खबर और विज्ञापन का चोली-दामन का साथ है। विज्ञापन कभी-कभी खबरों पर हावी हो जाता है। हर मीडिया समूह को चलाने के लिए विज्ञापन जरूरी है, परंतु विज्ञापन जगह तो खबरों की ही खाता है। यानी विज्ञापन खबरों की जमीन पर अवैध कब्जेदार है। जहां टीवी चैनल एकाएक एक छोटा सा ब्रेक कहकर हमें विज्ञापनों के अनचाहे बियाबान जंगल में तन्हा छोङ जाते हैं, तो वहीं नामी-गिरामी अखबार भी सिर्फ विज्ञापनों को सजाने के लिए अब कई-कई मुखपृष्ठ छापने लगे हैं। यानी सभी मीडिया संस्थान खबरों की हमारी चाहत पर अपनी विज्ञापनी जिद लादते हैं। विज्ञापन किसी भी पाठक या दर्शक की पसंदीदा चाहत नहीं बल्कि अनचाही मज़बूरी है।
ये विज्ञापनों के प्रति बड़े-बड़े मीडिया समूहों की चाहत का ही नतीजा है कि जन मानस में अलग-अलग मीडिया समूहों को लेकर पक्षपात पूर्ण धारणाएं दिन ब दिन मज़बूत होती जा रही हैं। एक पत्रकार होने के नाते मैने काफी नजदीक से देखा है कि मीडिया समूह कुछ एक लाख रुपयों के लिए किस तरह सरकारों की आलोचना की जगह यशगान करने लगते हैं। मैं इस तरह के कृत्यों को देश की जनता और संविधान के साथ धोखा मानता हूं।
गूगल जैसे प्रोडक्ट कुछ हद तक पोर्टल न्यूज़ को यह आज़ादी देते हैं कि अगर वो चाहें तो कुछ पैसों के लिए सरकारों और औद्योगिक घरानों के सामने अपनी निष्पक्षता को गिरवी न रखें। उनके लिए विज्ञापनों की व्यवस्था खुद गूगल करता है। पोर्टलों को सिर्फ पेज हिट के लिए बेहतरीन और निष्पक्ष आर्टिकल की व्यवस्था का ही जिम्मा होता है। लेकिन भारत जैसे देश में न्यूज़ पोर्टलों पर अभी जन मानस का वह विश्वास नहीं कायम हो सका है, जो कि अखबारों और टीवी चैनलों के प्रति है। थोड़ा वक्त लगेगा और लोग पोर्टल न्यूज़ों को भी अहमियत देंगे, ऐसा मेरा अपना विश्वास है।
इन्हीं सब बातों के मद्देनजर मैंने भी ब्लॉगिंग पर भरोसा कर अपने ब्लॉग "काल" kaaall.blogspot.com को तेजी से प्रमोट किया। आज हालत यह है कि करीब 500 पेज हिट इसे प्रतिदिन के औसत से हासिल हो रहे हैं, और करीब .50 डॉलर प्रतिदिन की औसत आय भी मिल रही है। आय तभी प्राप्त होती है, जब पेज पर आए पाठक किसी विज्ञापन को भी क्लिक करते हैं। अभी इससे हासिल होने वाली आय बहुत कम है, लेकिन वृद्धि की संभावनाएं प्रबल हैं। इससे यह फायदा होगा कि विज्ञापन के लिए मुझे किसी का बेवजह यशगान नहीं करना पड़ेगा।
सुशील अवस्थी "राजन"
पत्रकार
9454699011
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