मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

श्री "भक्तमाल" के प्राकट्य की अद्भुत कथा

   
   एक बार की बात है श्री अग्रदास जी महाराज श्री सीताराम जी की मानसी सेवा में थे और श्री नाभा जी उन्हें पंखा झल रहे थे. उसी समय श्री अग्रदास जी महाराज का कोई एक शिष्य समुद्र में यात्रा कर रहा था. उसका जहाज तूफ़ान में फँस गया. उसने दीनता से गुरुदेव को याद किया. इस स्मरण का परिणाम यह हुआ कि श्री अग्रदास जी का मन प्रभु की मानसी सेवा से हटकर उस ओर चला गया. अब श्री नाभा जी की सेवा यह थी कि उनके गुरुदेव की मानसी सेवा में कोई विघ्न नहीं आये. श्री नाभा जी को सारी बात पता चल गयी जबकि यह गुरुदेव के मन की बात थी. श्री नाभा जी ने तुरंत अपने हाथ के पंखे से ऐसी हवा करी कि उस शिष्य का जहाज़ तूफ़ान से निकल कर तट पर आ गया.

श्री नाभा जी ने अपने गुरुदेव से कहा, ‘आपकी कृपा से वह शिष्य पार लग चुका है, अब आप पुनः श्री सीताराम जी के ध्यान में लग जाइये.’ यह सुनते ही श्री अग्रदास जी ने आँखें खोलकर कहा, ‘यह कौन बोला ?’ श्री नाभा जी ने बहुत सुन्दर बात कही, ‘यह वह बोला जिसको आपने सीथ प्रसाद खिला कर इतना बड़ा किया है.’ सच ! सीथ प्रसाद ने यह सिद्धि प्रदान कर दी कि ‘शिष्य का अपने गुरु के मन में प्रवेश हो गया’ और यही सबसे बड़ी बात है कि शिष्य गुरु के मन तक पहुँच जाए. केवल मन की बात ही नहीं जानी अपितु यहीं बैठे-बैठे दूर किसी शिष्य की सहायता भी कर दी.

यह बात सुनते ही श्री अग्रदास जी को बहुत प्रसन्नता हुई. उन्होंने श्री नाभा जी से कहा, ‘तुमपर साधु कृपा हो गयी है, अब तुम उनके गुणों को गाओ.’ यह सुनते ही श्री नाभा जी ने कहा, ‘भगवान श्री राम-कृष्ण के गुण गाना आसान है पर भक्तों का चरित्र कैसे गाऊं ?’ श्री गुरुदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. वहीं संत खुद तुम्हारे हृदय में आकर अपना चरित्र कह देंगे जिन्होंने तुम्हें सागर में नाव दिखा दी थी.’ इस प्रकार श्री अग्रदास जी की आज्ञा पाकर श्री नाभा जी ने यह अत्यंत कल्याणकारी ग्रन्थ ‘श्री भक्तमाल’ लिखा.

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