नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में करारी शिकस्त से पस्त कांग्रेस और भाजपा के
बाद मुख्य विपक्षी दल बसपा ने भी कन्नौज के संसदीय उपचुनाव में
मुख्यमंत्री अखिलेश की पत्नी डिंपल के सामने चुनाव लड़ने से तौबा कर ली है।
इसे चाहे केंद्रीय सियासत की मजबूरी कहें या फिर प्रदेश की जमीनी हकीकत को
स्वीकार करना, कांग्रेस ने इस दफा मुलायम सिंह की बहू के सामने अपना
उम्मीदवार तक नहीं उतारा। वरना तो 2009 के फिरोजाबाद उपचुनाव में परंपरा
तोड़कर राहुल गांधी डिंपल के खिलाफ प्रचार तक करने गए थे। इससे पहले
उपचुनावों में गांधी परिवार चुनाव प्रचार में जाने से बचता रहा है।
वहीं भाजपा भी शायद सपा से सीधे टकराने से बच रही है। लिहाजा प्रत्याशी
न उतारने का फैसला लिया गया है। 2009 के लोस चुनाव में मैनपुरी से मुलायम
सिंह यादव के खिलाफ कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं उतारा था लेकिन, बाद में
फिरोजाबाद सीट पर डिंपल के खिलाफ न सिर्फ सपा के बागी राज बब्बर को चुनाव
लड़ाया, बल्कि पूरी ताकत भी झोंकी थी। उस समय कांग्रेस ने लोस चुनाव में
यूपी में अप्रत्याशित प्रदर्शन किया था, लेकिन इस दफा विस चुनाव के बाद
हालात उलट हैं। यूपी और कन्नौज में कांग्रेस के लिए कोई संभावना तो है
नहीं, उल्टे राष्ट्रपति चुनाव समेत केंद्र में कांग्रेस की निर्भरता सपा पर
बढ़ी हुई है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव
दिग्विजय सिंह ने कन्नौज में प्रत्याशी न उतारे जाने का एलान किया।
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व चाहता था कि
प्रतीकात्मक ही सही, लेकिन सपा को वॉकओवर नहीं दिया जाना चाहिए। इस कड़ी में
कोई कमजोर प्रत्याशी उतारने की सलाह भी दी गई थी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व
ने चुनाव से दूर रहने में ही भलाई समझी। दूसरी तरफ केंद्र में मुख्य
विपक्षी दल भाजपा भी काफी सोच-विचार के बाद वॉकओवर देने में ही भलाई मान
रही है। भाजपा को डर यह है कि कमजोर उम्मीदवार उतारने से पार्टी का खोखलापन
उजागर होगा। लिहाजा भाजपा की ओर से भी चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी गई है।
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