ये आडवाणी जी हैं। भाजपा की भीड़ और आयातित नेताओं की भीड़ भरी राजनीति में एकदम तन्हा। आजकल आडवाणी जी वाराणसी में अपने अज्ञातवास के कुछ दिन काटने आये हैं।
आज की मोदी वाली भाजपा के निर्माण में आडवाणी की भूमिका को भला कौन नज़रन्दाज़ करेगा? "भारत माँ की तीन धरोहर, अटल आडवाणी मुरली मनोहर" नारा मुझे आज भी याद है। इन धरोहरों को कुछ स्वार्थी, तानाशाह, औरंगजेबी तहजीब के कर्ताधर्ता षड्यंत्रवश खंडहरों में तब्दील कर दिए हैं।
अटल बिहारी बीमार है, लेकिन मुरली मनोहर और आडवाणी तो स्वस्थ हैं। लेकिन भाजपा अपने इन पितामहों के साथ जो बर्ताव कर रही है, वह राम दर्शन नहीं बल्कि औरंगजेबी और अलाउद्दीन खिलजी दर्शन से प्रेरित है। सत्ता के लिए अपने बुजुर्गों और परिजनों को कुर्बान करना भला ये राम दर्शन है क्या?
राम ने न सिर्फ अपने बुज़ुर्ग पिता के लिए सत्ता ठुकराई बल्कि वृद्ध शबरी, शरभंग और जटायु के लिए अपना विशेष प्यार भी दर्शाया। जबकि औरंगजेब, खिलजी और रावण सत्ता के लिए अपने वृद्धों और परिजनों को प्रताड़ित करते रहे। नई भाजपा का कर्म किसका अनुसरण कर रहा है, खिलजी, औरंगजेब रावण का या राम का आप ही तय करें। राम सिर्फ यहां जुमलों में दिखते हैं जबकि औरंगजेब कर्म में।
स्वार्थी संसार अब सिर्फ स्वार्थ देखता है।
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