रविवार, 20 अगस्त 2017

मंगल ग्रह पर यान भेजना आसान, लेकिन जमीन पर ट्रेन चलाना मुश्किल


   मुज़फ्फर नगर के खतौली से एक बार फिर ट्रेन हादसे की दुखदायी खबर आयी है | ट्रैक पर मरम्मत का काम चल रहा था कि इसी बीच पुरी से हरिद्धार जा रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस आ गयी परिणाम स्वरुप एक बड़ा हादसा हो गया | सूचना क्रांति के इस युग में पास के रेलवे स्टेशन तक इस खबर का न पहुँच पाना कि इस वक्त ट्रैक असुरक्षित है, अपने आप में कम विष्मयकारी नहीं है | फ़िलहाल हर रेल हादसे की तरह इस हादसे की भी जाँच तो होगी ही, तभी कारण स्पष्ट होंगे | 
  भारतीय रेल की यह दुर्दशा देख कर मैं कभी-कभी सोंचता हूँ कि अंतरिक्ष में स्थित मंगल ग्रह पर पहले ही प्रयास में सफलता पूर्वक यान पहुंचाने वाले देश भारत के लिए जमीन पर सुरक्षित रेल चला पाना इतना कठिन काम क्यों है ? दुनिया के संपन्न से संपन्न देश जिस मंगल पर अपना सबकुछ झोंककर बमुश्किल पहुंचे, वहां भारत बहुत आसानी से झंडे गाड़ आया, फिर जमीन पर सुरक्षित रेल यात्रा के मामले में हम दुनिया में इतने फिसड्डी क्यों हैं ?  तीन साल पुरानी क्रांतिकारी नरेंद्र मोदी सरकार भी आखिर रेल सञ्चालन व्यवस्था में कोई क्रांति क्यों नहीं ला पा रही है ?
   असल में भारतीय रेल आज भी आज़ादी के पहले के ट्रैकों और संसाधनों पर ही ज्यादा निर्भर करती है | जबकि दुनिया के अन्य देशों नें आधुनिक प्रोद्योगिकी आत्मसात कर ली है  | भारतीय रेल सवारियों से ज्यादा यहाँ की घरेलू राजनीती को ढोनें में इस्तेमाल की जाती है | इसीलिए आज हमारी रेल दुनिया की सबसे असुरक्षित ट्रेनों में अव्वल है | सच तो यह भी है कि बुलेट ट्रेन का सपना संजोने वाली मोदी सरकार भी भारतीय रेल को उसके दुर्दशा दुष्चक्र से बाहर नहीं ला पा रही है | 
सुशील अवस्थी "राजन" 
9454699011 

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