गुरुवार, 21 सितंबर 2017

उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच क्यों पिस रहा जापान ?


   अगर दुनिया के ऐसे देशों की बात करें जो शांति प्रिय होने के साथ ही संपन्न भी हैं तो शायद इनमें सबसे ऊपर जापान का ही नाम आएगा. जापान की शांतिप्रिय नीति के पीछे उसका वह संविधान है जिसे उसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपनाया था. इस ‘युद्ध विरोधी’ संविधान में अशांति या सैन्य संघर्ष जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं है. इसके अनुच्छेद 9 में कहा गया है कि जापान कभी भी किसी देश के साथ अपने विवाद को सुलझाने के लिये सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा. साथ ही, वह न तो कोई सेना रखेगा और न सैनिक साजो-सामान बनाएगा.
लेकिन, अपने जिस शांतिवादी संविधान को लेकर जापान की दुनिया भर में प्रशंसा की जाती है, अब वही उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है. आज जापान शांति की राह पर चलने की अपनी नीति की वजह से ही उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच में पिसता नजर आ रहा है.
जापान के शांति संविधान अपनाने के बाद से अमेरिका ने उसकी बाहरी ताकतों से रक्षा करने का जिम्मा ले रखा था. साथ ही अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया से यह वादा भी किया था कि वह न सिर्फ उन्हें उत्तर कोरिया के खतरे से बचाएगा बल्कि ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे उत्तर कोरिया उन्हें नुकसान पहुंचाए. लेकिन, पिछले कुछ महीनों में उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका के रवैये में आये बदलाव ने जापान के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
अब तक उत्तर कोरिया को लेकर दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका की क्या नीति थी
अंतरराष्ट्रीय जानकारों की मानें तो शुरू से नहीं लेकिन, जब से उत्तर कोरिया ने बैलेस्टिक मिसाइल और परमाणु बम बनाने का दावा किया है तब से जापान और दक्षिण कोरिया उसे लेकर एक अलग तरह की नीति अपनाते आ रहे हैं. इस नीति का सबसे अहम हिस्सा उस पर ज्यादा दवाब न बनाना है. दरअसल, जापान और दक्षिण कोरिया का सरकारी तंत्र कई साल पहले ही यह मान चुका है कि अब कड़े से कड़े प्रतिबंध लगाने के बाद भी उत्तर कोरिया को परमाणु ताकत बढ़ाने से नहीं रोका जा सकता, बल्कि इससे केवल उनके लिए खतरा ही बढ़ेगा.
इन दोनों की इस नीति का एक अहम हिस्सा अमेरिका भी बना हुआ है. पिछले सालों में अमेरिका में जितने भी राष्ट्रपति बने वे भी इस बात को मानते रहे कि उत्तर कोरिया पर ज्यादा दबाव बनाना सही नहीं है. जार्ज डब्ल्यू बुश से लेकर बराक ओबामा ने भी उत्तर कोरिया पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, लेकिन वे इतने ज्यादा कड़े नहीं थे जिनसे उत्तर कोरिया को बड़े दबाव में लाया जा सके.
डोनाल्ड ट्रंप को इस नीति की कोई परवाह नहीं
अमेरिका के कई पत्रकार मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका का इस नीति को लेकर रवैय्या पूरी तरह बदल चुका है. ये लोग कहते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप का नजरिया अपने पूर्ववर्तियों से एकदम अलग है. वे उत्तर कोरिया पर दबाव बनाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर उत्तर कोरिया नहीं सुधरा तो अमेरिका के पास उसे पूरी तरह से खत्म करने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा.
जापानी मीडिया की मानें तो डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आठ महीने के कार्यकाल में ही अमेरिका और यूएन के जरिये जिस तरह के प्रतिबंध उत्तर कोरिया पर लगवाये हैं उनके बारे में कभी बराक ओबामा ने सोचा तक नहीं था. ट्रंप इस कदर उत्तर कोरिया पर शिकंजा कसने की रणनीति पर लगे हुए हैं कि उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ व्यापार करने वाली कई चीनी और रूसी कंपनियों तक पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. यहां तक कि डोनाल्ड ट्रंप के दबाव के चलते ही पहली बार चीन ने भी उत्तर कोरिया से कोयला खरीदने पर पाबंदी लगा दी है. इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप दक्षिण कोरिया और जापान के लाख समझाने के बाद भी किम जोंग-उन और उत्तर कोरिया के लिए जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं वह वाकई भयानक है.
जापान के कुछ पत्रकार बताते हैं कि जापानी सरकार डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले ही जानती थी कि अगर ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका का कुछ ऐसा ही रुख होने वाला है. वे आगे कहते हैं कि इसी वजह से जापान के लोग और वहां की सरकार हिलेरी क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने की दुआ कर रहे थे.
जापान न घर का रहा न घाट का
जानकरों की मानें तो जापान की सरकार को जो डर था अब उसके साथ वही हो रहा है. जापान सरकार जानती थी कि अगर उत्तर कोरिया पर दबाव बनाया गया तो इसके नतीजे सबसे पहले उसे ही भुगतने होंगे. अब उसके साथ ऐसा हो भी रहा है, जैसे-जैसे अमेरिका उत्तर पर प्रतिबंध कड़े कर रहा है, वैसे-वैसे उत्तर कोरिया की निगाह जापान को लेकर टेढ़ी होती जा रही है. नतीजा यह है कि पिछले एक महीने में उत्तर कोरिया ने जापान के ऊपर से दो बार मिसाइलें तक छोड़ दीं.
लंदन स्थित लागबोरो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर ताकू तमाकी कहते हैं, ‘वर्तमान में बनी स्थिति को देखें तो जापान बुरी तरह से उत्तर कोरिया और डोनाल्ड ट्रंप के बीच फंस गया है, वह अब अकेला पड़ गया है. डोनाल्ड ट्रंप जापान की सुन नहीं रहे हैं और उसके पास अपनी ताकत भी नहीं है जिससे कि वह अमेरिका को पीछे छोड़ स्थिति को संभालने का प्रयास कर सके.’ इसके अलावा वह उत्तर कोरिया के साथ चीन या किसी अन्य जरिये से अंदरखाने हाथ भी नहीं मिला सकता क्योंकि अमेरिका ऐसा होने नहीं देगा.
दक्षिण कोरिया की स्थिति जापान से अलग है
कोरियाई प्रायद्वीप में जापान के बाद उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा दुश्मन दक्षिण कोरिया है. लेकिन, दक्षिण कोरिया और जापान की स्थिति में बड़ा अंतर है. जहां जापान के पास देखा जाए तो सैन्य रक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं है, वहीं दक्षिण कोरिया के पास लगभग हर तरह के अत्याधुनिक गैर-परमाणु हथियार हैं. उत्तर कोरिया जब भी मिसाइल परीक्षण करता है तो दक्षिण कोरिया भी उसके जवाब में मिसाइल परीक्षण कर देता है.
इसके अलावा कोरियाई मामलों के जानकार बताते हैं कि उत्तर कोरिया के तानाशाह को लेकर दक्षिण कोरिया का रुख भले ही कठोर हो लेकिन, वहां की आम जनता को लेकर उसका रुख हमेशा से नरम रहा है. इसी साल मई महीने में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति बने मून जेई-इन ने भी उत्तर कोरिया से बातचीत शुरू करने की बात कही है. बर्लिन में अपने भाषण में मून ने ये तक कहा था कि वे सीमा पर शांति के लिए किम-जोंग-उन से भी मिलने को तैयार हैं. उन्होंने उत्तर कोरिया में दक्षिण कोरियाई कंपनियों की मदद से चलने वाले कैसांग औद्योगिक क्षेत्र को दोबारा शुरू करने का वादा भी किया है. इस औद्योगिक क्षेत्र को दक्षिण कोरिया की पूर्व प्रधानमंत्री पार्क गुआन-हेय ने फरवरी 2016 में अस्थायी रूप से बंद करवा दिया था.
जानकरों की मानें तो लब्बोलुआब यह है कि दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया को पुचकारता भी है और उसे यह भी बताता रहता है कि उसके पास उससे युद्ध लड़ने की क्षमता भी है. कई विशेषज्ञ भी मानते हैं कि उत्तर कोरिया को लेकर कोरियाई प्रायद्वीप में जो स्थिति बनी हुई है उसे देखते हुए यही सबसे सही नीति भी है. लेकिन, सैन्य क्षमता और कई अन्य मामलों को लेकर अमेरिका पर निर्भर होने की वजह से अब जापान इस नीति पर नहीं चल पा रहा है.
आखिर क्यों जापान और दक्षिण कोरिया के लाख समझाने के बाद भी ट्रंप उत्तर कोरिया पर दवाब बनाए हुए हैं
अमेरिका के लिए एक बात अक्सर सुनी जाती है, ‘अमेरिका किसी सांप को तब तक नहीं मारता जब तक कि वह उसे काटने के लिए नहीं दौड़ता. फिर चाहें वह सांप पूरी दुनिया में हजारों लोगों की जान क्यों न ले चुका हो.’ जानकारों के मुताबिक अमेरिका का ऐसा ही रुख अब उत्तर कोरिया को लेकर भी हो गया है. ये लोग कहते हैं कि अमेरिका को जापान और दक्षिण कोरिया की तब तक ही चिंता थी जब तक उत्तर कोरिया के हथियारों की पहुंच उस तक नहीं थी. लेकिन, अब जब ऐसा नहीं है तो अमेरिका उत्तर कोरिया को कुचलने की नीति पर काम कर रहा है.
जानकारों के मुताबिक भले ही दिख यह रहा हो कि अमेरिका उत्तर कोरिया पर हमला नहीं करना चाहता लेकिन, वह यह कतई नहीं चाहता कि उत्तर कोरिया से जंग न हो. ट्रंप हर हाल में उत्तर कोरिया से युद्ध कर उसे खत्म करना चाहते हैं, लेकिन वह इस जंग की शुरुआत अपनी तरफ से नहीं करना चाहते. क्योंकि अगर अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर पहले हमला किया तो उसे उत्तर कोरिया के साथ-साथ जापान और दक्षिण कोरिया के भी करोड़ों लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
जानकारों की मानें तो डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उत्तर कोरिया पर आए दिन कड़े प्रतिबंध लगाना और उकसाने वाली बयानबाजी करना एक अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है. जिसका लक्ष्य सिर्फ उत्तर कोरिया पर दबाव बनाकर उससे पहले हमला करवाना है. इन लोगों के मुताबिक इसके बाद के नतीजे किसी से छिपे नहीं हैं जिनके तहत उत्तर कोरिया का अमेरिका वही हाल करेगा जो अफगानिस्तान, इराक और लीबिया का हुआ था.

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