मुझे नहीं अफसोस
लोकतंत्र विपक्ष मुक्त हो जाये
तब पलता है रोष
सत्ता स्वेक्षाचारी होगी
मनमानी लाचारी होगी
भूंख भ्रष्टता नही रुकेगी
नौकरशाही नहीं झुकेगी
रोज़ विधायक टूट रहे हैं
आदर्श सिद्धांत सब छूट रहे हैं
विनर और सत्ता के जुमले
जम्हूरियत को लूट रहे हैं
ये मत सोंचो
नित्य निरंतर सत्ता तेरी दासी होगी
जब छोड़ेगी साथ ये तेरा
तुझको बड़ी उदासी होगी
कभी थे भी सत्ताधारी
जिनसे तुम अब खेल रहे हो
मरणासन्न दलों को काहे शाहू
गहरी कब्र में ठेल रहे हो
कौन सुनेगा तेरी महानता
कौन सुने तेरा यशगान
इसीलिए कहता हूं "राजन"
इनमें बाकी रखो जान
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