बुधवार, 27 सितंबर 2017

जरीना उस्मानी के बहाने भाजपा को नसीहत

   
   
   आज मैं उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग गया था। अध्यक्ष श्रीमती जरीना उस्मानी जी से मुलाकात हुई। वो एक अच्छी और समझदार महिला हैं, इसमें कोई शक नही है, परंतु वो अभी भी महिला आयोग की अध्यक्ष हैं, ये जानकर मुझे ताज़्ज़ुब जरूर हुआ। क्योंकि यूपी में योगी सरकार आये करीब -करीव 6 महीने का अच्छा खासा वक्त गुजर चुका है। 
   असल में जरीना उस्मानी को पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने महिला आयोग का अध्यक्ष नामित किया था। उससे पहले बसपा सरकार में सतीश चंद्र मिश्र की बहन आभा अग्निहोत्री इस पद रही हैं। अर्थात जो भी सरकार आती है वो अपने पुराने समर्पित और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और नेताओं को ही आयोगों और निगमों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के पदों पर नियुक्त कर उनकी सम्मान वृद्धि करती है, अभी तक यही परंपरा रही है।
   अब सवाल यह उठता है कि क्या योगी सरकार इस परंपरा को तोड़ना चाहती है। भाजपा सरकार की भला यह कैसी सियासी मज़बूरी है जो अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को सम्मानित करने की जगह, वह समाजवादी पार्टी के लोगों को ही बी कांटीन्यू कह रही है?
   असल में भाजपा की रणनीति यह है कि पार्टी में शांति कायम रखी जाय। क्योंकि यहां पुराने समर्पित और अनुभवी कार्यकर्ताओं की भरमार है। सभी को समायोजित किया जा सके इतने पद भी नही हैं। ऐसे में कुछ कार्यकर्ताओं को पद देने का मतलब पार्टी में अशांति का माहौल बनाना है। या इस तरह कहा जाय कि ठहरे हुए पानी में कंकड़ न मार....।
    अगर गंभीरता से विचार किया जाय तो देखने में यह आता है कि इससे पार्टी के गरीब, कमजोर और छोटे कार्यकर्ताओं का ही नुकसान हो रहा है। अपने लोगों का फायदा न हो भले ही दूसरे और पराये लोग कितना भी फायदा उठा ले जाएं। जबकि चुनाव के समय दल बदलकर स्वार्थ के वशीभूत जो बड़े लोग भाजपाई बने थे, जिनका पार्टी के उत्थान में कोई योगदान नही रहा, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके हितों के लिए पूरी तरह से सजग रहा। ऐसे अधिकांश बड़े दल बदालुओ को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
   भाजपा की यह मतलबी रणनीति आज भले ही उसे मुफीद लग रही हो, परंतु मैं दावे से कहता हूं कि यह एक दिन आत्मघाती साबित होगी। सरकार सिर्फ योगी मोदी शाह या फिर कुछ मुट्ठीभर दल बदलुओं की वजह से नही बनी है। इस सरकार के निर्माण या अस्तित्व में आम कार्यकर्ता का खून पसीना भी शामिल है। यह बात भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कहता तो है, लेकिन अब उसे अपने कर्म से इसे साबित भी करना होगा, अन्यथा अगर पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता बतौर नींव का पत्थर हिला तो फिर भाजपा के मजबूत दुर्ग को दरकनें से कोई नही रोक पायेगा। दल बदलुए तो फिर अपने लिए कोई न कोई मुफीद नई जगह तलाश ही लेंगे, लेकिन भाजपा का क्या होगा?

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