गुरुवार, 22 जून 2017

मेरी अयोध्या यात्रा

एक बार फिर मैं अयोध्या में हूँ। लोकल लखनऊ का निवासी होने के कारण अयोध्या आना-जाना मेरे लिए बेहद सामान्य प्रक्रिया है। तब भी मैं कभी झुनकी घाट नहीं गया था। इस बार गया हूँ। ये बेहद खूबसूरत घाट है। यहाँ गज़ब की शांति और सुकून है। नया घाट पर जो भक्तों का रेला-ठेला बना रहता है, उसका यहाँ नितांत आभाव है, जिसकी वजह से यहाँ सुकून और शांति की मात्रा ज्यादा है।
अयोध्या दर्शन प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबी की मनोकामना होती है। कुछ की पूरी होती है तो कुछ को बगैर अयोध्या दर्शन के ही शरीर त्यागना पड़ता है। अयोध्या  भले ही लखनऊ से मात्र 120 किलोमीटर की दूरी पर क्यों न हो परंतु लखनऊ में ही तमाम ऐसे राम भक्त निवास करते हैं जो अब तक के अपने लंबे जीवनकाल में कभी अयोध्या नहीं आ सके, ऐसा तब है जबकि वो अयोध्या आना चाहते हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि राम बुलाएंगे तभी तो जायेंगे। खैर।
अयोध्या में कनक भवन, हनुमानगढ़ी और राम जन्मभूमि ऐसे पवित्र स्थान हैं, जिनके दर्शन प्रायः सभी दर्शनार्थी करते हैं। कनक भवन की संध्या आरती के क्या कहने? मद्धिम स्वर में बगैर किसी साउंड सिस्टम के श्री रामचंद्र कृपालु.... जैसे एक से एक मनभावन भजनों की तबले और मंजीरे की बेहतरीन जुगलबंदी के साथ भगवान कनक बिहारी जू के दर्शन एक अनोखे आनंद का एहसास कराते हैं, जिसका वर्णन असंभव है।
सरयू स्नान यहाँ का सबसे दिव्य कर्म है। कहते हैं समय की करवट नें यहाँ के हर निर्माण को कई-कई बार उल्टा-पुल्टा है, किन्तु सिर्फ सरयू ही भगवान राम के समय की वह निशानी है जो यथावत है। इसलिए सरयू का स्पर्श मतलब अपने आराध्य का स्पर्श है।

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