श्रीहरिकोटा [आंध्र प्रदेश]। अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और मील का पत्थर
हासिल करते हुए भारत ने सभी मौसमों में धरती की तस्वीर लेने में सक्षम
अपने पहले स्वदेश निर्मित राडार इमेजिंग उपग्रह आरआइसेट-1 का सफल प्रक्षेपण
किया। इससे देश की दूर संवेदी क्षमता में इजाफा होगा और कृषि तथा आपदा
प्रबंधन के क्षेत्र में मदद मिलेगी।
इस उपग्रह के सटीक प्रक्षेपण से भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में
शामिल हो गया है जिनके पास राडार के जरिए तस्वीरें लेने वाली स्वदेशी
प्रौद्योगिकी है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम के निदेशक
पीएस वीरराघवन ने कहा, 'अब तक यह प्रौद्योगिकी केवल अमेरिका, कनाडा, जापान
और यूरोपीय संघ के पास थी।'
प्रक्षेपण की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जटिल
प्रक्षेपण वाहन प्रौद्योगिकी में महारत साबित करने के लिए इसरो के
वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में यह एक
महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
चेन्नई से करीब 90 किलोमीटर दूर यहां के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से
पीएसएलवी [पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल] के जरिए 1858 किलोग्राम वजनी देश के
पहले 'माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग' उपग्रह को 71 घंटे तक चली उल्टी गिनती के
बाद सुबह करीब पांच बजकर 47 मिनट पर प्रक्षेपण के लगभग 19 मिनट बाद कक्षा
में स्थापित कर दिया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] के
प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवी ने आरआइसेट-1 के प्रक्षेपण के साथ अपनी 20 सफल
उड़ानें पूरी कर एक बार फिर अपनी विश्वसनीयता स्थापित की है। इसके द्वारा
प्रक्षेपित किया गया यह अब तक सबसे भारी उपग्रह है।
आरआइसेट-1 इसरो के लगभग 10 साल के प्रयासों का नतीजा है। इसके पास दिन
एवं रात तथा बादलों की स्थिति में भी धरती की तस्वीरें लेने की क्षमता है।
अब तक भारत कनाडाई उपग्रह की तस्वीरों पर निर्भर था क्योंकि मौजूदा घरेलू
दूरसंवेदी उपग्रह बादलों की स्थिति में धरती की तस्वीरें नहीं ले सकते थे।
इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने कहा कि 44 मीटर लंबा रॉकेट शानदार ढंग
से उड़ान भरते हुए आकाश में प्रवेश कर गया। उन्होंने इस मिशन को एक बड़ी
सफलता करार दिया। उपग्रह के कक्षा में स्थापित होते ही नियंत्रण कक्ष में
बैठे वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई।
प्रसन्नचित दिख रहे राधाकृष्णन ने कहा, 'मुझे यह घोषणा करते हुए अत्यंत
खुशी हो रही है कि पीएसएलवी सी-19 मिशन एक बड़ी सफलता है। हमारे पीएसएलवी
की यह लगातार 20वीं सफल उड़ान है। इसने भारत के पहले राडार इमेजिंग सैटेलाइट
को सटीक रूप से वांछित कक्षा में स्थापित कर दिया।' भारत ने 2009 में सभी
मौसमों में काम करने वाले एक अन्य राडार इमेजिंग उपग्रह आरआइसेट-2 का
प्रक्षेपण किया था, लेकिन इसे निगरानी उद्देश्यों के लिए इजरायल से 11 करोड़
अमेरिकी डॉलर में खरीदा गया था।
मिशन के निदेशक पी कुन्हीकृष्णन ने बताया कि आरआइसेट-1 अत्याधुनिक नए
मिशन नियंत्रण केंद्र के जरिए प्रक्षेपित किया गया। इस केंद्र का उद्घाटन
जनवरी में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया था।
आरआइसेट-1 का प्रक्षेपण मार्च में किया जाना था, लेकिन इसरो विवाद,
एंट्रिक्स-देवास सौदे में चार पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के खिलाफ
दंडात्मक कार्रवाई के चलते इसकी तैयारियों में विलंब हो गया।
इसरो ने आज के प्रक्षेपण के लिए पीएसएलवी के अत्याधुनिक संस्करण
पीएसएलवी-एक्स एल का इस्तेमाल किया। एक्स एल संस्करण का इस्तेमाल इससे पहले
चंद्रयान-1 और जीसेट-12 अभियानों के लिए किया गया था।
विकास सहित आरआइसेट-1 की लागत 378 करोड़ रुपये है, जबकि 120 करोड़ रुपये
रॉकेट [पीएसएलवी सी-519] के निर्माण पर खर्च हो चुके हैं। इस तरह यह 498
करोड़ रुपये का मिशन है।
उपग्रह 536 किलोमीटर की ऊंचाई पर इसकी अंतिम कक्षा में स्थापित किया
जाएगा। इसकी मिशन अविध पांच साल है और यह रोजाना कक्षा में 14 चक्कर
लगाएगा।
कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल के अतिरिक्त आरआइसेट-1 को 24 घंटे देश की
सीमाओं की निगरानी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसरो ने कहा
था कि उपग्रह को रक्षा क्षेत्र के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। मुख्यत:
जासूसी उपग्रह आरआइसेट-2 पहले से ही यह काम कर रहा है।
धुंध एवं कोहरे सहित सभी मौसमों में तस्वीरें लेने की आरआइसेट-1 की
क्षमता उन क्षेत्रों के लिए काफी लाभकारी होगी जो अक्सर बादलों से ढके रहते
हैं। इसमें सभी परिस्थितियों में तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए 'सी बैंड
सिंथेटिक अपर्चर राडार' [एसएआर] लगा है।
एसएआर कृषि क्षेत्र, खासकर खरीफ सत्र में धान की फसल पर निगरानी और
बाढ़ एवं चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन क्षेत्र में निगरानी
रखने की अद्वितीय क्षमताओं से लैस है।
उपग्रह खासकर खरीफ के सत्र में लाभदायक होगा जब वातावरण में अक्सर बादल
छाए रहते हैं। इसके जरिए ली जाने वाली फसलों की तस्वीरों से योजनाकारों को
उत्पादन के आकलन और पूर्वानुमान व्यक्त करने में मदद मिलेगी।
बाढ़ के दौरान उपग्रह से ली जाने वाली तस्वीरें प्रभावित क्षेत्र और जल
स्तर का स्पष्ट ब्यौरा उपलब्ध करा सकेंगी। राधाकृष्णन ने कहा कि इसरो के
लिए वर्ष 2012-13 काफी व्यस्तताओं से भरा है और इस दौरान अनेक प्रक्षेपण
होने हैं। उन्होंने बताया कि इसरो जल्द ही फ्रेंच गुयाना से यूरोपीय
अंतरिक्ष एजेंसी के एरियन-5 के जरिए एक उपग्रह और इस साल अगस्त में भारत से
पीएसएलवी के साथ छह उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा।
बहु प्रतीक्षित जीएसएलवी मार्क-3 पर उन्होंने कहा कि वाहन तैयार हो रहा
है और इसरो प्रतिष्ठानों में इसके परीक्षण हो रहे हैं। उन्होंने कहा,
'अत्याधुनिक प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी मार्क-3 कई दौर पार कर चुका है, निचला
चरण पूरा हो चुका है तथा हम एक साल के भीतर श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी
मार्क-3 की प्रायोगिक उड़ान को अंजाम दे रहे होंगे।'
राधाकृष्णन ने कहा कि वातावरणीय उड़ान चरण में वाहन की प्रणाली को परखने
के लिए यह प्रयास अत्यावश्यक होगा। उन्होंने बताया कि देश पीएसएलवी के
जरिए भारतीय-फ्रांसीसी उपग्रह [सरल या सैटेलाइट विद एरगोस एंड आल्तिका] का
भी प्रक्षेपण करेगा और चालू वित्त वर्ष में भारत के पहले नौवहन उपग्रह के
प्रक्षेपण की भी योजना है।
वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक यशपाल ने प्रक्षेपण को उल्लेखनीय उपलब्धि
करार दिया। उन्होंने कहा कि यह कोई आयोजन नहीं, बल्कि एक महती कार्य का
निष्पादन है।
वैज्ञानिक समुदाय की सराहना करते हुए प्रोफेसर यूआर राव ने कहा कि यह
एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। पहली बार सिंथेटिक अपर्चर राडार [एसएआर] का
इस्तेमाल किया गया और यह काफी कठिन प्रौद्योगिकी थी तथा इसरो की टीम ने इसे
शानदार ढंग से अंजाम दिया।
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