(सुशील अवस्थी "राजन") कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में बढ़ रही नजदीकियां आनें वाले 2014 के लोकसभा चुनाओं में अपना असर जरुर डालेंगी। कन्नौज से लोकसभा उप चुनाव का सामना कर रही समाजवादी बहू डिम्पल यादव के खिलाफ अपना प्रत्याशी न उतारनें का फैसला कर कांग्रेस नें इन नजदीकियों को और फलनें-फूलनें का सुनहरा अवसर उपलब्ध कराया है। वर्तमान राजनीतिक हालातों के मद्देनजर दोनों पार्टियाँ एक दूसरे का अमूल्य सहयोग चाह रही हैं। कांग्रेस जहाँ केंद्र में अपनी स्थिति मजबूत बनाये रखनें और मन चले सहयोगी दलों पर दबाव बनाये रखनें के लिए समाजवादी पार्टी का इस्तेमाल करना चाह रही है, वहीँ समाजवादी पार्टी भी उत्तर प्रदेश में नवस्थापित अपनी सरकार के लिए केंद्र का अभयदान चाह रही है।
इस खट्टी मीठी दोस्ती से कौन दल सबसे ज्यादा फायदे में रहेगा राजनीती के जानकारों के बीच आज कल यही मुद्दा सर्वाधिक चर्चा में है। समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों को जिस एक बात को अपनें दिमाग में रखनें की जरुरत है, वह यह है कि देश का आम आदमी आजकल इस कांग्रेस से काफी चिढ़ा हुआ है। छोटे-छोटे समीकरण साधनें के चक्कर में समाजवादी पार्टी कहीं सबसे बड़ा समीकरण लक्ष्य 2014 न गँवा बैठे। क्योंकि कांग्रेस से दोस्ती गाँठ कर बहुत कम दल फायदे में रहे हैं। वामपंथी पार्टियों से लेकर लालू पासवान तक इस बात को ठीक से जानते हैं। इसीलिये ममता दीदी इस सरकार में शामिल होते हुए भी कभी इस सरकार के प्रति नरम नहीं रहती हैं, क्योंकि वे इस बात को ठीक से समझती हैं कि इस केंद्र सरकार के प्रति नरम रुख रखनें का मतलब जनता के कड़े रुख का सामना करना है। (मोबाइल -9454699011)
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