रविवार, 31 जुलाई 2011

तुझसा लहेरो में बह लेता,तो मै भी सत्ता गह लेता|


  सुशील अवस्थी "राजन" 
तुझसा लहेरो में बह लेता,   
तो मै भी सत्ता गह लेता|
ईमान बेंचता चलता तो,
मै भी मंहलों में रह लेता|
हम पंछी उन्मुक्त गगन के,
पिंजरबद्ध  न गा पाएंगे|
कनक तीलियों से टकराकर,
पुलकित पंख टूट जायेंगे,
हम बहता जल पीनें वाले,
मर जायेंगे भूंखे प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी,
कनक कटोरी की मैदा से,
नीड़ न दो चाहे टहनी का,
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो,
आकुल उड़ान में बिघ्न न डालो,

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