गुरुवार, 28 सितंबर 2017

भगत तुम सदा याद आते रहोगे

 
   जब भी कोई भगत सिंह की हथियारबंद तस्वीर शेयर कर उनका गलत चरितार्थ करने की कोशिश करता है मुझे बहुत ही कुल्हन होती है। ऐसा वहीं लोग करते है जो भगत सिंह को या तो नहीं जानते या फिर उनके माध्यम से अपनी कट्टर राजनीति को चमकाना चाहते है।

भगत सिंह ने खुद लिखा था कि 'ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।' आप कैसे उस व्यक्ति का हिंसक चरितार्थ कर सकते हो जिसने 116 दिन का भूख हड़ताल सिर्फ इसलिए किया क्योंकि जेल में कैदियों के साथ भेदभाव हो रहा था।

भगत सिंह बहुत पढ़ते और खूब लिखते थे। उन्होंने बलवंत, रंजीत और विद्रोही के नाम से अखबारों के लिए कई उर्दू और पंजाबी में लेख लिखे है। इसके अलावा वो डायरी भी लिखते थे जो बाद में जेल डायरी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

भगत सिंह अपने फांसी वाले दिन भी किताब पढ़ रहे थे। फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी ही पढ़ रहे थे। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनकी फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।"

क्यों हमारी सरकारें भगत सिंह का ये रूप बच्चों को नहीं बताती? ये तो याद ही होगा कि स्कूल में हमने भगत सिंह के बारे में क्या-क्या पढ़ा है। सिलेबस में जिस तरह से भगत सिंह को पेश किया गया उससे बच्चों को बस इतना ही समझ आएगा कि भगत सिंह एक हिंसक व्यक्ति थें, उससे ज्यादा कुछ नहीं।

पता नहीं क्यों हमारे हुक्मरान भगत सिंह के विचारों से डरते हैं। चाहे कोई भी सरकार रही वो देश में किसी ने भी भगत सिंह के लिखे लेखों को बच्चों तक नहीं पहुंचने दिया। क्योंकि हमारे फिरकापरस्त नेताओं को पता है जिस दिन देश का युवा 'मैं नास्तिक क्यों हूं' पढ़े लेगा, उस दिन से वो जाति और धर्म के नाम सत्ता का सुख भोगने वालों से सवाल पूछना शुरू कर देगा।  

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