नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने
पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के कुछ फैसलों पर खुली नाराजगी जताते हुए कहा
कि उनकी पार्टी को अंतरावलोकन करने की जरूरत है, क्योंकि जनता अगर संप्रग
से परेशान हो चुकी है और भाजपा से भी निराश है।
आडवाणी ने उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना
कर रहे बसपा के कुछ नेताओं को पार्टी में शामिल करने के गडकरी के फैसले की
आलोचना करते हुए अपने ब्लाग में लिखा है कि इन दिनों पार्टी के भीतर मूड
उत्साहवर्धक नहीं है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के परिणाम, भ्रष्टाचार के आरोप
में मायावती द्वारा निकाले गए मंत्रियों का भाजपा में स्वागत किया जाना,
झारखड और कर्नाटक के मामलों से निपटने के तरीके समेत कई घटनाओं ने
भ्रष्टाचार के विरूद्ध पार्टी के अभियान को कुंद किया है।
गौरतलब है कि एनआरएचएम घोटाले के आरोप में मायावती द्वारा मंत्री पद से
हटाए गए बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल किए जाने का फैसला गडकरी ने
किया था। कहा जाता है उस समय भी आडवाणी सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने इसका
विरोध किया था।
पार्टी के हालात से काफी आहत नजर आ रहे आडवाणी ने लिखा है कि अगर आज
जनता संप्रग सरकार से क्रोधित है तो वह हमसे भी निराश है। यह स्थिति
अंतरावलोकन की माग करती है। उन्होंने कहा कि मीडिया ने एक के बाद एक घोटाले
के लिए संप्रग सरकार को कटघरे में खड़ा किया, लेकिन उसके साथ ही उसने इस
बात पर भी उसने खेद जताया कि भाजपा के नेतृत्व वाला राजग उभरती परिस्थिति
में खरा नहीं उतरा। आडवाणी ने कहा कि स्वयं पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं
मानता हूं कि मीडिया जनता की भावना को सही तरह से पेश कर रहा है।
भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष ने अपने ब्लाग में हाल में संपन्न संसद के
बजट सत्र के दौरान लोकसभा और राज्यसभा में क्रमश: सुषमा स्वराज और अरूण
जेटली के नेतृत्व में भाजपा के प्रदर्शन की सरहाना करते हुए उसे शानदार
बताया। उन्होंने इस बात पर भी संतोष जताया कि पार्टी आज नौ राज्यों में
सत्ता में है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा, 'लेकिन इसे हमारे द्वारा बरती गई चूकों का
क्षतिपूर्ति नहीं माना जा सकता है।' उन्होंने कहा कि 1984 का वर्ष उनके लिए
सबसे अधिक निराशाजनक था, जब उनकी अध्यक्षता में लड़े गए लोकसभा चुनाव में
भाजपा को केवल दो सीट मिली थीं। उन्होंने लिखा है, 'तब मैं पार्टी अध्यक्ष
था और अत्याधिक उदास था।'
आडवाणी ने कहा कि तब चुनाव परिणामों का विशलेषण करने के लिए समिति बनी
और उसने पाया कि इतने खराब नतीजे होने के बावजूद पार्टी कार्यकर्ताओं और
समर्थकों में निराशा नहीं थी, क्योंकि उनका मानना था कि काग्रेस को इंदिरा
गाधी की हत्या की सहानुभूति का लाभ मिला है।
उन्होंने कहा, लेकिन इन दिनों पार्टी में मूड उत्साहवर्धक नहीं है।
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