अब गोरखपुर में हुई नौनिहालों की मौत का दोषी खोजा जा रहा है। कमाल की बात देखिए कि ससुरे सारे दोषी ही मिलजुलकर दोषी खोज रहे हैं। सबसे बड़े दोषी यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ भी दोषी खोज रहे हैं। जब सवाल उछला कि बाबा आप कम दोषी नही हैं, तो बोल पड़े कि भला मुझ निर्दोष का कैसा दोष जब हमको किसी ने कुछ बताया ही नही। मुझे भी बाबा निर्दोष लग रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन के पास तो डेट वाइज़ पूरा चिट्ठा था कि कब पैसा भेजा गया कब पहुंचा और कब आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को यह धन मिल गया। ऐसे में भला उनका क्या दोष? मुझे भी टंडन जी निर्दोष लग रहे हैं। सिद्धार्थ नाथ सिंह का तो काम ही है अपनी अकर्मण्य और बेगैरत सरकार की अच्छाइयों को भाखना भले ही उसमें उचक्कों की भरमार हो सो वो अपना काम कर ही रहे हैं। जिसमे उनका दोष क्या है? प्रिंसिपल साहब की निर्दोषता इसी बात से आंकी जा सकती है कि उन्होंने सरकार द्वारा किसी कार्रवाही से पूर्व ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लिख डाला। भला अब उन्हें दोषी कहने का नैतिक साहस कौन जुटा सकता है? ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी भी बगैर पेमेंट की चिंता किये धाराप्रवाह सप्लाई मेंटेन किये हुए थी। अब वो कहाँ से दोषी है?
ये सब समर्थ लोग हैं। भला समरथ को भी कोई दोष लगता है गोसाई? मुझे तो पूरे प्रकरण में कुछ असमर्थ लोगों का दोष दिख रहा है। वो असमर्थ लोग जिनकी गरीबी उनके नौनिहालों को लीलने के लिए बाबा राघव दास मेडिकल कालेज खींच लाई। वैसे भी इंसेफेलाइटिस की डायन वर्ष प्रतिवर्ष क्षेत्र का दौरा कर कुछ न कुछ गरीबों के लालों को लील ही जाती है, मरने की नियति लिए जन्मे इन गरीबों के लालों को क्या फर्क पड़ता है कि वो कैसे मर गए? मोदी की इन नाज़ायज़ औलादों के 14 वर्ष के बनवास के बाद प्राप्त सिंहासनोत्सव/राजगद्दी उत्सव में खलल डालने के लिए मृतक नौनिहालों के परिजनों को योगी सरकार से माफी मांगनी चाहिए।
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