दो दिन से अखबार- टीवी- सोशल मीडिया से नजरें चुरा रहा हूं, डर रहा हूं कि कहीं उस बच्ची की तस्वीर दिख न जाए, उसके साथ जो क्रूरता हुई उसकी डीटेलिंग से बच रहा हूं। आप कहोगे कि सच्चाई नजरें चुराने से बदल नहीं जाएगी, लेकिन मैं एक बच्ची का पिता हूं, मेरे लिए आपकी आदर्शवादी बातें बेकार हैं। मैं पिता न भी होता तो इतना संवेदनशील हूं कि खून देखकर धड़कन बढ़ जाती है।
हम एक फ़ेल्ड सोसाइटी हैं, हमारी प्राथमिकताएं इस बात की चुगली करती हैं। एक जुर्म, एक पाप, एक घिनापा था जो हो गया। बारीकी से देखिए कि हमारा समाज इस पर रिएक्ट कैसे कर रहा है? मैं मीडिया में हूं। यहां इसकी वीभत्स हेडलाइन्स अपनी पीठ ठोंकते हुए आगे सरकाई जाती हैं। जितनी भीषण हेडलाइन उतनी आत्म संतुष्टि। जो जितनी डीटेलिंग डरावनी आवाज के साथ विजुअल में दिखा पाए उसकी उतनी अच्छी टीआरपी, उतने अच्छे पेज व्यूज।
हमारे हाथ में स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन था। हम अपनी आवाज जिम्मेदार लोगों तक पहुंचा सकते थे। वो जिम्मेदार लोग जिन्हें आपने वोट देकर जिम्मेदारी सौंपी। वो जिम्मेदार जो ये तय कर सकते हैं कि ऐसी क्रूरता फिर से होने के चांस कम हो जाएं। लेकिन वो जिम्मेदार जेल में बलात्कार के आरोपियों से धन्यवाद मीटिंग करने जाते हैं। हमारे मुंह से एक शब्द नहीं निकलता। जिस सूबे में हुई क्रूरता पर पूरा देश उबला हुआ है, उस सूबे का मुख्यमंत्री अलीगढ़ न जाकर अयोध्या में मूर्ति अनावरण करने जाता है। हम उससे सवाल नहीं पूछते। जिम्मेदार लोगों से सवाल करना हमारी प्राथमिकता में नहीं है.
हमने घिनौना चेहरा छिपाने के लिए नए टर्म्स बनाए हैं. मोमबत्ती गैंग, टुकड़े टुकड़े गैंग, अवॉर्ड वापसी गैंग. ये गैंग निर्भया पर भी मोमबत्ती जलाते हैं, आसिफा पर भी मोमबत्ती जलाते हैं, उन्नाव की बेटी पर भी मोमबत्ती जलाते हैं और इस बच्ची के लिए भी जला रहे हैं. हमारी प्राथमिकता ये है कि हम इन्हें याद दिलाते रहते हैं 'उस पर तो प्लकार्ड दिखाए थे, इस पर क्यों नहीं?' ये हमारी ड्यूटी है. हमारी ड्यूटी है कि हम मुख्यमंत्री स्वरा भास्कर से सवाल करें कि आपकी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस क्यों सोती रही? हम प्रधानमंत्री प्रकाश राज को ट्रोल करें कि जब देश उबल रहा है तो तुम खुद को कमल के फूलों से तुलवा रहे हो. हम आसिफा के कातिलों को बचाने के लिए तिरंगा यात्रा निकालें. हम आरोपी का मुस्लिम नाम देखते ही बच्ची को न्याय दिलाने वाले देवदूत बन जाएं, फिर भी हम अपने हृदय सम्राटों से नहीं, हिरोइनों से सवाल करें. ये हमारी प्राथमिकता है.
ये नहीं बंद होने वाला. कभी नहीं बंद होने वाला. बेहद घिनौने समय में घटिया मानसिकता वालों के बीच हम जी रहे हैं. ये क्रूरता की शिकार बच्चियों के नाम रिप्लेस करके कल्पनाएं गढ़ने वालों की जय जयकार करने का समय है. ये जिम्मेदारी तय करने का नहीं, जिम्मेदारी से भागने का समय है. जिम्मेदारों को बचाने के लिए गन्दे तर्कों की ढाल रचने का समय है। हम कौन हैं, हमें पहचान लो और अपने बच्चों को हमसे दूर रखो. हम बहुत गंदे लोग हैं.
आशुतोष उज्ज्वल जी की वाल से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें