विश्व बैंक का अनुमान है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में
भारतीय अर्थव्यवस्था नीतिगत अनिश्चितताओं, वित्तीय घाटे और मुद्रास्फीति
जैसी समस्याओं के बीच 6.9 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी.बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि विकासशील देशों को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ेगा.'वैश्विक आर्थिक पूर्वानुमान' शीर्षक
से जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत की वृद्धि दर 2012-13
में 6.9 प्रतिशत, 2013-14 में 7.2 प्रतिशत और 2014-15 में 7.4 प्रतिशत
रहेगी.”
विश्व बैंक ने 2011 के घटनाक्रम की तरफ इशारा करते
हुए कहा है कि भारत में मौद्रिक नीति, रुके पड़े आर्थिक सुधारों और बिजली
की किल्लत की वजह से आर्थिक वृद्धि कमजोर है. इसके अलावा वित्तीय और
मुद्रास्फीति की चिंताओं के कारण निवेश गतिविधियों में भी कमी आई है.
आंकड़ों में उलझी अर्थव्यवस्था
मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में
भारत की औद्योगिक उत्पादन दर मामूली वृद्धि के साथ 0.1 प्रतिशत रही, जिसे
लेकर सरकार ने निराशा जताई है और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कदम
उठाने का वादा किया है.
वर्ष 2011-12 में भारत की आर्थिक वृद्धि घट कर 6.5
प्रतिशत हो गई जो बीते नौ साल में सबसे कम है जबकि इससे पहले दो वर्षों
में अर्थव्यवस्था ने 8.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि की थी.
"दक्षिण एशिया में 2011 के दौरान वृद्धि दर घट कर 7.1 प्रतिशत हो गई जो 2010 में 8.6 प्रतिशत थी."
विश्व बैंक की रिपोर्ट
मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार को उम्मीद है कि
वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत होगी, हालांकि वैश्विक अनिश्चितताओं और घरेलू
मुश्किलों को देखते हुए ये लक्ष्य बहुत बड़ा साबित हो सकता है.विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, “दक्षिण एशिया में 2011 के दौरान वृद्धि दर घट कर 7.1 प्रतिशत हो गई जो 2010 में 8.6 प्रतिशत थी.”
'संकटजोन यूरोजोन'
घटती आर्थिक वृद्धि दर की एक वजह यूरोजोन में जारी संकट के कारण निर्यात में आने वाली कमी को माना जा रहा है.मौजूदा वित्त वर्ष में वैश्विक अर्थव्यवस्था 2.5 प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ेगी.
विश्व बैंक का कहना है कि विकासशील देशों को
वैश्विक अर्थव्यवस्था में लंबे समय तक चलने वाली उथल-पुथल के लिए तैयार
रहना होगा. इसके लिए खास तौर से मध्यम अवधि वाली विकास रणनीतियों पर ध्यान
देना होगा.
यूरोप में जारी आर्थिक संकट का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर साफ तौर पर दिख रहा है.विश्व बैंक का अनुमान है कि विकासशील देशों की
अर्थव्यवस्थाएं 5.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर सकती हैं जो 2011 में दर्ज
की गई 6.1 प्रतिशत की दर से खासी कम है.
बेहाल दुनिया
रिपोर्ट में नीति निर्माताओं से आग्रह किया गया है कि वे सतत वृद्धि को बनाए रखने के लिए दीर्घकालीन कदम उठाएं.विश्व बैंक की ये चेतावनी ऐसे समय में आई जब
यूरोजोन का कर्ज संकट क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं स्पेन और
इटली तक भी फैल रहा है.इन देशों के लिए कर्ज लेने की लागत बहुत बढ़ गई है जिससे ये चिंताएं पैदा हो गई हैं वे अपने कर्ज चुका भी पाएंगे या नहीं.अगर संकट बढ़ता है तो यूरोप में निवेश पर बुरा असर होगा जिससे मांग भी घटेगी.दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में
भी वृद्धि दर सिमट रही है जिसकी बड़ी वजह आर्थिक तंगी जेल रहे अमरीका और
यूरोप में मांग का घटना है क्योंकि चीनी अर्थव्यवस्था काफी हद तक निर्यात
पर निर्भर है.
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