अहमदाबाद। उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के बाद गुजरात विधानसभा
चुनाव पर अपनी नजरें गड़ाए बैठी समाजवादी पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी को तानाशाह करार दिया है।
गुरुवार को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की जगह यहा पहुंचे सपा महासचिव
रामजीलाल सुमन ने यह राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वर्ष 2002 में हुए दंगे
भी राज्य सरकार द्वारा ही प्रायोजित थे। सुमन ने गुजरात में हो रहे विकास
कायरें को दिखावा मात्र करार देते हुए कहा कि यहा विकास महज आकड़ों में हैं।
असलियत तो यह है कि गरीब किसानों की जमीनें हड़पी जा रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दीपावली के बाद गुजरात आएंगे।
पेट्रोल के बढ़े दामों के विरोध के बहाने सपा ने गुजरात में अपनी नई
राजनीतिक पारी की शुरुआत कर दी है। मुलायम वर्ष 2002 में दंगा पीड़ितों से
मुलाकात के लिए गुजरात आए थे। अपनी उस यात्रा के दौरान नेताजी ने दंगा
पीड़ितों के केंद्र बने जूहापूरा इलाके में तथा अलग अलग अस्पतालों में जाकर
दंगा पीड़ितों से मुलाकात की थी। गुजरात सपा अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह यादव बताते है कि सपा गत विधानसभा
में 26 सीट पर तथा लोकसभा में 18 सीट पर चुनाव लड़ा था। उनके प्रत्याशियों
को अच्छे मत मिले थे। लेकिन सपा नेताओं के ही नहीं आने के कारण कोई
प्रत्याशी जीत नहीं पाया था। उत्तर प्रदेश में सपा की जबर्दस्त जीत के बाद
अब सपा देश के अन्य राज्यों में भी पाव पसार रही है।
गुजरात के औद्योगिकक्षेत्र अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, वापी, भरूच,
अंकलेश्वर व राजकोट आदि शहरों में हिन्दी भाषी बड़ी संख्या में है। इनमें
उत्तर प्रदेश व बिहार के लोगों की संख्या खासी है। अकेले अहमदाबाद व सूरत
में तीस लाख से अधिक हिन्दी भाषी लोग रहते है जिन्हे अपने साथ जोड़ना सपा का
पहला लक्ष्य है।
सुरेंद्र सिंह यादव ने कहा कि राज्य में सपा के तीस से चालीस हजार
कार्यकर्ता है। समाजवादी पार्टी के गुजरात आने की तैयारियों से प्रदेश
काग्रेस भी पूरी तरह बेपरवाह है। प्रवक्ता मनीष दोशी का कहना है कि राज्य
में दो दलीय व्यवस्था स्वीकार्य है तीसरी ताकत के लिए यहा कोई जगह नहीं है।
पहले जनसंघ, राजपा व जनता दल गुजरात यह प्रयोग कर चुकेहै लेकिन बाद में
राष्ट्रीय दलों में शामिल हो जाना पड़ा है।
उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद एक बार फिर काग्रेस महासचिव एवं सासद राहुल
गाधी व सपा नेता अखिलेश गुजरात में आमने सामने होंगे। उप्र में सपा की
प्रचंड जीत के बाद से अखिलेश के हौंसले निस्संदेह बुलंद होंगे लेकिन गुजरात
में कैडर की कमी उन्हे जरूर खलेगी जबकि राहुल पिछले दो चुनावों से गुजरात
में सक्रिय हैं।
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