गुरुवार, 20 जुलाई 2017

सिर्फ बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ या फिर उसके हौसले भी बढ़ाओ?


"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" एक अच्छा नारा है
मैं तो कहूंगा कि बेटियों के हौसले भी बढ़ाओ
एक तेज़ तर्रार पुलिस अधिकारी को 
ट्रांसफर की सजा
सिर्फ इसलिए कि उसने
सत्ताधारियों का प्रेसर
अपने सर पर नहीं धारण किया
काटे चालान
तोडा अहंकार
हेंकड़ सत्ताधारियो का
इस बेटी को मिलना चाहिये था इनाम
मिली सजा
क्या ये कथनी करनी का भेद नहीं?
इंदिरा के काफिले की गाड़ी का भी
कटा था चालान
काटा था एक बेटी नें
बढ़ाया गया था हौसला
दिया गया था सम्मान
उस बेटी को मिली थी पहचान
किरण बेदी के रूप में
कथनी और करनी को एक करना ही
"योग" है
अगर आप हैं योगी
तो इस योग को दीजिये महिमा
आप तो पीटी को योग मान बैठे है "राजन"

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