मंगलवार, 8 अगस्त 2017

पहले बेटी बचाओ फिर....

तर्क के लिए यदि एक क्षण के यह भी मान लिया जाए कि वर्णिका 'पियक्कड़' थी तथा 'विकास बराला' से उसकी पूर्व से पहचान थी, तब भी क्या इससे आमिर बाप के इस बिगड़ैल बेटे व उसके मित्र को वर्णिका द्वारा शराब के नशे में पीछा करने, गाड़ी रोकने व सम्भावित अपहरण व बलात्कार/हत्या करने का हक़ मिल गया था ? एक जघन्य क्रिमिनल ऐक्ट हुआ है, अपराधी को दृष्टांत के रूप में कठोर दंड मिलना ही चाहिए। 
दरअसल, आज 'स्त्री-विरोधी' सोच के लोगों का मानना है कि अच्छे घरों की लड़कियां शराब नहीं पीती, अपनी मर्ज़ी से जो चाहे कपड़े नहीं पहनती है, लड़कों के साथ लेटनाइट पार्टी नहीं करतीं और जो ऐसा करती हैं, वो सभ्य नहीं है, मगर लड़के ये सब करने के बाद भी सभ्य ही कहलाते है, क्यों? क्योंकि उन्हें आज से नहीं सदियों से लाइसेंस मिला हुआ है सब कुछ करने का।
पुरुष वर्ग को समझना होगा और जो न समझे उसे समझाना भी होगा कि....स्त्री का 'ना का मतलब ना' ही होता है, जिसे किसी तरह के तर्क, स्‍पष्टीकरण या व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती, न मतलब स़िर्फ न है। यहाँ तक कि 'पति को भी वह ना कह सकती हैं, यह उसका हक़ है'.....नहीं तो पति भी बलात्कार का दोषी होगा। 
आज भी शिक्षा के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाओँ के लिए... खाना बनाने, पति को ख़ुश करने, बच्चे पैदा करने और बच्चों की देखभाल बस इतनी सी ही होती है उनकी ज़िंदगी। इसके आगे उनकी अपनी पहचान, इच्छा-अनिच्छा सब आज भी बेकार है..... हरियाणा की उक्त घटना में सरकार द्वारा 'विकास बराला' व पार्टी द्वारा उसके पिता 'सुभाष बराला' को बचाना, 'बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ' जैसे उत्कृष्ट नारे को चिढ़ाने जैसा लगता है !!!
क्या कहते हैं, आप ???
साभार- सूर्य प्रताप सिंह, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी

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