अइहो एहि घाट ,जब उतरि जाई पानी।।
न रही जलवा,धन ,बल जवानी।।
पत्नी द्वार ,सखा,प्रिय भाई।
आये कुशल घाट पहुचाई।।
फिर बेटवा निठुर होइ बनै अगिनदानी।।1।।
नोटन के बंडल जोड़े ,सोना ,चाँदी साथ मा।
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी,झूँठ और सांच मा।।
घाट पे लाये नाही कउनिव निसानी।।2।।
चार जने ढोए लाये,राम,राम कान दय ।
सेजिया लिटाये,मुँह घी ,गुड़ ,पान दय ।।
फिर अगिया लगाय दुलरा ,मारय बांस तानी।।3।।
नाहक न,हक मारव कउनेव भी जीव का।
प्रकृति से प्रेम करो,विभी शुद्ध भरो नीव का।।
काम करव अइसन विभी,सोऊ उजर चादर तानी।।4।।
सर्वेश पांडेय "विभी"
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