तेरा मजहब मेरे मजहब से
बड़ा नही हो सकता
ये सोंच जिस देश में हो
वो खड़ा नही हो सकता
पाकिस्तान, इराक, सीरिया
याद नहीं क्या तुमको
कट्टरता का शैतान रात-दिन
निगल रहा है जिनको
म्यांमार का बौद्ध भी कैसे
हिंसक होता जाता
मानों कट्टरता ते तान दिया हो
विश्व में अपना छाता
हिंदुत्व को भी कुछ स्वार्थी
करना चाहें हैं उग्र
सत्ता इनका ध्येय व सपना
इस खातिर ये व्यग्र
देश बने न पीएम से
न सीएम और न दल
नागरिकों से राष्ट्र बने
सहिष्णुता अपना बल
ताज को जो बेताज कर रहे
वो हैं दुष्ट हरामी
उनके बिगड़े बोल कर रहे
भारत की बदनामी
मुहब्बत के स्मारक को
ये हिन्दू-मुस्लिम में बांटे
जी करता ये मिलें कहीं
इन्हें नन्हा-नन्हा काटें
"राजन" कहीं ये धर्म हमें
विधर्मी न कर जाए
लुट जाए सबकुछ अपना
बस धर्म शेष रह जाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें