सम्मानित शिक्षक साथियो, माध्यमिक वित्तविहीन विद्यालय, दिनांक 14 अक्टूबर सन 1986 के बाद तथाकथित शिक्षक नेताओं के इशारे पर सरकारी धनाभाव की आड़ में खुलने प्रारम्भ हुए | लगभग 10 वर्षों में एडेड विद्यालयों की संख्या के आंकड़े को वित्तविहीन विद्यालय पार कर गए | इससे स्थापित शिक्षा जगत के नेताओं की कुदृष्टि इन वित्तविहीन विद्यालयों पर पड़नी शुरू हुई, क्योंकि ये विद्यालय अल्पसंख्यक के स्थान पर बहुसंख्यक होने लगे, इन्हीं विद्यालयों के बल पर अपनी राजनीति चमकाने वाले कुछ शिक्षक नेता इन विद्यालयों व इनके प्रबंधकों, प्रधानाचार्यों, शिक्षकों-कर्मचारियों एवं छात्र / छात्राओं को नीचा दिखाने के लिए और अपने को उच्चतर दिखाने के लिए अनेक प्रकार की कुटिल चालें चलना शुरू कर दिए | यथा-जिन प्रबंधकों ने अपनी गाढ़ी कमाई को अपने समय व पूंजी को इन विद्यालयों को स्थापित करने में लगाया उन्हें शिक्षा माफिया, प्रधानाचार्यों को नक़ल के दलाल, विद्यालय भवन को नक़ल के अड्डे, कुकुरमुत्ते वहीं शिक्षकों को तो शिक्षा विभाग की नाजायज औलाद तक कहा गया | छात्रों पर “नक़ल करके ही पास हुआ होगा” ऐसी बातें सार्वजानिक रूप से इन लोगों को कहने में हिचक नहीं होती थी |
शासन के करीब बैठे इन लोगों ने वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों को अपमानित करने के लिए अमर्यादित रूप से बोर्ड परीक्षा में कक्ष निरीक्षक के कार्ड दो तरह के बनवाये, प्रधानाचार्यो को केंद्र व्यवस्थापक पद से हटवाया, अपने सवित्त व राजकीय विद्यालयों से मनमाने केंद्र व्यवस्थापक / पर्यवेक्षक भेजकर इन विद्यालयों को डरवाये, धमकाये, डिबार कराकर शोषण भी किये | प्रयोगात्मक परीक्षक व डी०एच०ई० बनने से रोकते रहे | व्यक्तिगत परीक्षार्थियों का अग्रसारण भी इन वित्तविहीन प्रधानाचार्यो से छीना गया और इतना ही नहीं हद तो तब हो गयी जब विधान परिषद् में मत देने का मिला संवैधानिक अधिकार भी 2007 में इन स्थापित कुटिल तथाकथित शिक्षक नेताओं ने (भारत निर्वाचन आयोग में माननीय ओम प्रकाश शर्मा एवं माननीय सुरेश त्रिपाठी) अपने लेटर पैड पर इन वित्तविहीन पूर्णकालिक शिक्षकों को अंशकालिक कहते हुए इन्हें विधान परिषद् शिक्षक खण्ड के निर्वाचन में मतदाता बनने से रोकने का घृणित प्रयास किया और मतदाता बनने से रोकने में सफल भी रहे |
ऐसे में हम व हमारा वित्तविहीन शिक्षक समाज कहाँ तक चुप रहता वित्तविहीन शिक्षकों को एकसूत्र में बांधते हुए माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा मा०उमेश द्विवेदी, मा०संजय मिश्र, श्री अशोक कुमार राठौर, श्रीमान संजीव बाजपेयी, कु०रेनू मिश्र, श्रीमान अजय सिंह एडवोकेट, श्रीमान अखिलेश सिंह, श्रीमान रामपाल जांगड़ा जैसे लोगों ने अपना सर्वस्व लगाकर तमाम सारे शोषित-प्रताड़ित प्रबंधक, प्रधानाचार्य व शिक्षकों को संगठित किये |
वैसे तो वित्तविहीन व्यवस्था के खिलाफ समय-समय पर कई जिलों व क्षेत्रों में अलग-अलग आवाजें उठ रही थी किन्तु वास्तविक संघर्ष तो उक्त लोगों के जुड़ने व प्राण-पण से रात-दिन वित्तविहीन व्यवस्था के खिलाफ रात-दिन के संघर्ष से जोर पकड़ना प्रारम्भ हुआ |
अब आपके समक्ष 2007 से चले संघर्ष की कुछ विशेष गतिविधियों की सूक्ष्म चर्चा करना आवश्यक हैं :-
वित्तविहीन शिक्षकों का मताधिकार के लिए संघर्ष :-
2007 में महासभा ने अपने शिक्षकों के समर्थन के बल पर वाराणसी शिक्षक विधान परिषद् के उपचुनाव में पहली बार प्रत्याशी के रूप में संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री राजेन्द्र प्रताप सिंह को मैदान में उतारा, सत्ता सिंघासन छिनने के भय से परिषद् की शिक्षक सीटों पर काबिज़ नेताओं ने भारत निर्वाचन आयोग को लिखित पत्र के माध्यम से गुमराह किया कि ये “वित्तविहीन विद्यालय धारा 7क (क) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त हैं इनमें पढ़ाने वाले शिक्षक / शिक्षिकाएं अंशकालिक (मात्र घंटे दो घंटे पढ़ाने वाले) हैं | ये विधान परिषद् शिक्षक खण्ड में मतदाता बनने का कुत्सित प्रयास कर रहें हैं” (यह पत्र माननीय ओम प्रकाश शर्मा व इनके दल के अन्य नेताओं द्वारा अपने लेटर पैड पर भारत निर्वाचन आयोग को दिया गया, जो सार्वजनिक हुआ) इस शिकायती पत्र के आधार पर वाराणसी के उपचुनाव में वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों को मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया | तब मजबूर होकर महासभा ने वित्तविहीन शिक्षकों को मताधिकार दिलाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया, कई तारीखों व बहस के बाद भी धनाभाव में महासभा को इस मुक़दमे में अपेक्षित परिणाम न मिला और मुक़दमे के सुनवाई की तारीख बनारस के उपचुनाव के बाद की लगी | इससे महासभा के नेताओं में काफी निराशा व हताशा व्याप्त हुई, परन्तु हार न मानते हुए महासभा ने सम्मानित एल०पी०मिश्र एडवोकेट से उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच में माध्यमिक वित्तविहीन विद्यालय प्रबंधक महासभा के नाम से वित्तविहीन शिक्षकों को वोटर बनाने के लिए याचिका दायर की | यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा के नाम से याचिका PENDING थी, जिसके कारण प्रबंधक महासभा के नाम से लखनऊ में रिट योजित की गयी, मुक़दमे की पैरवी के लिए मैं स्वयं, संजय कुमार मिश्र, लियाकत अली, हरस्वरूप शर्मा आदि ने दिए, सम्पूर्ण पैरवी मैं स्वयं लखनऊ रहकर करता रहा, परिणामस्वरूप 5 मार्च 2008 को वित्तविहीन शिक्षकों को लोकतंत्र का सबसे “महत्वपूर्ण हथियार” विधान परिषद् में “मत का अधिकार” प्राप्त हो गया |
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