बुधवार, 30 अगस्त 2017

नित्य रामायण


 नाम हृदयमें धारण करते ही क्षणभरमें सारे पापोंका नाश वैसे ही हो जाता है, जैसे सूखी घासमें चिनगारी पडनेसे वह भस्म हो जाती है । रामनामका ऐसा प्रभाव है कि पापी-से-पापी व्यक्तिका भी उद्धार हो जाता है । भगवान् के भजनके प्रभावसे भगवान् स्वयं वशमें हो जाते हैं । कहा भी गया है --   

सुमिरि पवनसुत पावन नामू,अपने बस करि राखे रामू
                                                             
(मानस १/२६/६)
‘पवनसुत हनुमानजीने भगवान् के नाम स्मरणसे भगवान् को अपने अधीन कर रखा है ।‘ 

भगवान् का नाम निराधारका आधार है । भगवान् से भी बढ़कर भगवान् के नामको कहें तो भगवान् की ही बड़ाई है और अतिशयोक्ति भी नहीं है । नामका गुण, प्रभाव जानना चाहिये । भगवान् के जितने गुण हैं वे सब नाम लेनेवालेमें अपने-आप आ जाते हैं । यह नाम-जपकी महिमा है । दोष, दुर्गुण, दुराचारका अपने-आप नाश हो जाता है, यह प्रभाव है । नामका तत्त्व समझना चाहिये । जैसे बर्फ और जल एक हैं । व्यापक अग्नि और प्रज्वलित अग्नि एक है, उसी प्रकार भगवान् का नाम और स्वरूप एक है । भगवान् के नामका रहस्य समझना चाहिये । भगवान् के नामका बड़ा भारी प्रभाव है, जिससे पापीके सब पापोंका नाश हो जाता है । इसका मतलब यह नहीं है कि खूब पाप करो । जो मनुष्य यह समझता है कि पाप कर लो और भजन करके पापका नाश कर लेंगे, यदि इस आशयसे पाप करने लगे तो ‘नाम’ पापकी वृद्धिमें हेतु हो गया । जो यह समझकर पाप करता है, उसके पापका नाश नहीं होता । उसने नामके रहस्यको नहीं समझा ।

नामकी ओटमें पाप करना भगवान् का अपराध है । पूर्वके पापोंके लिये क्षमा माँग ले और भविष्यमें पाप न करनेकी प्रतिज्ञा कर ले तो पूर्वके पापोंकी माफ़ी है – ऐसा न्याय है । भगवान् के नाममें बड़ा भारी रहस्य भरा है । नामका तत्त्व, नामका गुण, नामका प्रभाव समझमें आ जाय तो नाम-जप छूट नहीं सकता । निरन्तर करता ही रहता है । छोड़ नहीं सकता फिर बेडा पार है ।

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