गौरी लंकेश की हत्या को जायज ठहराने वाले उन पर गोली चलाने वालों से ज्यादा खूंखार और दरिंदे हैं। ये सिर्फ गौरी के ही नहीं बल्कि देश, संविधान और लोकतंत्र के भी शत्रु हैं। अब क्या पत्रकारों को असहमति की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी? वाम या दक्षिण पंथी होने की वजह से क्या हत्यारों को किसी भी पत्रकार को मारने की स्वतंत्रता होगी? ये महज़ एक संयोग है कि जिस दिन बंगलुरु में उनकी हत्या हुई में वहीं था।
मैं पत्रकारिता की किसी भी पंथावली से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखता हूँ, फिर भी कह सकता हूँ कि मैं यूपी का लंकेश हूँ। रामभक्त होने के बावजूद भी मैं राजनीति में धार्मिक अतिवाद के खिलाफ हूँ। मैं योगी जैसे महंत को भाजपा द्वारा सूबे के मुखिया की कमान सौंपे जाने का भी विरोधी हूँ। तो क्या कोई धार्मिक अतिवादी कल को मेरी भी हत्या कर सकता है?
वास्तव में धर्म को राजनीतिक हथियार की तरह वो ही इस्तेमाल करते हैं जिनमें राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता का अभाव होता है। मेरा मानना है कि जब श्रीराम, हर हर महादेव, भगवा धारण, गाय, गंगा या फिर अल्ला हो अकबर के नाम पर ही हम इन्हें अपना वोट दे देंगे, तब भला ये चकड़ राजनीतिक लोग हमारे घर के सामने की रोड, अस्पताल, बेरोजगारी की समस्या को लेकर क्यों गंभीर होंगे? घाटा हमारा है। फायदा उनका है। धर्म बेहद निजी मामला है। इसका सार्वजनिक प्रदर्शन भी एक तरह से जनता के साथ ठगी है।
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