ऐतिहासिक जनादेश के साथ बनी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के छह महीने पूरे हो गए हैं. मशहूर गोरखधाम के मुखिया की छवि जिस तरह की थी उसके आधार पर माना जा रहा था कि वे बेहद कड़क मुख्यमंत्री साबित होंगे. कहा जा रहा था कि पिछली सरकार के उलट उनके राज में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक रहने वाली है. कई लोग यह भी कह रहे थे कि अपनी सरकार में योगी ज्यादातर ताकत अपने हाथ में रखने वाले हैं.
लेकिन इन छह महीनों पर नजर डाली जाए तो योगी आदित्यनाथ अपनी उस छवि पर पूरी तरह से टिके हुए नहीं दिख रहे. बल्कि देखा जाए तो उनके शुरुआती छह महीनों में उत्तर प्रदेश सरकार की तस्वीर कुछ वैसी ही बनती हुई दिख रही है जैसी इससे पहले की अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार की पहले छह महीनों में बनी थी.
अखिलेश यादव पर शुरुआत में सबसे बड़ा आरोप लगता था कि प्रशासन उनके नियंत्रण में नहीं है और इस वजह से कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है. योगी आदित्यनाथ के बारे में भी यही बातें कही जा रही हैं.अखिलेश यादव पर भी ये आरोप लगते थे कि किसी घटना के लिए प्रशासनिक जवाबदेही तय नहीं हो पा रही है. योगी आदित्यनाथ के बारे में भी यही कहा जा रहा है. चाहे वह गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में अब तक 100 से अधिक बच्चों की हुई मौत का मामला हो या फिर कोई और मसला. योगी आदित्यनाथ भी अखिलेश यादव की तरह प्रशासनिक महकमे का बचाव करते ही दिखते हैं.
अखिलेश यादव पर यह आरोप लगता था कि वे सिर्फ नाम के मुख्यमंत्री हैं और उन्हें दूसरे लोग चला रहे हैं. कहा जाता था कि सरकार के कामकाज में उनके पिता मुलायम सिंह यादव, चाचा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव और पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री आजम खान का दखल रहता है. लोग चुटकी लेते थे कि प्रदेश को एक नहीं बल्कि पांच-पांच मुख्यमंत्री मिलकर चला रहे हैं. कुछ इसे घुमा-फिराकर ऐसे भी कहते थे कि अखिलेश यादव की सरकार में जो फैसला पंचम तल (उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का कार्यालय सचिवालय के पंचम तल पर है) पर लिया जाता है, वह नीचे आते-आते बदल जाता है.
कुछ ऐसी ही स्थिति पहले छह महीने में योगी आदित्यनाथ सरकार की भी बनती दिख रही है. योगी आदित्यनाथ तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं ही, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि उनके साथ चार और मुख्यमंत्री प्रदेश की सरकार को चला रहे हैं. इनमें दो उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के अलावा उनकी सरकार के दो प्रमुख मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा शामिल हैं.
केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में भी शामिल थे. चुनावों के दौरान संगठन की बागडोर उनके हाथ में थी. उत्तर प्रदेश में पार्टी को मिली भारी जीत में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की अहम भूमिका बताई गई. पार्टी में और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो यह मान रहे थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हक तो केशव प्रसाद मौर्य का ही बनता है. दूसरे उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीबी बताए जाते हैं. माना जाता है कि अमित शाह का दिनेश शर्मा पर काफी भरोसा है. कहा जाता है कि शर्मा अक्सर शाह को उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज के बारे में जानकारी देते रहते हैं.
इन दोनों के अलावा योगी सरकार के सबसे अधिक दिखने वाले दो चेहरे हैं सिद्धार्थनाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा. यह तय किया गया है कि मीडिया के सामने सरकार का पक्ष रखने का काम सिर्फ यही दो लोग करेंगे. योगी सरकार बनने से पहले ये दोनों लोग राष्ट्रीय टीम में थे. इन दोनों लोगों के बारे में यह राय बन रही है कि ये दोनों दिल्ली स्थित पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के आंख-कान हैं. इसलिए कहा जा रहा है कि ये दोनों जो निर्णय लेते हैं, उन पर कोई टोका-टाकी नहीं की जाती. इस नाते यह भी कहा जा रहा है कि ये दोनों भी मुख्यमंत्री की तरह ही काम कर रहे हैं.
अखिलेश यादव के शुरुआती छह महीने में यह स्थिति बनी थी कि राज्य सरकार में अहम पदों के लिए अफसर मुलायम सिंह यादव तय कर रहे थे. वहीं शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव और आजम खान भी कई पदों पर अपनी पसंद के अफसर रख रहे थे. इस नाते अफसरशाही की कमान पूरी तरह से अखिलेश के हाथों में नहीं थी.
अफसरों की नियुक्ति के मामले में कुछ ऐसी ही स्थिति योगी आदित्यनाथ की भी है. पहले छह महीने में यह तस्वीर बनी है कि उन्हें अपने मन के अफसर भी नहीं मिल पा रहे हैं. कहा जा रहा है कि योगी सरकार के कामकाज में दिल्ली का हस्तक्षेप काफी अधिक है. उत्तर प्रदेश सरकार में अहम पदों पर दिल्ली से भेजे गए कुछ अफसरों के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें दिल्ली ने उन पर थोपा है.
पिछले कुछ दिनों से लखनऊ में इस बात की काफी चर्चा है कि प्रदेश सरकार के अहम ठेकों पर भी राज्य सरकार को दिल्ली से निर्देश दिए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि सरकार के विज्ञापनों से संबंधित एक ठेका दिल्ली में पार्टी के लिए काम करने वाले एक कारोबारी और पार्ट टाइम नेता को देने का निर्देश दिया गया है. हालांकि, अभी यह ठेका दिया नहीं गया है लेकिन यह एक बानगी है जो बता रही है कि उत्तर प्रदेश सरकार में कैसे कामकाज हो रहा है और मुख्यमंत्री की भूमिका कैसे सीमित होती जा रही है.
अखिलेश यादव की जो छवि शुरुआती दिनों में बनी, वह उनके साथ अंत तक चिपकी रही. हालांकि, अपने कार्यकाल के बाद के दिनों में अखिलेश ने पूरी बागडोर अपने हाथों में लेने की कोशिश की. लेकिन तब तक देर हो गई थी.
यही वह खतरे की घंटी है जिसकी गूंज योगी आदित्यनाथ के बतौर मुख्यमंत्री छह महीने पूरे होने पर सुनाई दे रही है. कुछ समय पहले भाजपा के एक नेता ने बताया कि पार्टी में जो लोग योगी के विरोधी हैं, उन्हें यह लगता है कि बतौर मुख्यमंत्री योगी नाकाम हो जाएंगे और उत्तर प्रदेश सरकार की कमान किसी और को मिल जाएगी. हालांकि, उस वक्त उन्हें भी लग रहा था कि यह इतना आसान नहीं होगा. लेकिन अगर योगी आदित्यनाथ का कामकाज ऐसा ही रहा जैसा पहले छह महीने में दिखा है तो फिर उनके लिए बतौर मुख्यमंत्री आगे का सफर बहुत मुश्किल हो सकता है.