गाय हमारी माता है। भैस माता नही है। फिर माता को ही हम आवारा छोंड़ते हैं, भैंस को नहीं। जिसे हम माता मानते हैं, क्या उसके साथ हमारा यह बर्ताव जायज़ है? लाचार, बेबस, बीमार और आवारा माता क्या बेटों के लिए बदनामी का सबब नही है?
आजकल सड़कों पर गोवंश की भरमार गाड़ियों की रफ्तार तो बाधित करती ही है, दुर्घटनाओं का सबब भी बन रहा है। गांवों में किसान रात-रात भर जागकर इन आवारा पशुओं से अपनी फसलों की रक्षा कर रहा है। लोगों का मानना है कि अगर हालात यही रहे तो ये गोवंश वृद्धि ही भाजपा के पतन का कारण बनेगा। सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। वीर सावरकर के तथाकथित अनुयाइयों को गो पूजा पर उनके विचारों का अनुसरण करना चाहिए। संघ और संघियों के प्रेरणास्रोत सावरकर गाय पूजा के सख्त खिलाफ थे। वो एक जानवर को इंसान से ज्यादा तरजीह और महत्व देने को उसकी मूर्खता मानते थे।
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