हरकत की। भारत ने इस दबंग भूमाफिया चीन को ऐसा न करने की मौन हिदायत दे, उसकी तथाकथित दबंगई की सारी हवा निकाल दी।
     युद्ध युद्ध की रट लगाए चीन को ठीक से पता है कि अब भारत से लड़ना और जीतना कितना कठिन है। चीन की सबसे बड़ी ताकत उसकी दग़ाबाज़ी है। इसी दग़ाबाज़ी के बल पर उसने 1962 में भारत को घाव दिया था। अब भारत ने उस पर भरोसा करना छोङ दिया है। इसलिए अब वह खुद को असहाय महसूस कर रहा है। उसकी बौखलाहट ही उसकी कमजोरी बयां करने के लिए काफी है। पाकिस्तान अपने पावर फुल आका की यह बौखलाहट देखकर ही पगला रहा है। चीन से भी भिड़ने को तैयार भारत की ताकत का असली अंदाज़ा उसे अब हुआ है। वह सोंच रहा है कि जिस दिन भारत की सेना उसे निपटाने की सोंच भर लेगी उसका वजूद मिट जाएगा। 

शनिवार, 5 अगस्त 2017

कृष्णम वंदे जगतगुरूम !



    यूं तो कृष्ण पर किताबें अनगिनत हैं, अतः पाठक भी उन्हें अपनी विवेक के अनुसार समझता है, मानता है। इसीलिए लेखक और वक्ता दीप त्रिवेदी की नवीन रचना “आई एम कृष्णा” (मैं कृष्ण हूं) मुझे अद्भुत लगी। दिलचस्प भी। आध्यात्मिक विषय को मनोवैज्ञानिक शब्दावलि में सुबोध तर्ज पर प्रस्तुत करना उनकी विशिष्ठता लगी। यह 370 पृष्ठोंवाली किताब (पहला भाग: जेल में जन्म से कंस के वध तक का) पढ़ने के बाद कई समाधान तो मिल जाते है। किन्तु तीन प्रश्न अभी भी कौंधते रहते हैं। शायद अगले भाग में उनका जिक्र हो। पहला तो यही कि एक ग्रामीण ग्वालबाल में द्वारकाधीश बनने की संभावना कब तथा कैसे दिखी और आई। दूसरा महात्मा गांधी ने अपने पड़ोसी लीला पुरूषोत्तम से अधिक दूर (उत्तर प्रदेश) के मर्यादा पुरूषोत्तम को हृदय के निकट पाया। बापू की जन्मस्थली सागरतटीय पोरबंदर द्वारिका से केवल सौ किलोमीटर है। उसी तरह टांडा में जन्में राममनोहर लोहिया के लिए पड़ोस वाली राम जन्मभूमि सत्रह सौ से किलोमीटर दूर वाले द्वारका के कृष्ण अधिक करीब रहे। तीसरा प्रश्न है कि सम्पूर्ण अवतार पुरूष कृष्ण के आराधकों की संख्या श्री राम से कही अधिक क्यों है ? क्या त्रेता और द्वापर के युगधर्मों में विषमता के कारण ?
   फिलवक्त यह तो निस्संदेह है कि संगीत, दर्शन, कूटनीति, जातिगत समरसता (ग्वालिन सुभद्रा का राजपूत अर्जुन से विवाह), सूतपुत्रों विदुर तथा कर्ण की प्रतिष्ठा, प्रजावाणी का सम्मान कानून की कद्र आदि के कारक और आधार कृष्ण ही थे। अपनी पहुंच में आमजन गोकुल के वासुदेव को स्वयं के समीप पाता है। तुलनात्मक रूप से अयोध्यापति राजा राम काफी ऊंचाई पर स्थित हैं। पहुंच से दूर। यह बहस की बात हो सकती है।
   लेखक दीप त्रिवेदी ने भी सर्वगुणवान कृष्ण को गरीब नवाज के रोल में रखा है। इसीलिए उनके तो गिरधर गोपाल ही हैं। दूसरा न कोई। गौर कर लें।
   विरोधाभास की प्रतिमूर्ति हैं कृष्ण। महायुद्ध का संचालन करते हैं पर रहते निहत्थे ही। माखनचोर है किन्तु सेमंतकमणि चुराने के झूठे जुर्म में लोकापवाद भुगतते हैं। राधा से शादी नही करते हालांकि तीन पत्नियां रखते हैं। जामवंत पुत्री मिलाकर। जरासंघ की सोलह हजार बन्दिनियों का पाणिग्रहण कर महिला उद्धार का बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं। सत्यमेव जयते मानते हैं पर युधिष्ठिर के झूठ को दबा जाते हैं।
   इनके अलावा भी वासुदेव के आयाम हैं। स्त्री-पुरुष के संबन्धों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करें तो द्वापर युग में राधावल्ल्भ से जुड़े हुए कई कृष्ण और कृष्णा (द्रौपदी) के प्रकरण उसे बेहतरीन आकार देते हैं। भले ही एक पत्नीव्रती मर्यादापुरूषोत्तम की तुलना में तीन पत्नियों के पति, राधा के प्रेमी, गोपिकाओं के सखा लीला पुरूषोत्तम का पाण्डव-पत्नी से नाता समझने के लिए साफ नीयत और ईमानदार सोच चाहिए। युगों से विकृतियां तो पनपाई गई हैं मगर द्रौपदी को आदर्श नारी का रोल माडल कृष्ण ने ही दिया। हालांकि आज भी स्कूली बच्चों को यही बताया जाता है कि यमराज से भिड़कर सधवा बने रहनेवाली सावित्री और चित्तौड़ में जौहर में प्राणोत्सर्ग करनेवाली पदमिनि ही भारतीय नारी के आदर्श हैं। यह सोच लीक पर घिसटनेवाली है, बदलनी चाहिए। कृष्णा के कृष्ण मित्र थे जिन्होंने उसके जुवारी पतियों के अशक्त हो जाने पर उसे बचाया, उसके अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए महाभारत रचा। उस अबला के भ्राता-पिता, पति-पुत्र भी से बढ़कर कृष्ण ने मदद की। ऐसे कई प्रसंग है जो कृष्ण को आज के परिवेश में अत्याधुनिक पुरुष के तौर पर पेश करते हैं। उन्हें न युग बांध सकता हैं और न कलम बींध सकती है।
   विश्वरूपधारी होने के बावजूद कृष्ण के जीवन का सबसे दिलचस्प पक्ष यही है कि वे आम आदमी जैसे ही रहे। वैभवी राजा थे, किन्तु अकिंचन प्रजा (सुदामा) से परहेज नही किया। गोकुल के बाढ़पीड़ितों को गिरधारी ने ही राहत दी। (आज के राजनेता इसे सुनें)। कृष्ण अमर थे मगर दिखना नहीं चाहते थे। इसीलिए बहेलिये के तीर का स्वागत किया और जता दिया कि मृत्यु सारी गैरबराबरी मिटा देती है, वर्गजनित हो अथवा गुणवर्ण पर आधारित हो। यदि यह यथार्थ आज के हस्तिनापुर की संसद को कब्जियाने पर पिले धरतीपुत्रों को, खासकर कृष्णवंशियों की, समझ में न आये, तो जरुर उनकी सोच खोटी है। असली कृष्णभक्त तो राजनीतिक होड़ में रहेगा, मगर निस्पृहता से। 
  इसी सदी के परिवेश में, स्वाधीन भारत में कृष्णनीति पर विचार करने के पूर्व उनके द्वापरयुगीय दो प्रसंग गौरतलब होंगे। यह इस सिलसिले में भी प्रासंगिक है, क्योंकि कृष्ण के प्राण तजने के दिन से ही कलयुग का आरम्भ हुआ था। प्रथम प्रकरण यह कि जमुना किनारे वाला अहीर का छोरा सुदूर पश्चिम के प्रभास (सरस्वती) नदी के तट पर (सोमनाथ के समीप) अग्नि समर्पित हो; तो उसी नदी के पास जन्मे काठियावाड़ के वैष्णव कर्मयोगी मोहनदास करमचंद गांधी का यमुना तट के राजघाट पर दाह-संस्कार हो। लोहिया ने इसे एक ऐतिहासिक संयोग कहा था। उत्तर तथा पश्चिम ने आपसी हिसाब चुकता किया था। दूसरी बात समकालीन है। द्वापर के बाद पहली बार (पोखरण में) परमाणु अस्त्र से लैस होकर देश एक नये महाभारत की ओर चल निकला है। परिणाम कैसा होगा ? चीन जाने।
आधुनिक संदर्भ में लोग राजनीति में कुटिलता, क्रूरता और प्रवंचना को महाभारत की घटनाओं के आधार पर सही ठहराने का नासमझ प्रयास करते है। अर्थात कृष्ण झूठ बोलते रहे, असमय वार कराते रहे, कभी-कभी फरेब भी करते रहे। मायने यही कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए साधन और माध्यम को शुचिता पर वे ध्यान नहीं देते थे। यथार्थ यह है कि महाभारत युद्ध मे कौरव सरीखे शत्रुओं से उन्हीं की रणनीति और नियमों से लड़ा जा सकता था। जब अन्नदोष के कारण दुर्योंधन की कृपा पर आश्रित गुरू द्रोण, पितामह भीष्म, सूर्यपुत्र कर्ण, कुलगुरू कृपाचार्य आदि अन्याय के साथ जुड़े हों तो फिर उनका नीर-क्षीर विवेक ही समाप्त हो गया था। अश्वत्थामा नामक हाथी को मारकर द्रोणाचार्य को भ्रम में डालना, शंख फूंककर कुंजर शब्द का युधिष्ठिर द्वारा उच्चारण को दबा जाना, फिर धृष्टह्मुम्न द्वारा द्रोणाचार्य का सर काटना अपरिहार्य कारण थे। वरना धनुष लिये द्रोणाचार्य को स्वयं विष्णु नहीं हरा सकते थे।
शिखण्डी को ढाल के रूप में प्रयुक्त न कराते तो महाभारत के दसवें दिन भीष्म के रौद्ररूप से सारी पाण्डव सेना ही मटियामेट हो जाती। युधिष्ठिर को पितामह भीष्म के युद्ध शिविर में भेजकर उनको हराने का रहस्य जानने की बात केवल कृष्ण ही सोच सकते थे। फिर वीर कर्ण से अपने साथी अर्जुन को कैसे बचाया ? उसके अमोध अस्त्र से तय था अर्जुन मर जाता। कृष्ण ने घटोत्कच की मदद ली। भतीजे के प्राण से चाचा के प्राण बचे। यह स्पष्ट है कि यदि दुर्योधन बजाय यादव सेना के कृष्ण को कौरवों के लिए मांग लेता तो महाभारत का नज़ारा अलग होता। पर वाह रे कृष्ण! अहंकारी दुर्योधन सिरहाने बैठा, विनम्र अर्जुन पैंताने पर। उठकर सीधे अर्जुन को ही पहले देखा और उसके साथ हो लिये। उसी अर्जुन को जयद्रथ-वध के पहले सूरज को चक्र से ढक कर बचा लिया। वरना सूर्यास्त के पूर्व अपने पुत्रहन्ता को मारने की कसम खाने वाले अर्जुन का अन्त उसी दिन हो जाता। 
 
कूटनीति और युद्ध-संरचना का लाजवाब सम्मिश्रण कर कृष्ण ने जो किया वह यदि पृथ्वीराज चैहान ओर राणा सांगा कर पाते तो भारत का इतिहास ही कुछ और होता। लक्ष्य प्राप्ति के लिए कंस का वध होता है तथा मथुरा राज्य स्वाधीन हो जाता है। राम-रावण युद्ध यदि प्रथम महासमर था तो कंसवध से कृष्ण ने द्वितीय महासमर का प्रारम्भ कर दिया था। धरती पर क्रूर शासक बोझ बन गये थे। (कुछ हिटलर, तोजो, मुसोलिनी की भांति)। कंस शीर्ष खलनायक था। दामाद के वध का बदला लेने में श्वसुर जरासंघ द्वारा आक्रमण स्वाभाविक कार्यवाही थी। जरासंध ने अपनी तेईस अक्षैहिणी सेना (आज की भारतीय सेना से तिगुनी) लेकर अठारह बारह धावा बोला और हर बार पराजित होकर लौटा। फिर बाद में जैसे देशी राजाओं ने मुहम्मद गोरी और जहीरूद्दीन बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया था, मगध नरेश जरासंध ने कश्मीर नरेश कालयवन को मथुरा को ध्वस्त करने का निमंत्रण दिया। अपनी अपार म्लेच्छ और शक सेना को लेकर कालयवन ने चढ़ाई की। कृष्ण कमजोरी महसूस करते थे। किन्तु जिस तरकीब से कृष्ण ने मथुरा बचाया और शत्रु का नाश किया, वह राजकौशल का नायाब उदाहरण है। कृष्ण ने कालयवन को अपना पीछा करने के लिए उकसाया। भागते-भागते कृष्ण ने ढोलपुर के निकटस्थ पर्वतगुफा में शरण लिया। कालयवन भी वहां जा पहुंचा। कृष्ण ने अपना पीताम्बर वहां निन्द्रामग्न राजर्षि मुचुकुन्द को ओढ़ा दिया। उस मूर्ख कालयवन ने राजर्षि को कृष्ण समझकर झकझोरा। राजर्षि क्रुद्ध होकर उठे और कालयवन को घूरा। उन्हें वरदान था कि वे जिसे नाराजगी से देखेगे वह राख हो जाएगा। युक्ति से कृष्ण ने मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म कराया। कश्मीर भी आजाद हो गया। 
   अब राष्ट्रनायक के रोल में कृष्ण पर उत्तरदायित्व और बढ़ गया था, क्योंकि गंगा किनारे (गढ़मुक्तेश्वर) पर बसा हस्तिनापुर अन्यायी और वंचकों के अधीन था। कौरव युवराज दुर्योधन भारत को न्यायप्रिय राष्ट्र बनने में बाधक था। पहले तो कृष्ण ने सहअस्तित्व के सिद्धांत के आधार पर गंगा से दूर यमुनातट पर इन्द्रप्रस्थ में ही कुरू पाण्डवों को स्थापित किया। मगर दुर्योधन ने बात बनने नहीं दी। तब कुरूक्षेत्र में फैसला हुआ और महाभारत रचा गया। धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेघ से भारत फिर अखण्ड, सार्वभौम, प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र-राज्य बना। कृष्ण इसके शिल्पी थे। कृष्ण गरीबनवाज थे। उनको हम आज एक सखा (कामरेड) के रूप पूजकर अपार ढांढस और राहत पा सकते है। संदीपन आश्रम में अपने सहपाठी सुदामा के चिथड़े कपड़ों के बावजूद उस विप्र को द्वारका सिंहासन पर बैठाकर उनका आवभगत करना कोई विशाल दिलवाला ही कर सकेगा। 
   एक विवाद भी उठ खड़ा होता है कि कृष्ण हुये भी हैं, या यह बस एक कल्पना है। राममनोहर लोहिया, जो अपने को नास्तिक कहते थे, एक बार लखनऊ में बहस के दौरान बोले, ऐसा विवाद फ़िजूल हैं। जो व्यक्ति जनमन में युगों से रमा हो, छा गया हो, उसके अन्य पक्ष को देखो। अब यदि इस मीमांसा में पड़े तो पाण्डित्यपूर्ण शोध हो सकता है, पर लालित्यपूर्ण मनन नहीं। ऋग्वेद में अनुक्रमणी पद्धति में कृष्ण अंगीरस का उल्लेख आता है। छान्दोग्य उपनिषद में देवकीपुत्र कृष्ण को वेदाध्यनशील साधु बताया गया है। पुराणों में वसुदेव पुत्र वासुदेव बताया है। बौद्धघट जातक कथा में कृष्ण को मथुरा के राजपरिवार का सदस्य दर्शाया गया है।
   कृष्ण को पूर्वाभास था कि उनका युग समाप्त होगा तो उन्हीं के यदुवंशी तानाशाही करने लगेगे। कृष्ण भी रौनाक्षी नद तट पर लेटकर वधक बहेलिये के बाण की प्रतीक्षा करते रहे। महाभारत युद्ध के बाद कृष्णवंशी गोपजनों ने मत्स्यदेश, कुरूप्रान्त, पांचाल, ब्रज, वत्सपाल क्षेत्र, महिष्मती, गोपराष्ट्र, राष्ट्रकूट, दो सुर्पाक आदि साम्राज्य का आधिपत्य ले लिया था। मिस्त्र, अफगानिस्तान और मध्येशिया तक यदुवंशी पहुंच गये थे, किन्तु उनके अहंकारपूर्ण साम्राज्य का ऋषि विश्वमित्र ने शाप देकर अन्त कर दिया। कृष्णकथा से दुबारा बोध होता है कि घमण्डी यदुवंशी अंत में गिरता ही है, तो फिर यह सियासी तीन-तेरह काहे के वास्ते ?
K Vikram Rao 
9415000909
k.vikramrao.@gmail.com

योगी का एक मंत्री.. जिसे निपटाने के लिए रचा गया बड़ा षडयंत्र हुआ नाकाम

  सुशील अवस्थी 'राजन' चित्र में एक पेशेंट है जिसे एक सज्जन कुछ पिला रहे हैं। दरसल ये चित्र आगरा के एक निजी अस्पताल का है। पेशेंट है ...