जब भी देश में पर्यटन के लिए हिल स्टेशन की बात की जाती है तो ऊटी का नाम लिए बगैर यह चर्चा पूरी नही होती। इसी महीने की एक तारीख को मुझे भी ऊटी जाने का मौका मिला। तमिलनाडू प्रान्त में स्थित करीब 1 लाख की आबादी वाला यह छोटा सा कस्बा जो कि उदगमण्डलं के सरकारी नाम से जिला मुख्यालय भी है, बेहद खूबसूरत है। चारों तरफ दूर-दूर तक बादलों से बातें करती पहाड़ों की चोटियों के बीच स्थित यह कस्बा अपने बेहतरीन प्राकृतिक नज़ारों के लिए सिर्फ हिंदुस्तान ही नही बल्कि सारी दुनिया में क्यों जाना जाता है, यह सिर्फ यहां पहुंचकर ही जाना जा सकता है।
मैं कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु से यहां के लिए निकला था, इसलिए ऊटी से करीब 50 किमी पहले मुदमलइ अभ्यारण्य रास्ते में ही पड़ा। मुदमलाई अभ्यारण्य सांभर, चीतल, हिरण, बाघ, और हथियो के लिए प्रसिद्ध है। जंगली जानवरों को उनके घर जंगल में खुला और आज़ाद होकर विचरण करते हुए देखना अपने आप में मेरे लिए एक अनोखा अनुभव था।
ऊटी जाना और डोडाबीटा न देखना यह नही हो सकता। डोडा बीटा असल में ऊटी के सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटी है। जहां से न सिर्फ पूरे ऊटी के दिलकश नज़ारों को देखा जा सकता है, बल्कि कोयम्बटूर के मैदानी इलाकों का भी दृश्यावलोकन हो जाता है।
वापसी टीपू सुल्तान के पैतृक नगर मैसूर से हुई। उनकी कब्र को देखना उन लोगों के लिए टीपू सुल्तान के दीदार सरीखा ही है, जो उनके इतिहास से वाकिफ है। मैसूर पैलेस की सुंदरता का तो शब्दों से वर्णन नही किया जा सकता। इसीलिए इसके कुछ नज़ारे आप सबको दे रहा हूँ।
फिर जाम और दुनियाभर का झाम भरा शहर बंगलुरु और वहां से दिल्ली की फ्लाइट, फिर वहां से लखनऊ, लेकिन ऊटी अब भी मेरे जेहन में रोज़ अपनी सुंदर स्मृतियों के रूप में दस्तक देता रहता है। इन स्मृतियों के हम सफर श्री राजेश मििश्र।
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