शनिवार, 21 अप्रैल 2012

अब पनडुब्बी से मार करने वाली मिसाइल की बारी

     अग्नि-5 मिसाइल के कामयाब परीक्षण के बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन [डीआरडीओ] ने अपने अग्नि कार्यक्रम पर अल्प विराम लगा दिया है। फिलहाल अग्नि-6 जैसी कोई परियोजना उसकी टेबल पर नहीं है। साथ ही एक मिसाइल के अनेक लक्ष्यों को नष्ट करने वाली अग्नि-5 के एमआइआरवी संस्करण के लिए भी सरकारी मंजूरी नहीं मिली है। अब डीआरडीओ का अगला लक्ष्य भारत के लिए पनडुब्बी से मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइल [एसएलबीएम] के मिशन पर 'ओके' का टैग लगाना है।
अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद मीडिया से रूबरू डीआरडीओ महानिदेशक डॉ. विजय कुमार सारस्वत ने बताया कि इस प्रक्षेपास्त्र का अगला परीक्षण इस साल के अंत तक होगा। अबकी बार कैनिस्टर [मिसाइल दागने के लिए तैयार विशेष खोल] के जरिए इसका परीक्षण किया जाएगा।
रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार सारस्वत ने अग्नि की रेंज पर किसी तरह के नियंत्रण से इंकार कर यह भी स्पष्ट कर दिया कि जरूरत पड़ने पर भारत इसकी क्षमता और दायरा बढ़ा सकता है। उनका कहना था कि प्रक्षेपास्त्र देश की रक्षा जरूरतों और खतरों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं।
एमआइआरवी पर अभी मंजूरी नहीं
सारस्वत ने स्वीकार किया है कि अभी उन्हें अग्नि-5 के एमआइआरवी यानी एक साथ कई स्थानों पर निशाना लगाने में सक्षम मल्टीपल टार्गेट रीएंट्री संस्करण की सरकार से मंजूरी नहीं मिली है। डीआरडीओ इस तकनीक पर काम कर रहा है। लेकिन इसके परीक्षण के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। डीआरडीओ के मुताबिक जरूरत पड़ने पर अग्नि-5 को एंटी सैटेलाइट [उपग्रह को नष्ट करने वाला] प्रक्षेपास्त्र और आवश्यकतानुसार छोटे सैन्य उपग्रह लांच करने वाले रॉकेट के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि सारस्वत ने जोर देकर कहा कि भारत अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ का हामी नहीं है और उपग्रह रोधी प्रक्षेपास्त्र का उसका कोई कार्यक्रम भी नहीं है।
अरिहंत के लिए बैलेस्टिक मिसाइल
डीआरडीओ प्रमुख ने इस बात पर तो जोर दिया कि आगे भी अग्नि के अगले संस्करण बनाए जाएंगे। लेकिन अभी अग्नि-6 जैसी कोई योजना उनके पास नहीं है। हालांकि पनडुब्बी से दागी जाने वाली मिसाइल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यह परियोजना उन्नत चरणों में है। सूत्रों के मुताबिक विशाखापत्तनम क्षेत्र में इसके कुछ परीक्षण भी किया जा चुके हैं। स्वदेशी नाभिकीय पनडुब्बी अरिहंत को इससे लैस कर अगले दो सालों में नौसेनिक बेड़े में शामिल किया जाना है। अरिहंत के समुद्री परीक्षण इस साल अगस्त से शुरू होने हैं। रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन 750 किमी क्षमता की के-15 और 3500 किमी मारक क्षमता वाली के-4 मिसाइलों पर काम कर रहा है। डॉ सारस्वत ने कहा कि अभी इनके नाम तय नहीं किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत के पास अभी तक पनडुब्बी से दागी जाने वाली लंबी दूरी की कोई मिसाइल नहीं है। जबकि अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस की पनडुब्बियां इससे लैस हैं।

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