नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव-2014 में एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का
दावेदार कौन होगा? यह इस समय सबसे बड़ा सवाल बन गया है। भाजपा की अगुआई वाले
एनडीए के लिए यह सवाल अस्तित्व का सवाल भी है। दूसरे सबसे बड़े गठबंधन
यूपीए ने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उनके पास राहुल गांधी के रूप में
तुरुप का इक्का मौजूद है। एनडीए का क्या होगा? उसके पास न तो इक्का है और
ना ही दुक्का। भाजपा के सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी को अब इस काबिल नहीं
माना जा रहा है कि वे फ्रंट फुट पर खेल सकें। उनके अलावा भाजपा के पास अधिक
विकल्प नहीं हैं। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज जैसे नेता उतनी कद्दावर छवि
नहीं रखते कि पीएम कैंडिडेट के रूप में एनडीए को लीड दिला सकें।
मोदी पर करना होगा एनडीए को फैसला :
कुलमिलाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सभी ने रास्ता
साफ कर रखा है। पीएम इन वेटिंग के रूप में मोदी ने आडवाणी को बहुत पहले ही
रिप्लेस कर दिया था। हालांकि इसे लेकर एकमत से भाजपा या एनडीए ने इससे पहले
तक कभी कुछ नहीं कहा था। जैस-जैसे 2014 नजदीक आने लगा भाजपा के ऊपर एकमत
से निर्णय लेने और स्थिति साफ करने का दबाव बढ़ता गया। मोदी भी उतने ही
व्याकुल होते गए। नतीजा कुछ दिनों पहले देखने को मिला, जब मोदी ने
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आने से इंकार कर दिया। बंदूक उन्होंने
भले ही संजय जोशी के कंधे पर रखी, लेकिन निशाने पर पीएम पद की दावेदारी ही
थी। आडवाणी और गडकरी समेत पूरी भाजपा लगभग नतमस्तक हो गई और मोदी यह संदेश
देने में कामयाब हुए कि अब वही पीएम इन वेटिंग हैं। भाजपा में तो उन्होंने
बलपूर्वक अपनी बात मनवा ली या शायद भाजपा चाहती भी यही थी और उसे किसी
बहाने-मौके का इंतजार था, लेकिन एनडीए में केवल भाजपा की ही नहीं चलती है,
इस बात का अहसास बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार ने तुरंत
करा दिया। अब एनडीए को मोदी पर फौरन फैसला करना होगा। अपना स्टेंड बताना
होगा कि उसका पीएम कैंडिडेट कौन होगा।
नीतीश बनना चाहते हैं पीएम :
नीतीश ने साफ कर दिया कि जद-यू 'सेक्युलर प्रधानमंत्री' यानी
हिंदुत्ववादी मोदी को एनडीए का पीएम केंडिडेट कतई स्वीकार नहीं करेगी।
दरअसल नीतीश भी पीएम की दावेदारी के रूप में खुद को मजबूत रूप से सामने
लाना चाहते हैं। उन्हें यह अच्छे से पता है कि एनडीए में कितनी जान है।
उन्हें मालूम है कि भाजपा अपने बूते चुनाव में नहीं ठहर सकती। लिहाजा,
उन्हें भाजपा की अंदरूनी उठापटक ने अपना दावा पेश करने का बेहतरीन मौका दे
दिया। नीतीश के इस मूव के बाद अब भाजपा-जदयू गठबंधन टूट की कगार पर आ गया
है।
संघ खुलकर मोदी के सपोर्ट में :
वहीं, मोदी को लेकर संघ का रुख भी इस घटनाक्रम के बाद स्पष्ट हो गया।
नीतीश के बयान पर संघ ने पलटवार किया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि
आखिर क्यों न हो हिंदुत्ववादी प्रधानमंत्री। क्या नीतीश बताएंगे सेक्युलर
पीएम कौन था। संघ के इस रुख को सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री
पद के दावे के समर्थन के रूप में माना जा रहा है। संघ ने कहा कि नीतीश बता
दें कि आज तक कौन सा प्रधानमंत्री सेक्युलर था। भावी प्रधानमंत्री की
धर्मनिरपेक्षता पर नीतीश के वक्तव्य पर कड़ा ऐतराज जताते हुए राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ [संघ] प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि नीतीश को यह
बताने की जरूरत नहीं है कि कौन धर्मनिरपेक्ष है। उन्होंने आगे सवाल किया कि
क्या आज तक के प्रधानमंत्री धर्मनिरपेक्ष नहीं थे? साथ ही उन्होंने कहा कि
अगला प्रधानमंत्री हिंदुत्ववादी होने में हर्ज क्या है? भागवत संघ
कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। भागवत ने कहा कि नीतीश अपना वोट बैंक
बढ़ाने के लिए इस तरह की चाल चल रहे हैं। वहीं भाजपा ने कहा कि नीतीश का यह
रुख एनडीए के लिए नई मुश्किल खड़ी कर सकता है।
समझौते के मूड में नहीं जद-यू :
नीतीश पर संघ के पलटवार के बाद जदयू प्रवक्ता शिवानंद तिवारी ने मोदी
पर सीधे हमला बोल दिया। कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में यदि एनडीए में मोदी
नहीं होते तो केंद्र में सरकार एनडीए की होती। धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री
के सवाल पर तिवारी ने कहा कि यह पूरे देश का मामला है सिर्फ गुजरात का
नहीं, हम इस पर समझौता नही कर सकते।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें