नई दिल्ली. चतरा (झारखंड) से सांसद और झारखंड विधानसभा के स्पीकर रह चुके इंदर सिंह नामधारी ने आज के निर्मल बाबा का अतीत बताया है। बाबा के बारे में कहीं कोई निजी जानकारी आम नहीं है। ऐसे में नामधारी के हवाले से निर्मल बाबा के सच को पूरी दुनिया जान सकती है। बाबा नामधारी के छोटे साले हैं। बुरे दिनों में नामधारी ने उनकी काफी मदद की है।
आज निर्मल बाबा के दुनिया भर में लाखों भक्त हैं, लेकिन उनके जीजा नामधारी को उनका तरीका पसंद नहीं आता। नामधारी का दावा है कि निर्मल बाबा उनकी बात नहीं मानते हैं। इस मुद्दे पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए नामधारी ने कहा, 'मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए। बात अगर निर्मल बाबा की ही करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु पहुंचेंगे। फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है? जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो। मैंने उससे (निर्मल बाबा) कई बार कहा है कि वह टीवी पर न आया करे। लेकिन वह मेरी बात मानता ही नहीं है। अगर कोई रिश्तेदार आपकी बात न माने तो आप क्या कर सकते हैं?'
गौरतलब है कि निर्मल बाबा देश के लगभग हर प्रमुख टीवी चैनल पर अपना विज्ञापन कराते हैं। हालांकि हाल के दिनों में उन पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने के आरोप भी खूब लग रहे हैं। लखनऊ में उनके खिलाफ पुलिस में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई है।
बकौल इंदर सिंह नामधारी, '1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल के थे। पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी। इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें। 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये। 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे। उसी वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये।' 1981-82 तक वह मेदिनीनगर में रह कर व्यवसाय करते थे। चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था। लेकिन आज जो उनका चमत्कारिक कायाकल्प हुआ, उस बारे में उनके करीबी भी ज्यादा बात करना नहीं चाहते।
नामधारी ने मीडिया को बताया है कि निर्मल ने 1998-99 में बहरागोड़ा (झारखंड) में माइंस की ठेकेदारी ली थी। इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये। नामधारी ने बाबा के 'चमत्कारिक कायाकल्प' के बारे में इससे ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया।
निर्मल बाबा के परिवार के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वह दो भाई हैं। बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं। निर्मल बाबा छोटे हैं। मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई। उनके एक बेटा और एक बेटी है। 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था।
नकली भक्तों को सवाल पूछने के दस हजार देते थे निर्मल बाबा!
36 चैनलों पर 25 घंटे रोज चलता है 'निर्मल दरबार'
आज निर्मल बाबा के दुनिया भर में लाखों भक्त हैं, लेकिन उनके जीजा नामधारी को उनका तरीका पसंद नहीं आता। नामधारी का दावा है कि निर्मल बाबा उनकी बात नहीं मानते हैं। इस मुद्दे पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए नामधारी ने कहा, 'मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए। बात अगर निर्मल बाबा की ही करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु पहुंचेंगे। फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है? जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो। मैंने उससे (निर्मल बाबा) कई बार कहा है कि वह टीवी पर न आया करे। लेकिन वह मेरी बात मानता ही नहीं है। अगर कोई रिश्तेदार आपकी बात न माने तो आप क्या कर सकते हैं?'
गौरतलब है कि निर्मल बाबा देश के लगभग हर प्रमुख टीवी चैनल पर अपना विज्ञापन कराते हैं। हालांकि हाल के दिनों में उन पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने के आरोप भी खूब लग रहे हैं। लखनऊ में उनके खिलाफ पुलिस में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई है।
बकौल इंदर सिंह नामधारी, '1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल के थे। पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी। इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें। 1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये। 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे। उसी वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये।' 1981-82 तक वह मेदिनीनगर में रह कर व्यवसाय करते थे। चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था। लेकिन आज जो उनका चमत्कारिक कायाकल्प हुआ, उस बारे में उनके करीबी भी ज्यादा बात करना नहीं चाहते।
नामधारी ने मीडिया को बताया है कि निर्मल ने 1998-99 में बहरागोड़ा (झारखंड) में माइंस की ठेकेदारी ली थी। इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये। नामधारी ने बाबा के 'चमत्कारिक कायाकल्प' के बारे में इससे ज्यादा कुछ बोलने से इनकार कर दिया।
निर्मल बाबा के परिवार के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वह दो भाई हैं। बड़े भाई मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं। निर्मल बाबा छोटे हैं। मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी हुई। उनके एक बेटा और एक बेटी है। 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का परिवार भारत आ गया था।
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36 चैनलों पर 25 घंटे रोज चलता है 'निर्मल दरबार'
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