चीन की अर्थव्यवस्था में मई में और गिरावट दर्ज की गई
है. देश के कारखानों से उत्पादन कम हुआ है जिससे घरेलू और विदेशों में
आपूर्ति पर असर पड़ा है.
चीन के पड़ोसी मुल्क दक्षिण कोरिया के भी हालात
अच्छे नहीं हैं. आंकड़े बताते हैं कि दक्षिण कोरिया से होने वाले निर्यात
में भी गिरावट आई है.
दक्षिण कोरिया से अमरीका, यूरोप और चीन जाने वाले सामान की खेप कम हो गई है.
चीन के निर्माण क्षेत्र में गिरावट निवेशकों के
लिए खासतौर पर चिंता का सबब है क्योंकि हाल के वर्षों में चीन ने दुनियाभर
की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में योगदान दिया है.
निवेशकों की चिंता
विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि चीन की सालाना विकास दर इस साल की दूसरी तिमाही में गिरकर 7.9 प्रतिशत तक हो सकती है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, यदि ऐसा हुआ तो वर्ष 2009 के बाद चीन की विकास दर पहली बार आठ प्रतिशत से नीचे जाएगी.
यूरो मुद्रा में बीते 23 महीनों की सबसे ज्यादा
गिरावट देखी गई है. जापान के शेयर भी लगातार नौवें हफ्ते लुढ़क रहे हैं.
जापान में बीते 20 साल में ऐसा नहीं हुआ.
एचएसबीसी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत का
निर्माण क्षेत्र अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है जहां कारखानों में सतत रूप
से उत्पादन हो रहा है. संकेत मिला है कि भारत के निर्माण क्षेत्र में
ठीकठाक बढोत्तरी हो रही है.
एशियाई बाजारों पर असर
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, चीन के निर्माण
क्षेत्र में गिरावट की वजह से शुक्रवार को एशियाई शेयर बाजारों में भी
गिरावट दर्ज की गई है.
"वित्तीय घाटे पर बढ़ते असंतुलन को कम करने के लिए सरकार तमाम जरूरी उपाये करेगी. इससे बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने और घरेलू निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी"
प्रणब मुखर्जी
जापान के निक्केई में 0.7 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया
के कोस्पी में 0.2 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया के एस एंड पी में भी 0.3 प्रतिशत
की गिरावट दर्ज की गई है. इंडोनेशिया और न्यूजीलैंड के बैंचमार्क भी गिरे
हैं.
लेकिन हांगकांग और चीनी शेयर थोड़े चढ़े हैं क्योंकि निवेशकों को भरोसा है कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के उपाय करेगा.
बहरहाल अभी तक ये तय नहीं हो पाया है कि यूरोप के कर्ज संकट से कैसे निपटा जाएगा.
भारत में भी गिरावट
डॉलर के मुकाबले रूपए की कीमत में मार्च से लेकर
अब तक 13 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पिछले सप्ताह गुरूवार को एक डॉलर 56.38
रूपए के बराबर हो गया था जो अभी तक रूपए का न्यूनतम मूल्य है.
भारत की विकास दर वर्ष 2011-12 के दौरान 6.5 प्रतिशत पर आ गई जो नौ वर्ष में सबसे कम है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसे निराशाजनक
बताते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि सरकार इस दिशा में
जरूरी कदम उठाएगी.
प्रणब मुख्रजी ने एक बयान में कहा, ''वित्तीय घाटे
पर बढ़ते असंतुलन को कम करने के लिए सरकार तमाम जरूरी उपाय करेगी. इससे
बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने और घरेलू निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी.''
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