शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

गोमती बोलती है

    गोमती रिवर फ्रंट, लखनऊ। हर लखनऊ वासी करीब करीव हर दूसरे चौथे दिन इस रास्ते से जरूर गुजरता है। गोमती की लहरों नें अपने इन्ही किनारों पर आती-जाती हुकूमतों की न जानें कितनी कहानियां बनते-विगड़ते महसूस की होंगी? इन्होंने कभी अपने किनारे पर सबसे पहले शासक लक्ष्मण को अपनी निर्मल लहरों के किनारे लखनपुर की आधारशिला रखते हुए भी देखा होगा, तो कभी नवाबों की नवाबियत को भी जवान होते हुए जरूर देखा होगा। अंग्रेजों के जुल्म और उनके खिलाफ हुई बगावत की भी ये लहरे साक्षी हैं। अपनी इस गोमती की लहरों में उस दिन जरूर गज़ब की मस्ती रही होगी, जिस दिन इस देश को आज़ादी मिली होगी। 
   आज मैंने गोमती को गौर से देखा और महसूस किया। अब इसकी लहरे मरणासन्न हैं। उनमें स्पंदन तो है, लेकिन उनमें न तो कोई उमंग है और न ही कोई तरंग है। जिंदगी तो है लेकिन मौत की राह ताकती जिंदगी। ठीक वैसी जिंदगी जैसी आम यूपी वासी सत्ता के दर्जनों परिवर्तन करके और उन्हें भोग कर जी रहा है। ये अब अपने किनारों पर हुकूमते बदलने की आहटें तो महसूस करती है, लेकिन यह भी बखूबी जानती है कि इस परिवर्तन से कुछ भी परिवर्तित न होगा। 
   सुशील अवस्थी राजन जैसे थके हारे कुछ लोग उसकी आवाज़ सुन सकते हैं, लेकिन वो किसी तरह का परिवर्तन नहीं ला सकते, और जो लोग परिवर्तन ला सकते हैं, वो उसके किनारों से दूर हैं। 
   हां एक योगी के सीएम बनने की बात सुनकर इसकी लहरों में जरूर एक दिन कुछ स्फूर्ति देखी गई थी। उसे तब और सुकून मिला था, जब वह योगी उसके किनारे पर अपनी पूरी मंत्री मंडली भी ले आया था। गोमती को लगा था कि चलो किसी की मति में तो गोमति है। पर अब इसकी लहरे पहले से भी ज्यादा खामोश होकर अपने उस योगी की प्रतीक्षा कर रही है, जो गोमती से ज्यादा सम्मति होकर गुम हो गया है। गोमती को आज मैंने बुदबुदाते हुए सुना जिसमें वो कह रही थी कि "वो आएगा, वो जरूर आएगा, भले ही मेरे जीते जी न सही, पर मौत पर मातम करने तो जरूर आएगा, क्योंकि वो अब योगी से राजनेता जो हो गया है।

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